शुभमन गिल को जब भारत का कप्तान बनाया गया तो हर किसी के मन में संशय थे.गिल के अंडर 19 दिनों के कोच और ट्रेनर ने उनकी प्रमुख विशेषताओं पर बात की और बताया कि कैसे व्यवहार में निरंतरता, आत्मविश्वास, अनुशासन, सिस्टम-के साथ चलना और तेज़ गेंदबाज़ी का सामना करने के लिए हर समय तैयार रहना, ये कुछ ऐसी खूबियाँ हैं जो शुभमन गिल को टेस्ट टीम की कमान संभालने और मंजिल तक ले जाने में मदद करेगा जिसकी झलक हमें इंग्लैंड में मिलना शुरु हो चुकी है.
भारत के U-19के कोच रह चुके अभय शर्मा ने पहली बार 14 वर्षीय शुभमन गिल को देखा तो उनका ध्यान उनके आचरण की स्थिरता पर गया. शुभमन ने पंजाब के लिए लगातार आठ शतक लगाए थे, लेकिन उनके व्यवहार में ऐसा कुछ नहीं था जो यह संकेत दे. अभय शर्मा ने बताया कि गिल का व्यवहार एक जैसा रहा, चाहे उन्होंने 100 रन बनाए हों या 10. उनकी मानसिकता शानदार थी, उन्हें पता था कि वे अच्छे हैं लेकिन हमेशा सुधार करना चाहते थे. बतौर बल्लेबाज आज शुभमन शीर्ष पर हैं तो ये उनकी खुद की लगन है क्योंकि गिल अपनी बल्लेबाज़ी का परखने में पुरानी शैली भरोसा करते है. बतौर कोच अभय ने बताया कि वो यह देखते हूैं कि बल्लेबाजी करते समय उसके पास कितना समय है और असली तेज़ गेंदबाज़ों के सामने वह कितना संयमित है. वह जानता है कि खुद को कैसे संचालित करना है, वह सुसंगत भी है, यही वजह है कि हर कोई उसे पसंद करता है.
टीम इंडिया के ट्रेनर रह चुके सोहम देसाई के पास भी शुभमन की कहानी है, यह भी उनके धैर्य और संयम के बारे में है. यह कहानी हैदराबाद में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ़ एकदिवसीय मैच में उनके 200वें रन से जुड़ी है. वह 2023 था, शुभमन तब 23 साल के थे. उन्होंने 47वें ओवर तक तेज़ी नहीं दिखाई क्योंकि वे टीम की योजना का पालन कर रहे थे. फिर उन्होंने ड्रेसिंग रूम से तेज़ी दिखाने या न दिखाने की अनुमति मांगी. एक बार जब उन्हें आगे बढ़ने की अनुमति मिल गई, तो उन्होंने ऐसा किया और अपना 200वाँ रन बनाया. यह उस लड़के के लिए था जो 25 साल का भी नहीं था,यह फिर से उनके व्यवहार की निरंतरता है.
कोच रमन बतौर बल्लेबाज शुभमन गिल को हमेशा याद करते हैं जो हमेशा अपने तक ही सीमित रहता था, लेकिन ऐसा इसलिए नहीं था क्योंकि उसके पास कहने के लिए बहुत कुछ नहीं था. रमन याद करते हैं, “वह कप्तान या उप-कप्तान नहीं था, शायद उसे लगा कि टीम प्रबंधन पर खुद को थोपने की कोशिश न करना बेहतर है. जब भी उससे पूछा जाता, वह हमेशा अपने विचार देने के लिए बहुत उत्सुक रहता. सीनियर भारतीय टीम में उनके शुरुआती दिन भी ऐसे ही थे. अब, यह पता चला है कि वह देखने, सुनने और आत्मसात करने में व्यस्त रहते थे. स्काईस्पोर्ट्स के साथ एक साक्षात्कार में, उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने वरिष्ठों से कप्तानी के कुछ गुण सीखे हैं – विराट कोहली की सक्रियता और रोहित शर्मा की सामरिक बारीकियाँ. शुभमन को आगे की राह के लिए तैयारी करना पसंद है, जब से उन्होंने 4 साल की उम्र में अपना बल्ला उठाया था. पाकिस्तान की सीमा पर पंजाब के गांव चक खेरे वाला में वह टीवी पर सचिन तेंदुलकर को देखता था और उनकी तरह बल्लेबाजी करने की कोशिश करता था. अपने विशाल पुश्तैनी घर के आंगन में शुभमन दीवार पर गेंद फेंकता और तुरंत गार्ड लेकर सीधे हिट करता, बिल्कुल तेंदुलकर की तरह. वह खुद पर निर्भर था, लेकिन क्रिकेट के दीवाने किसान पिता, जो यह नहीं मानते थे कि शिक्षा ही सफलता और ज्ञान का एकमात्र रास्ता है, ने उसकी मदद की. शुभमन की क्रिकेट के लिए परिवार चंडीगढ़ चला गया. 8 से 14 साल की उम्र तक, अपने जीवन के हर दिन, बल्लेबाज़ी के इस महारथी ने करीब 6 घंटे तक रोज बल्लेबाजी की.
शर्मा को अपने अंडर-19 के दिन और ब्राइटन में अपना शतक याद है. ये वो दौरा था,जिसमें कोच शर्मा ने गिल को नंबर 3 पर खेलने के लिए समर्थन दिया था और उन्हें थ्रोडाउन देने में लंबे समय तक बिताया था. दोनों के बीच एक रिश्ता बन गया था. उन्होंने कहा, “मुझे अभी भी याद है कि जब उन्हें मैन ऑफ द मैच का पुरस्कार मिला, तो जब सभी लोग मैदान पर थे, तो वह मेरे पास आए, मुझे धन्यवाद दिया और मेरे पैर छुए. यह एक भावुक क्षण था. “सालों बाद, हम फिर मिले, तब तक वह भारतीय टीम का नियमित खिलाड़ी बन चुका था. यह रणजी सत्र के दौरान जयपुर की बात है मैं दिल्ली की कोचिंग कर रहा था और वह पंजाब के लिए खेल रहा था. दोनों टीमें नेट पर अभ्यास कर रही थीं, मैदान भरा हुआ था तभी शुभमन ने मुझे देखा अपने आचरण में निरंतरता बनाए रखते हुए, शुभमन ने शर्मा के पैर छुए, जैसे वह एक होनहार जूनियर के रूप में करते थे.