मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण पर सियासी संग्राम, सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से बीजेपी दबाव में

मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण पर सियासी संग्राम, सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से बीजेपी दबाव में


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मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर राजनीतिक टकराव तेज हो गया है. 2019 में कांग्रेस सरकार ने आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% किया था, जिससे कुल आरक्षण 63% हो गया. सुप्रीम कोर्ट ने अब भाजपा सरकार से पूछा है कि वह इ…और पढ़ें

ओबीसी आरक्षण को लेकर भाजपा-कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है.

हाइलाइट्स

  • OBC आरक्षण को लेकर राजनीतिक टकराव
  • कांग्रेस ने आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% किया
  • अब एमपी कांग्रेस वोट बैंक को साधने में जुट गई है

मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण का मुद्दा अब एक गहरे राजनीतिक संघर्ष का मैदान बन चुका है. साल 2019 में कांग्रेस सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% किया गया था, जिससे राज्य में कुल आरक्षण का आंकड़ा 63% हो गया. यह सुप्रीम कोर्ट की निर्धारित 50% आरक्षण सीमा से अधिक है, जिस पर अब संवैधानिक बहस और सियासी घमासान दोनों खड़े हो गए हैं. एक तरफ कांग्रेस हमलावर हो रही है तो दूसरी तरफ भाजपा इस मुद्दे पर सजगता से फैसले की तैयारी कर रही है. उसका एक-एक कदम चुनौती भरा है.

ताजा घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार से स्पष्ट सवाल किया है कि वह संवेदनशील वर्गों के लिए तय किए गए 27% ओबीसी आरक्षण को लागू क्यों नहीं कर रही. इस सवाल ने भाजपा सरकार को राजनीतिक और कानूनी दोनों ही मोर्चों पर असहज स्थिति में ला खड़ा किया है. कांग्रेस ने इस मौके को ‘ओबीसी विरोधी मानसिकता’ करार देते हुए इसे एक जनांदोलन में बदलने की ठान ली है.

कांग्रेस नेता कमलनाथ और जीतू पटवारी ‘ओबीसी अधिकार आंदोलन’ का झंडा थामे हुए हैं. उनका मकसद है कि इसे एक चुनावी हथियार की तरह प्रयोग किया जाए, जिससे 48% ओबीसी आबादी को सीधे संबोधित किया जा सके. कांग्रेस इसे सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व का मसला बना रही है, जबकि भाजपा सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बाध्यता के हवाले से खुद को विवश बता रही है.

भाजपा सरकार की दुविधा यह है कि यदि वह 27% आरक्षण लागू करती है, तो सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी फैसले के विरुद्ध जाएगी. और यदि वह इसे टालती है, तो कांग्रेस के आरोपों के आगे राजनीतिक नुकसान झेलना पड़ सकता है. यह दोधारी तलवार भाजपा को एक संतुलनकारी नीति अपनाने को मजबूर कर रही है. प्रदेश सरकार को एक ऐसा वैकल्पिक रास्ता तलाशना होगा जो न केवल कानूनी मान्यताओं में फिट बैठे, बल्कि ओबीसी वर्ग की अपेक्षाओं को भी साध सके.

इस पूरी लड़ाई का असर 2024 लोकसभा चुनाव से लेकर निकाय चुनावों तक दिखेगा. ओबीसी वर्ग की भूमिका निर्णायक है और यही वर्ग आगामी चुनावों की दिशा तय कर सकता है. कांग्रेस इस वर्ग को एकजुट करने की मुहिम में लगी है, वहीं भाजपा को अपनी नीतियों में स्पष्टता और तेज़ी लानी होगी. इस मुद्दे ने अब केवल कोर्ट-कचहरी की सीमाएं पार कर ली हैं. यह मध्य प्रदेश की राजनीति के केंद्र में आ गया है और अगला चुनावी चक्र इसकी गर्माहट में तपे बिना नहीं रहेगा.

Sumit verma

सुमित वर्मा, News18 में 4 सालों से एसोसिएट एडीटर पद पर कार्यरत हैं. बीते 3 दशकों से सक्रिय पत्रकारिता में अपनी अलग पहचान रखते हैं. देश के नामचीन मीडिया संस्‍थानों में सजग जिम्‍मेदार पदों पर काम करने का अनुभव. प…और पढ़ें

सुमित वर्मा, News18 में 4 सालों से एसोसिएट एडीटर पद पर कार्यरत हैं. बीते 3 दशकों से सक्रिय पत्रकारिता में अपनी अलग पहचान रखते हैं. देश के नामचीन मीडिया संस्‍थानों में सजग जिम्‍मेदार पदों पर काम करने का अनुभव. प… और पढ़ें

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