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यशस्वी जायसवाल ने इंग्लैंड के खिलाफ दूसरी पारी में 10 रन पूरा करते ही इतिहास रच दिया. कभी टेंट में रहने को मजबूर जायसवाल ने दूसरे टेस्ट मैच के तीसरे दिन यशस्वी ने टेस्ट में अपने 2000 रन पूरे कर लिए.उन्होंने इस …और पढ़ें
यशस्वी जायसवाल ने 40 पारियों में पूरे किए 2000 रन.
हाइलाइट्स
- यशस्वी जायसवाल ने टेस्ट में ज्वॉइंट रूप से सबसे तेज 2000 रन पूरे किए
- जायसवाल को यह उपलब्धि हासिल करने को 10 रन चाहिए थे
- बाएं हाथ के बल्लेबाज जायसवाल दूसरी पारी में 28 रन बनाकर आउट हुए
यशस्वी जायसवाल (Yashasvi Jaiswal) को 2000 का आंकड़ा छूने के लिए 10 रन की जरूरत थी. पहली पारी में वह चूक गए थे.उन्होंने 40वीं टेस्ट पारी में दो हजार रन पूरे किए. इससे पहले वीरेंद्र सहवाग और राहुल द्रविड़ ने भी चालीस पारियों में अपने दो हजार टेस्ट रन पूरे किए थे.जायसवाल ने पहले टेस्ट मैच की पहली पारी में शानदार शतक जड़ा था.साल 1999 में द्रविड़ ने न्यूज़ीलैंड के खिलाफ हैमिल्टन में और वीरेंद्र सहवाग ने साल 2004 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चेन्नई में यह उपलब्धि हासिल की थी. विजय हजारे ने 43 पारियों में ये मुकाम हासिल किया था. विजय हजारे ने साल 1953 में विंडीज के खिलाफ ये कारनामा किया था.
यशस्वी जायसवाल ने 9 साल की उम्र में छोड़ दिया था घर
जायसवाल भारत के भरोसेमंद ओपनर के तौर पर उभर रहे हैं. क्रिकेट के लिए जायसवाल ने 9 की उम्र में घर छोड़ दिया था. वह उत्तर प्रदेश के भदोही से सीधे मुंबई चले गए थे. इस दौरान उनके पास पैसे भी नहीं थे. मायनगरी में उनको कोई जानने वाला भी नहीं था. मुंबई में उन्होंने ट्रेनिंग के साथ साथ एक डेयरी में काम करना शुरू कर दिया था. डेयरी से उन्हें कुछ कमाई भी हो जाती थी.बाद में उन्हें रहने के लिए यहां जगह भी मिल गई. लेकिन कुछ समय बाद डेयरी मालिक ने उन्हें काम से हटा दिया.
बड़ा क्रिकेटर बनने की चाह परेशानियों को झेला
क्रिकेट की ट्रेनिंग करने के बाद वह काफी थक जाते थे. उनसे काम नहीं हो पाता था इसलिए डेयरी मालिक ने उन्हें काम से हटा दिया. डेयरी से काम छोड़ने के बाद यशस्वी ट्रेनिंग के बाद ग्राउंड पर ही ग्राउंड्समैन के साथ टेंट में सोने लगे. उन्होंने दोबारा पैसों के लिए ग्राउंड के बाहर गोल गप्पे बेचने शुरू कर दिए. 28 दिसंबर 2001 को उत्तर प्रदेश के भदोही में जन्मे यशस्वी की मां को ये बात पता चली की उनका लाडला टेंट में सोने को मजबूर है तो उन्होंने बेटे को घर आने को कही लेकिन जायसवाल ने उनकी नहीं सुनी.
यशस्वी का कहना था कि जब तक वो बड़ा क्रिकेटर नहीं बन जाते तब तक वह गांव नहीं लौटेंगे.इसके बाद यश्स्वी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज वह किसी नाम के मोहताज नहीं है. आज उनकी कहानी प्ररेणादायक बन चुकी है.
करीब 15 साल से पत्रकारिता में सक्रिय. दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई. खेलों में खासकर क्रिकेट, बैडमिंटन, बॉक्सिंग और कुश्ती में दिलचस्पी. IPL, कॉमनवेल्थ गेम्स और प्रो रेसलिंग लीग इवेंट्स कवर किए हैं. फरवरी 2022 से…और पढ़ें
करीब 15 साल से पत्रकारिता में सक्रिय. दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई. खेलों में खासकर क्रिकेट, बैडमिंटन, बॉक्सिंग और कुश्ती में दिलचस्पी. IPL, कॉमनवेल्थ गेम्स और प्रो रेसलिंग लीग इवेंट्स कवर किए हैं. फरवरी 2022 से… और पढ़ें