खंडवा के खालवा विकासखंड की महिलाएं—जिनमें कला बामने, पुष्पा कोगे, सरस्वती पाटिल, मंजू दीदी, अनीता दीदी, कल्पना दीदी, रुक्मिणी दीदी और आशा दीदी प्रमुख नाम हैं. इन्होंने परंपरागत गेहूं, चना, तुअर, तिलहन जैसी खेती को छोड़कर औषधीय फसलों की ओर रुख किया. खासतौर पर अश्वगंधा की खेती में उनकी रुचि तब जगी जब उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र और नमामि आजीविका मिशन के माध्यम से प्रशिक्षण प्राप्त किया.
अश्वगंधा क्यों है खास?अश्वगंधा को आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण औषधि माना जाता है. इसकी जड़ों का उपयोग कई प्रकार की दवाओं और हेल्थ सप्लीमेंट्स में किया जाता है. इसका उपयोग तनाव, नींद की कमी, थकान और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने जैसी समस्याओं के समाधान के लिए होता है. यही कारण है कि देश ही नहीं, विदेशों में भी अश्वगंधा की भारी मांग है.
महिला सशक्तिकरण और सामाजिक बदलावइन महिलाओं की सफलता सिर्फ उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि यह पूरे समाज के लिए एक सामाजिक क्रांति का संकेत है. इन महिलाओं की सफलता देखकर अब आसपास के गांवों के पुरुष किसान भी अश्वगंधा और अन्य औषधीय फसलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं. महिलाएं न केवल खेती कर रही हैं, बल्कि अन्य महिलाओं को प्रशिक्षण भी दे रही हैं और उनका मार्गदर्शन कर रही हैं.
सरकारी सहयोग की दरकारइन महिलाओं की मांग है कि सरकार इस प्रकार की खेती को और अधिक प्रोत्साहन दे. औषधीय फसलों के लिए विशेष सब्सिडी, बीज की उपलब्धता, विपणन सहायता और बाजार से जोड़ने की रणनीति यदि सरकार अपनाती है तो यह पहल और अधिक किसानों तक पहुंचेगी. साथ ही, औषधीय खेती से प्रदेश की अर्थव्यवस्था को भी नया आयाम मिलेगा.खंडवा की ये महिलाएं आज साबित कर रही हैं कि अगर संकल्प मजबूत हो और दिशा सही हो, तो कोई भी बदलाव नामुमकिन नहीं. अश्वगंधा की खेती ने न केवल उनके खेतों की सूरत बदली, बल्कि उनके जीवन की तस्वीर भी. ये महिलाएं आज खुद कमाने वाली, आत्मनिर्भर और दूसरों को राह दिखाने वाली प्रेरणास्रोत बन गई हैं.