खंडवा. ‘हट हट कुतरी, यहां कहां उतरी’, अब अगर आप पहली बार ये कहावत सुन रहे हैं, तो लगेगा कोई किसी जानवर को भगा रहा है लेकिन जनाब यह तो निमाड़ की मशहूर कहावत है और खंडवा, बड़वानी, खरगोन और बुरहानपुर जैसे जिलों में यह कहावत मुंह से ऐसे निकलती है, जैसे सांस. निमाड़ी बोली अपने आप में मिठास, मस्ती और ताने की तासीर लिए हुए होती है और जब बात हो कहावतों की, तो भाई साहब, निमाड़ वाले बिना ताना मारे, बात पूरी ही नहीं करते. अब इस कहावत को ही ले लीजिए, ‘हट हट कुतरी, यहां कहां उतरी’, इसका मतलब सीधा है कि कौन बुलाया तुझे, तू यहां क्यों आई.
इस कहावत का इस्तेमाल खासतौर पर तब होता है, जब कोई बिन बुलाए मेहमान यानी अचानक टपकने वाला सरप्राइज विजिटर दरवाजे पर आ धमकता है. अब गांव में शादी हो रही हो या घर में किसी की तबीयत खराब हो और सामने वाले के चेहरे पर हवाइयां उड़ती दिखें, तो समझ जाओ कि कुतरी उतर गई है. इस कहावत की जड़ तो बड़ी मजेदार है. दरअसल पुराने जमाने में जब खेतों में कुतरी (जंगली बिल्ली) घुस आती थी, तो वो चुपके से बैठ जाती थी और बिना पूछे दाना चुगने लगती थी. तब किसान कहते थे,’हट हट कुतरी, यहां कहां उतरी’ यानी भैया तू आई काहे, किसने बुलाया तुझे.
निमाड़ी भाषा के प्रेमी लव जोशी ने लोकल 18 से बात करते हुए कहा कि निमाड़ के लोग इस कहावत को सिर्फ बिन बुलाए मेहमानों के लिए ही नहीं बल्कि हर उस मौके पर इस्तेमाल करते हैं, जहां कोई बेवजह घुस जाए. क्लास में लेट आने वाला स्टूडेंट हो, पंचायत में घुसी कोई नई लड़की हो या फिर बिना नाम वाला वोट मांगने आया नेता हो, हर बार जवाब मिलेगा, ‘हट हट कुतरी, यहां कहां उतरी’
इस कहावत में सिर्फ शब्द नहीं हैं, ये तो निमाड़ी जनजीवन का हंसी-ठिठोली वाला आईना है. यहां हर बात में चुटकी है और हर ताने में अपनापन. तो अगली बार कोई बिन बताए आपके घर घुस आए, चाय मांग ले, खाना खा ले और चलते समय बोले कि अब चलता हूं, तो मन में ही सही, पर कह दीजिए, ‘हट हट कुतरी, यहां कहां उतरी’