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Sagar News: सागर में 200 साल पहले बेबस नदी पर हैंगिंग ब्रिज (झूला पुल) का निर्माण किया गया था, यह एक विशाल लोहे का झूलता पुल था, लेकिन अब..
हाइलाइट्स
- सागर में 200 साल पहले बना था हैंगिंग ब्रिज
- ब्रिज 115 साल तक उपयोग में रहा, 1944 में बाढ़ में तबाह हुआ
- वर्तमान में पुल के स्तम्भ ही शेष हैं, संक्रांति पर मेला लगता है
115 साल तक उपयोग हुआ फिर…
इतिहासकारों के अनुसार, वर्ष 1828 में एक अंग्रेज इंजीनियर प्रेसग्रैव ने बेबस नदी पर स्थानीय कारीगरों की मदद से हैंगिंग ब्रिज का निर्माण कराया था, जिसकी लागत उस समय 37 हजार रुपये आई थी. यह पुल 13 फीट चौड़ा और 250 फीट लंबा था. इसमें जमीन से कोई भी खंबा या स्तंभ का सहारा नहीं दिया गया था, जिसकी वजह से यह हवा में झूलता दिखाई देता था. यह पुल 115 साल तक उपयोग में रहा और आजादी से ठीक 4 साल पहले सन 1944 में आयी भयंकर बाढ़ में यह पुल तबाह हो गया था.
वर्तमान समय में नदी के दोनों किनारों पर बने पुल के स्तम्भ ही शेष हैं. लेकिन, जब यह झूला पुल चालू था, उस समय लेफ्टिनेंट कर्नल जॉन हॉटन द्वारा लिया गया फोटोग्राफ इसकी भव्यता और दिव्यता को दर्शाता है. बेबस नदी के किनारे अब भी झूला पुल के अवशेष देखे जा सकते हैं. जिसमें इसकी प्रवेश द्वार लगभग 15 फीट ऊंचे हैं, पुल के स्तम्भों की नदी तल से ऊँचाई लगभग 60 फीट है नदी की चौड़ाई 182 फीट है.
अब लगता है झूला पुल मेला…
सागर यूनिवर्सिटी के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के हेड प्रो. नागेश दुबे बताते हैं, ब्रिटिश सेना के आवागमन में नदी की चौड़ाई के कारण काफी दिक्कत होती थी, इसलिए ये पुल बनाया गया था. सानोधा का हैंगिंग ब्रिज अंग्रेजों के समय की इंजीनियरिंग का अनूठा उदाहरण था. मध्य प्रदेश और आसपास के राज्यों में अंग्रेजों के समय पर बनाया गया यह एकमात्र ब्रिज था. सन 1828 में अंग्रेज इंजीनियर प्रेसग्रेव ने स्थानीय मजदूर और लोगों की मदद से ब्रिज का निर्माण कराया था, उस समय आवागमन के लिए महत्वपूर्ण ब्रिज था. आज इस इलाके को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता है. वर्तमान में यहां पर संक्रांति के समय भव्य मेला लगता है, जिसे झूला पुल के नाम से जाना जाता है.