मप्र के उच्च शिक्षा विभाग ने ग्वालियर-चंबल इलाके में चल रहे फर्जी कॉलेजों की जांच का जिम्मा जिलों के कलेक्टर और सरकारी कॉलेजों के प्रोफेसरों की टीम को सौंपा था। मगर, उन्होंने भी जांच में केवल औपचारिकता ही की है। इसका खुलासा भास्कर की पड़ताल में हुआ ह
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सरकारी टीम के निरीक्षण में जो कॉलेज मान्यता के मापदंड पर खरे उतरे हैं, भास्कर रिपोर्टर ने जब वहां जाकर देखा तो पता चला कि कॉलेजों की जगह स्कूल चल रहे हैं। कॉलेजों की अपनी कोई बिल्डिंग नहीं है, न ही पढ़ाने वाले टीचर हैं। मुरैना के एक कॉलेज संचालक ने तो भास्कर रिपोर्टर से कहा कि एडमिशन मिल जाएगा, मगर क्लास नहीं लगेगी। एग्जाम देना पड़ेगा और डिग्री मिल जाएगी।
बता दें कि ग्वालियर-चंबल इलाके में चल रहे फर्जी कॉलेजों की ईओडब्ल्यू में हुई शिकायत के बाद उच्च शिक्षा विभाग ने इनकी जांच जिलों के कलेक्टर और सरकारी कॉलेजों के प्रोफेसरों से कराई थी। टीम ने अपनी रिपोर्ट में कॉलेजों को क्लीनचिट दी। भास्कर ने इनमें से 4 कॉलेजों की मौके पर जाकर पड़ताल की, तो पाया कि ये मापदंडों को पूरा ही नहीं करते हैं। पढ़िए रिपोर्ट
किस किस स्तर पर हुई जांच
1.जिला कलेक्टर की टीम ने किया भू स्वामित्व सत्यापन इसका उद्देश्य यह जांचना था कि कॉलेज जिस जमीन और भवन में संचालित होने का दावा कर रहे हैं, वह वास्तव में किसके नाम पर रजिस्टर्ड है।
2.सरकारी कॉलेज प्रोफेसरों की टीम का निरीक्षण इस टीम ने देखा कि कॉलेज तय मापदंडों के अनुसार संचालित हो रहे हैं या नहीं। यानी शिक्षकों की उपलब्धता, छात्रों की संख्या के अनुसार कक्षाओं की व्यवस्था, शौचालयों की सुचारू व्यवस्था, आवश्यक प्रयोगशालाएं और यह सुनिश्चित करना शामिल था कि कॉलेज की बिल्डिंग में कोई स्कूल तो नहीं चल रहा है।
3.दो जांच के बाद विश्वविद्यालय की टीम ने दोबारा जांच की इन दोनों डिटेल जांच के बाद यूनिवर्सिटी की संबद्धता देने वाली टीम ने तीसरी बार जाकर फिजिकल वेरिफिकेशन किया।
सिलसिलेवार जानिए भास्कर ने पड़ताल में क्या पाया

न बिल्डिंग, न टीचर, एडमिशन सेल ही सबकुछ मुरैना में एसपी ऑफिस के सामने यादव मार्केट में एसआरडी कॉलेज का दफ्तर है। जिस बिल्डिंग में दफ्तर बना है वहां कॉलेज के साथ-साथ एसआरडी स्कूल के पोस्टर भी लगे हुए थे। एडमिशन लेने के बहाने जब भास्कर रिपोर्टर यहां दाखिल हुआ, तो देखा कि एक हॉल में दो टेबल थी। इनमें से एक टेबल पर एक शख्स प्रिंटर और कंप्यूटर के साथ बैठा था। कुछ छात्र भी थे जो डॉक्यूमेंट देने आए थे। यहां कॉलेज संचालक परशुराम बालोटिया से बात हुई-
सवाल: बीएससी में एडमिशन लेना है?
जवाब: हो जाएगा।
सवाल: क्लासेस कब से शुरू होंगी?
जवाब: क्लासेस नहीं लगती हैं। यहां कॉलेज का सारा काम यहीं से होता है- यहीं फॉर्म जमा होंगे, एडमिट कार्ड यहीं से मिलेंगे।
सवाल: कॉलेज की बिल्डिंग कहां है?
जवाब: घड़ियाल केंद्र के पास।

