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Ragi ki Kheti: कम पानी, कम खर्च और सेहत के लिए फायदेमंद ये खेती अब धान, मूंग और उरद जैसी फसलों का बेहतरीन विकल्प बनती जा रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक ये फसल कम पानी में भी ऊंचे इलाकों में अच्छी उपज देती है और …और पढ़ें
हाइलाइट्स
- उड़द, गेहूं छोड़ रागी की केती की ओर बढ़ रहे किसान
- रागी की फसल को कम रहता कीट का खतरा
- 15 जुलाई तक कर लें रागी की बुवाई
VL 115 और AVV 45 जैसी किस्में दे रहीं बेहतर उपज
रागी की VL 115 किस्म प्रति एकड़ करीब 30 क्विंटल तक उत्पादन देने में सक्षम है. वहीं AVV 45 किस्म 104 से 109 दिनों में तैयार हो जाती है और झुलसन रोग के लिए प्रतिरोधी मानी जाती है. इसकी उत्पादन क्षमता भी 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है. दूसरी तरफ VL 149 किस्म 98 से 102 दिनों में पकती है और औसतन 10 से 11 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है. यह किस्म भुरड़ रोग के लिए प्रतिरोधी है और अगेती खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है.
सहायक संचालक कृषि राम सिंह बागरी ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि रागी एक मोटे अनाज की फसल है जो हर प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है. इसकी बुवाई 15 जून से लेकर 15 जुलाई तक की जा सकती है और इसमें प्रति हेक्टेयर केवल 10 किलो बीज की आवश्यकता होती है. रागी में कैल्शियम, आयरन, प्रोटीन, फाइबर और आवश्यक विटामिन्स पाए जाते हैं जो खासकर महिलाओं और वृद्धों के लिए बेहद लाभकारी हैं.
कीट-रोग की समस्या कम, खेती आसान
रागी की फसल में अन्य फसलों की तुलना में रोग और कीट कम लगते हैं. कभी-कभार तनाछेदक की समस्या देखी जाती है जिसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है. ऐसे में जिन किसानों के खेतों में मूंग या उर्द की पैदावार नहीं हो रही वे रागी को एक बेहतर विकल्प के रूप में आजमा सकते हैं.