पान की खेती में डबल प्रॉफिट: छतरपुर में 12वीं पास किसान उगा रहा बंगला और देसी पान, लखनऊ-मेरठ तक मांग – Chhatarpur (MP) News

पान की खेती में डबल प्रॉफिट:  छतरपुर में 12वीं पास किसान उगा रहा बंगला और देसी पान, लखनऊ-मेरठ तक मांग – Chhatarpur (MP) News


दैनिक भास्कर की स्मार्ट किसान सीरीज में इस बार बात पान की खेती की। आपने भी कभी न कभी तो पान खाया होगा। भारत में पान का धार्मिक महत्व भी है। छतरपुर के गढ़ीमलहरा गांव में 12वीं पास किसान पान की खेती कर दोगुना मुनाफा कमा रहा है। वह सालाना 10 लाख रुपए कमा

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महाराजपुर तहसील के गढ़ीमलहरा गांव के 53 साल के जमना प्रसाद चौरसिया के पिता लक्ष्मी प्रसाद चौरसिया पान की खेती करते थे। 12वीं की पढ़ाई के बाद जमना प्रसाद ने पुश्तैनी खेती को ही अपनाया। दो बेटे इंदौर और भोपाल में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं। जमना प्रसाद ने पान की खेती के बारे में बताया …

पानी की खेती की तैयारी दिसंबर महीने में ही शुरू हो जाती है।

किराए से ली जमीन, केमिकल फ्री मिट्‌टी की जरूरत जमना प्रसाद बताते हैं कि पिछले कई साल से पान की खेती कर रहा हूं। घर के पास 70 हजार वर्गफीट जमीन किराए से ली है। इसमें तीन बरेजों में 300 क्यारियों में खेती कर रहे हैं। 500 रुपए प्रति क्यारी के हिसाब से डेढ़ लाख रुपए प्रति साल से किराया है। पान की खेती के लिए बंजर जमीन की लाल या फिर खदान या तालाब की काली मिट्‌टी की जरूरत होती है। क्योंकि इसमें कभी केमिकल वाली फसल नहीं लगाई हुई होती। बीज बोने के तीन महीने पहले खेती की तैयारी शुरू कर देते हैं।

दिसंबर महीने में मिट्‌टी को डालकर सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। पान की खेती की प्रक्रिया फरवरी महीने से शुरू हो जाती है। 1 से 15 मार्च तक बीज बोए जाते हैं। इसके बाद चार बार पानी का स्प्रे किया जाता है। अप्रैल में बेलें लगाई जाती हैं। जून से बिक्री शुरू हो जाती है। अक्टूबर तक बेलें 10 से 15 फीट लंबी हो जाती हैं।

घास–फूस के कवर्ड शेड में खेती

चूंकि पान की बेल सेंसेटिव होती है। इसे ज्यादा धूप की जरूरत नहीं होती। मौसम के असर से बचाने के लिए घास–फूस का लकड़ी का शेड बनाया जाता है। इसके लिए आधी धूप और आधी छायादार जगह चाहिए होती है। इसके लिए चारों तरफ बांसों को 10 फीट की ऊंचाई तक गाढ़ा जाता है। इसे चारों ओर से ग्रीन नेट फिर काली पॉलीथिन लगाकर कवर्ड किया जाता है। ऊपर से घास की छत भी डाली जाती है।

बेलों को चढ़ाने के लिए लगाते हैं सनई

पान की कलम जब 6 सप्ताह की हो जाती है, तब उन्हें बांस की फंटी, सनई या जूट की डंडी का प्रयोग कर बेलों को ऊपर चढ़ाते हैं। 7-8 सप्ताह के बाद बेलों से कलम के पत्तों को अलग किया जाता है, जिसे ”पेडी का पान“ कहते हैं।

गर्मियों में क्यारी के पास गढ्ढे खोदे जाते हैं। उसमें पानी भर देते हैं। इसमें देसी खाद तिलहन का भूसा और सरसों की खली डाली जाती है। पान के पत्ते देख कर पानी दिया जाता है। अगर पत्ते पीले पड़ रहे हैं, तो पानी और देसी खाद डाली जाती है।

पानी की खेती के लिए जमीन को कवर्ड करना होता है। साथ ही, ऊपर से घास की छत भी बनाते हैं।

पानी की खेती के लिए जमीन को कवर्ड करना होता है। साथ ही, ऊपर से घास की छत भी बनाते हैं।

रोजाना 8 मजदूर, जूते–चप्पल पहनकर नहीं जाते

जमना प्रसाद के मुताबिक खेती में रोजाना 8 मजदूर लगते हैं। प्रति मजदूर 350 रुपए के हिसाब से भुगतान करते हैं। पान की खेती को बेटी की तरह सेवा मानते हैं। बरेजों में किसान जूते-चप्पल पहनकर नहीं जाते, क्योंकि पान का उपयोग भगवान की पूजा में किया जाता है। इस कारण इसकी खेती को पवित्रता और निष्ठा से करते हैं।

देशभर में पान की मांग

जमना प्रसाद का कहना है कि बंगला पान की मांग मुख्य रूप से लखनऊ में है। वहीं, देसी पान को सहारनपुर, मेरठ, रामपुर और मुरादाबाद जैसे उत्तर भारत के कई शहरों में भेजा जाता है।

जमना प्रसाद के दो और भाई जगदीश चौरसिया और राजेश चौरसिया भी पान की खेती कर रहे हैं। तीनों भाई पुश्तैनी खेती को आधुनिक ढंग से आगे बढ़ा रहे हैं।

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