एसआरडी कॉलेज के संचालक परशुराम बालोटिया ने बताया कि क्लासेस नहीं लगती।
स्कूल गार्ड बोला- जांच टीम के लिए कॉलेज का पोस्टर लगाया
कॉलेज संचालक के AB रोड पर घड़ियाल केंद्र के पास बताए कॉलेज पर जब हम पहुंचे तो वहां एंट्री गेट पर एसआरडी कॉलेज और एसआरडी स्कूल दोनों के पोस्टर लगे थे। दोनों के अलग-अलग पते लिखे थे, मगर दोनों एक ही बिल्डिंग में चल रहे थे। स्कूल में दाखिला लेने के बहाने हमने यहां मौजूद गार्ड से बात की-
सवाल: बच्चों का स्कूल में दाखिला करवाना है, हो जाएगा क्या?
जवाब: हां, हो जाएगा। आप कल सुबह 8:00 बजे आ जाइए।
सवाल: यहां तो कॉलेज के पोस्टर लगे हैं, तो स्कूल की क्लासेस कहां लगेंगी?
जवाब: जिस बिल्डिंग पर कॉलेज का पोस्टर लगा है, उसी में स्कूल चलता है। यहां कॉलेज की कोई बिल्डिंग नहीं है।
सवाल: कॉलेज का पोस्टर क्यों लगाया है?
जवाब: कॉलेज की जांच के लिए टीम आई थी, इसलिए उस बिल्डिंग पर कॉलेज का पोस्टर लगा दिया। वहां सिर्फ स्कूल के बच्चे पढ़ते हैं।

संचालक बोला- हमारे कॉलेज में क्लासेस नहीं लगती शिकारपुरा से लौटते वक्त, हमें मैप्स (मानसिंह इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज) कॉलेज का एक साइन बोर्ड दिखा। जब कॉलेज के दिए पते पर पहुंचे तो ये गांव के बीच में बना एक भवन था। जिस पर मैप्स स्कूल और मैप्स कॉलेज दोनों के पोस्टर एक साथ लगे थे। यहां कॉलेज संचालक का भाई गौरव मिला। उससे सिलसिलेवार बात की…..
सवाल: बीएससी में एडमिशन लेना था, क्या हो जाएगा?
जवाब: बिल्कुल हो जाएगा।
सवाल: मैं ऐसा कॉलेज ढूंढ रहा हूं, जिसमें सिर्फ परीक्षा देने आना पड़े। मैं आईआईटी की तैयारी भी कर रहा हूं।
जवाब: हो जाएगा, यहां तो वैसे भी स्कूल चलता है, कॉलेज आने की कोई जरूरत नहीं।

सवाल: क्या परीक्षा में पढ़कर आना होगा?
जवाब: इस बार थोड़ी सख्ती है। पहले तो फुल चीटिंग चलती थी। गांव के कॉलेज के पास एक छूट होती है कि वे अपने मनपसंद के सेंटर तय कर सकते हैं, इसलिए यह सब चीज बहुत आसानी से हो जाती है। आपके मामले में भी कोशिश करेंगे कि मदद हो जाए।
सवाल: आप लोग कहां रहते हैं?
जवाब: फर्स्ट फ्लोर पर हम रहते हैं। ग्राउंड फ्लोर और टॉप फ्लोर पर क्लासेस लगती है।

सिर्फ चार क्लासरूम, 30 बच्चों के बैठने की क्षमता
इस कॉलेज में बीए, बीकॉम, बीएससी(मैथ्स) और बीएससी(बॉटनी) के डिग्री कोर्सेस के लिए कुल 390 सीट्स हैं। इस हिसाब से पहले, दूसरे और तीसरे साल में कुल 1170 छात्र इस कॉलेज में पढ़ रहे होंगे। लेकिन कॉलेज की बिल्डिंग को हमने देखा तो सिर्फ 4 क्लासरूम हैं। उनमें लगे फर्नीचर के आधार पर एक कक्षा में अधिकतम 30 बच्चे बैठ सकते हैं।
इसके बावजूद 2024- 25 में इसकी संबद्धता जारी रखी गई। जो जांच टीम इस कॉलेज का निरीक्षण करने आई थी उसने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि पुस्तकालय में पुस्तकें बढ़ाएं और नए प्राचार्य और शिक्षकों की नियुक्ति करें। मगर हकीकत ये है कि इस बिल्डिंग में केवल स्कूल चल रहा है।
साल 2025–26 के लिए उच्च शिक्षा विभाग ने इस कॉलेज की मान्यता पर रोक लगा दी है लेकिन फिर भी संचालक कॉलेज में एडमिशन लेने का दावा कर रहा है। वह रिपोर्टर को बीएससी में एडमिशन देने को तैयार हो गया।

सैनिक डिग्री कॉलेज लिखा है, असल में यहां स्कूल चलता है।
रिपोर्टर: स्कूल में एडमिशन कराना है?
संचालक: बिल्कुल हो जाएगा।
रिपोर्टर: आपका स्कूल घड़ियाल केंद्र के सामने है?
संचालक: जी, फौजी ढाबे के पास है।
रिपोर्टर: बिल्डिंग पर सैनिक कॉलेज क्यों लिखा है?
संचालक: अपना कॉलेज भी है। जांच टीम के लिए लिखना पड़ा, लेकिन वहां स्कूल ही चलता है।
रिपोर्टर: कॉलेज में एडमिशन हो रहा है?
संचालक: हां, कॉलेज में भी एडमिशन चल रहा है।

