कई सालों बाद, जो लोग उनके साथ और उस समय यॉर्क शायर में विनोद कांबली के खिलाफ खेले हैं, और उन्होंने उनकी शराब की लत के बारे में मीडिया रिपोर्ट पढ़ी हैं, और इंटरव्यू के दौरान कांबली को बोलने के लिए संघर्ष को देखा है, वे एक ही सवाल पूछते रहते हैं: कांबली को क्या हुआ? नासा हुसैन ब्रैडफोर्ड जो में पार्क एवेन्यू मैदान में आज मुख्य ग्राउंड्समैन हैं, यह ऐसा क्षेत्र है जहाँ पाकिस्तान और भारत में रहने वाले लोगों का वर्चस्व है. पाकिस्तान के मीरपुर से आने वाले नासा ने एक बार कांबली को गेंदबाजी की थी. नासा, कांबली की तरह, अब 50 के दशक में हैं औ 90 के दशक की शुरुआत में, वे सपने देखने वाले युवा क्रिकेटर थे.
कांबली जब यॉर्कशायर में क्लब क्रिकेट खेलने आए तो महज 19 साल के थे,तब वो टेस्ट नहीं खेले थे पर जलवा दिग्गज खिलाड़ियों जैसा था. उस समय एक एशियाई के रूप में, सचिन का यॉर्कशायर में शामिल होना एक बड़ी खबर थी साथ ही अच्छी बात यह थी कि वे अपने साथ अपने दोस्त विनोद कांबली को भी लेकर आए थे,माइनर लीग में नासा के साथ खेले थे. नासा ने तब के विनोद कांबली को याद करते हुए कहा कि वो कभी किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिले जो पहली गेंद से विनोद जैसे प्रहार करता हो. नासा को आज भी वह पहली गेंद याद है जो उन्होंने कांबली को फेंकी थी. “वे बस ट्रैक पर दौड़ते हैं और पहली गेंद पर छक्का मारते हैं, भारत का वो युवा, जिसे पहले कभी नहीं देखा, पहले कभी नहीं सुना, और वह बस आता है और धमाका कर जाता है. इसके बाद,उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ दो दोहरे शतक बनाए. नासा कहते है कि वो सचमुच प्रतिभाशाली था और आज के दौर में वो करोड़ों में खेल रहा होता.
बियॉन्ड बाउंड्रीज नाम की किताब लिखने वाले सोली ने कांबली पर एक अध्याय समर्पित किया है जो क्रिकेट की कहानियों का खजाना है, जो कांबली की शानदार बल्लेबाजी और मैदान के बाहर उनके उतार-चढ़ाव भरे जीवन को पन्नों से बाहर निकाल देता है. कांबली यॉर्कशायर की लोककथाओं का हिस्सा हैं, वे एक रहस्यमयी किरदार हैं, जिनकी जीवन कहानी अविश्वास और अफसोस दोनों को जन्म देती है. सभी रंगीन किरदारों की तरह, यह किस्से ही हैं जो मिथक के मकान में ईंटों की तरह काम करते हैं. इंग्लैंड में करीब 400 उपमहाद्वीपीय खिलाड़ियों की मेजबानी और उन्हें लाने वाले सोली एडम के पास ऐसे कई किस्से हैं. वह एजेंट नहीं बल्कि क्रिकेट के प्रति जुनूनी और दयालु व्यवसायी है. वह उस टीम का कप्तान भी था जिसके लिए कांबली खेला करते थे.
सोली अपने घर पर लगभग 10 से 15 भारतीय क्रिकेटरों की मेज़बानी कर रहा था. कई लोग वहाँ ठहरे हुए थे; दूसरों ने भोजन के लिए वहाँ जाने की आदत बना ली थी. क्लब से मिलने वाले पैसे ज़्यादा नहीं थे, इसलिए ज़्यादातर लोग दिन में नौकरी करते थे – कुछ लोग सोली के ईंधन स्टेशन, फ़ैक्ट्री या शॉपिंग सेंटर में काम करते थे. सोली के पास एक दिन हम 10 क्रिकेटर बैठे थे. विनोद और सचिन को छोड़कर सभी के पास पार्ट-टाइम जॉब थी. इसलिए मुंबई के एक क्रिकेटर ने विनोद से पूछा – ‘चूँकि आप एक मैच में सिर्फ़ 25 पाउंड कमाते हैं, तो आप सोली के किसी घर पर काम क्यों नहीं करते? कांबली ने एक मिनट भी नहीं सोचा, तुरंत जवाब आया: ‘मैं और सचिन टेस्ट क्रिकेट खेलकर पैसे कमाएँगे, मैं पार्ट-टाइम जॉब करके अपना ध्यान भटकाना नहीं चाहता. वह असाधारण था, कितना आत्मविश्वास था और तब जब वह बहुत युवा था, टेस्ट बल्लेबाज़ तो नहीं था लेकिन उसमें आत्मविश्वास था.
90 के दशक में विनोद कांबली को उनके शानदार प्रदर्शन के लिए 700 पाउंड का बोनस मिला जिसका जिक्र सोली ने अपनी किताब में किया है, इस घटना को याद करते हुए सोली ने अपनी किताब में लिखा है कि सोली मुंबई जाकर कांबली के पिता को पैसे सौंपते थे, तब कांबली के पिता ने कहा कि कहा कि उन्होंने इतनी बड़ी रकम एक साथ कभी नहीं देखा था. इसके बाद विनोद जब भारत लौटा, तो उसने अपने पिता से सारा पैसा ले लिया और अपने दोस्तों के साथ खर्च कर दिया. विनोद ने कभी पैसे की परवाह नहीं की, न ही उसके मन में वस्तुओं के लिए कोई सम्मान था. अपनी किताब में सोली लिखते हैं कि जब वह एक प्रतिभाशाली बच्चे की दुखद कहानी” के बारे में सोचते हैं, तो उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं. उन्हें इस बात का दुख है क्योंकि कांबली अक्सर अंग्रेजी मीडिया में सोली को अपने “पिता के समान” के तौर पर संदर्भित करते थे. कांबली अध्याय का अंतिम पैराग्राफ एक पुराने दोस्त की मदद करने जैसा है “मैंने विनोद से संपर्क करने की कई बार कोशिश की, लेकिन दुर्भाग्य से, मुझे उनसे कोई जवाब नहीं मिला. अगर संयोग से विनोद को यह देखने को मिल भी जाए, तो मैं चाहता हूं कि उसे पता चले कि हम उससे बहुत प्यार करते हैं… विनोद, हम सभी तुम्हें याद करते हैं.