भोपाल का ‘आसरा’ बना बुजुर्गों का आसरा, सालों से बेसहारा लोगों की कर रहा मदद, बुजुर्गों ने बताई अपनी व्यथा

भोपाल का ‘आसरा’ बना बुजुर्गों का आसरा, सालों से बेसहारा लोगों की कर रहा मदद, बुजुर्गों ने बताई अपनी व्यथा


भोपाल: शाहजहाँबाद के दिल में बसे ‘आसरा’ वृद्धाश्रम की दीवारों के बीच वर्षा की बूँदों जैसी उम्मीद खिलती है. यहां 85 बुज़ुर्ग उस आख़िरी किनारे की मदद ढूंढ़ते हैं, जिन्हें जिंदगी के सफ़र में वह साथ न मिला जो उन्हें चाहिए था. इनमें से कई वह हैं, जिनके रिश्तेदारों को छोड़कर चले जाने का दर्द अब तक महसूस करते हैं. कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें पहचानने वाला नहीं, फिर भी आश्रम की व्यवस्थाएं उन्हें अपनाने में पीछे नहीं रहतीं.

75 वर्षीय जयराम, जिन्हें भोपाल गैस त्रासदी से पहले से शहर से मोहब्बत है, कहते हैं कि सेवा का फल ही यहाँ उन्हें मजबूरन बांधे रखता है. “मैंने अपने बच्चों को तो बहुत पढ़ाया, पर अब जीवन यहीं आश्रम में कट रहा है” . पत्नी का निधन नौ वर्ष पहले हो गया. इस आश्रम में पिछले 12 साल से उनका बसेरा है. बच्चों के साथे मिलने आते उनके नाती-पोता ही सबसे बड़ी खुशी है.

वहीं डोंगर सिंह ठाकुर पिछले 15 वर्षों से आश्रम के मेहमान हैं. जनपद पंचायत से जुड़ी नौकरी में धोखा सहने के बाद उनका संघर्ष हाईकोर्ट तक पहुँचा, लेकिन आज एक मधुर फोन कॉल ही कभी-कभी उनके परिवार से जोड़ता है. कोरोना से पहले घरवालों ने जाया किया, पर उसके बाद बस फोन. हकीकत में आना सब भूल गए.

प्रबंधक समीरा मसीह का मानना है कि ‘आसरा’ केवल आश्रय नहीं, बल्कि ये परिवार है. “यहाँ 48 महिलाएँ और 37 पुरुष हैं,” और तीन बुज़ुर्ग जिनकी पहचान भी नहीं मिल पाई, उन्हें भी हम अपना मानते हैं.” ये तीनों आंध्र प्रदेश से ऐसे आए, जैसे कोई दस्तक देता है अँधेरे में और हमें सुनने का जुनून होता है उनका.

कई बार पुलिस बेसहारा बुज़ुर्गों को सीधा आश्रम पहुंचा देती है; कभी बच्चे उन्हें दरवाज़े पर छोड़ चले जाते हैं. मगर यहाँ हर घड़ी उनकी नज़रों से होते दर्द को दूर करने का प्रयास चलता रहता है डॉक्टर की सेवा, स्वच्छ भोजन, थोड़ी-बहुत खुशी और हजारों आश्वासन मिलते हैं बड़े ही प्यार से.

इस कहानी में इंसानियत की एक मधुर प्रतिध्वनि है तन्हा जीवन को एक नया घर देने की, बिछड़े रिश्तों को जुड़ने की, और समाज की आखिरी उम्मीदों को जीवित रखने की. ‘आसरा’ सिर्फ आश्रम नहीं, एक नाम है जहाँ जीवन फिर कहते-हँसते, ज्यों कहीं से कुछ खो गया हो तो कहीं से मिल गया हो.



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