रहवासी इलाके में बना कॉलेज मुरैना में ही एक सावर्णी कॉलेज का भी बैनर दिखाई दिया। इस पर दर्ज नंबरों पर कॉल कर भास्कर रिपोर्टर ने एडमिशन की बात को तो दूसरी तरफ से बोला- सोमवार को सिटी ऑफिस में आना। जब कॉलेज का पता पूछा तो कहा- शिकारपुर में है, लेकिन सटीक पता नहीं बताया। भास्कर रिपोर्टर ने शिकारपुरा पहुंचकर सावर्णी कॉलेज को ढूंढना शुरू किया।
एक स्टेशनरी वाले ने बताया कि उसकी दुकान से 200 मीटर दूर कॉलेज है। जब यहां पहुंचे तो देखा कि 1200 स्क्वायर फीट में बनी एक दो मंजिला बिल्डिंग पर सावर्णी कॉलेज और मुरैना ग्लोरी स्कूल का बैनर टंगा था। ये एक रहवासी कॉलोनी थी। यहां आसपास के लोगों से पूछा तो उन्होंने बताया कि यहां तो मुरैना ग्लोरी स्कूल चलता है, उन्होंने किसी कॉलेज के बच्चे को यहां पढ़ते नहीं देखा।

सावर्णी कॉलेज रहवासी इलाके में बनी एक बिल्डिंग में चलता है।
सवालों के घेरे में उच्च शिक्षा विभाग की जांच टीम भास्कर की पड़ताल में सामने आया कि ग्वालियर-चंबल संभाग में 60 फीसदी से ज्यादा कॉलेज उनके सिटी दफ्तरों से ही संचालित हो रहे हैं। इनकी या तो बिल्डिंग नहीं है या फिर इन कॉलेजों ने स्कूलों की बिल्डिंग में कॉलेज के बोर्ड टांग दिए हैं। कॉलेज संचालकों ने तो साफ कहा कि वे नकल कराकर पास भी करवा देंगे।
भास्कर ने जब जीवाजी यूनिवर्सिटी के संबद्धता विभाग से जुड़े अधिकारियों से बात की, तो नाम न बताने की शर्त पर उन्होंने कहा कि दरअसल जांच करने जो भी दल जाता है वह केवल खानापूर्ति कर वापस लौट आता है। कई जगहों पर कॉलेज संचालक सेटिंग करते हैं। ये सारा काम बेहद संगठित तरीके से चलता है।

मैप्स कॉलेज में क्लासेस नहीं लगती, लेकिन यहां से डिग्री मिल जाती है।
जीवाजी यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार राकेश कुशवाह से सीधी बात… भास्कर ने जब जीवाजी यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार राकेश कुशवाह से इस मामले को लेकर बात की तो उन्होंने माना कि कॉलेजों में कमियां हैं। यदि इनके आधार पर कॉलेजों की मान्यता खत्म करते तो यूनिवर्सिटी के सामने उन कॉलेजों में पढ़ रहे छात्रों को कहीं और ट्रांसफर करने का संकट खड़ा हो जाता।
इस स्थिति से निपटने के लिए बैठकों का दौर चला है और इस बात पर सहमति बनी है कि इस साल कॉलेज 50% तक मानकों को पूरा करते हैं, तो उन्हें मान्यता दी जाएगी।
1.क्या आप दावा करते हैं कि कोई फर्जी कॉलेज संचालित नहीं हो रहा? कुलसचिव: शासन स्तर पर जो जांच कराई गई है उसकी रिपोर्ट शासन स्तर पर ही जाती है। वह हमें नहीं मिली है, मगर यूनिवर्सिटी के स्तर पर जांच के लिए प्रोफेसर्स की नोडल टीम बनाई जाती है। मैं उसके आधार पर कह सकता हूं कि सौ फीसदी तो नहीं, मगर ज्यादातर कॉलेजों ने मापदंडों को पूरा किया है।
2.क्या देखकर कॉलेजों को मान्यता दी गई? कुलसचिव: जांच में प्रोफेसर्स की टीम सबसे पहले यह देखा कि बच्चों की संख्या के मुताबिक कक्षाएं हैं या नहीं? जिन विषयों में संबद्धता के लिए आवेदन किया है क्या उसके लिए शिक्षक और प्रयोगशालाएं हैं या नहीं? जिन कॉलेजों में 50 फीसदी या उससे ज्यादा शिक्षक हैं, हमने उन्हें भी सशर्त मान्यता दी है।
3.उच्च शिक्षा विभाग को जांच कराने की जरूरत क्यों पड़ी? कुलसचिव: प्रोफेसर्स की टीम संचालक द्वारा बताए जांच के पेपर्स का सत्यापन नहीं कर पाते हैं। यानी जमीन किसके नाम है और कॉलेज किसके नाम है। वे जो पेपर्स दिखा देते हैं उसको सही मान लेते हैं। इस आधार पर बहुत से कॉलेज फर्जी बिल्डिंग दिखाकर मान्यता ले लेते हैं। जमीन की जांच राजस्व विभाग ही कर सकता है। कलेक्टर को राजस्व की टीम बनाकर जमीन और भवन का सत्यापन कराने के निर्देश दिए।
