बारिश में उगता है ऐसा ‘शाकाहारी मटन’ जो नॉनवेज को दे रहा सीधी टक्कर, कीमत ₹1000 किलो तक

बारिश में उगता है ऐसा ‘शाकाहारी मटन’ जो नॉनवेज को दे रहा सीधी टक्कर, कीमत ₹1000 किलो तक


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Wild Mushroom ki Kheti: MP के जंगलों में मानसून में उगने वाला ‘धरती का फूल’ मशरूम न केवल स्वादिष्ट है बल्कि ₹1000 किलो तक बिकता है. जानिए इसके पोषण, लाभ और कैसे यह आदिवासियों की कमाई का बड़ा जरिया बन रहा है.

हाइलाइट्स

  • जंगली मशरूम की कीमत ₹1000 किलो तक होती है.
  • मध्य प्रदेश के जंगलों में मानसून में उगता है ‘धरती का फूल’ मशरूम.
  • आदिवासी महिलाएं मशरूम बेचकर आत्मनिर्भर बन रही हैं.
मानसून की पहली बूंदें जब धरती को छूती हैं, तो मध्य प्रदेश के घने जंगलों में एक अनोखी खुशबू के साथ उगती है एक ख़ास उपज ‘धरती का फूल’, यानी जंगली मशरूम. यह कोई आम सब्ज़ी नहीं, बल्कि आदिवासी इलाकों की थाली का वह रत्न है, जो स्वाद, पोषण और आय का संगम बन गया है.

डिंडोरी, मंडला, बालाघाट, शहडोल और खंडवा जैसे आदिवासी ज़िलों में बारिश के बाद ये वाइल्ड मशरूम जंगल की गोद में चुपचाप उगते हैं. ताजगी के इन खास पलों में, आदिवासी महिलाएं सुबह 5 बजे से जंगल की ओर निकल पड़ती हैं अपने अनुभव और समझ से सही मशरूम चुनती हैं. फिर इन्हें बाज़ार में ले जाकर ₹600 से ₹1,000 प्रति किलो तक बेचती हैं. कुछ किस्में इससे भी अधिक दाम तक पहुँचती हैं.

क्यों कहते हैं इसे ‘शाकाहारी मटन’?
धरती के इस फूल में न केवल स्वाद है, बल्कि पोषण भी भरपूर है. इसमें प्रोटीन, फाइबर, विटामिन बी और डी, ज़िंक, आयरन जैसे खनिज पाए जाते हैं, जबकि फैट न के बराबर होता है. यही वजह है कि कई लोग इसे “शाकाहारी मटन” कहते हैं. इसके सेवन से न सिर्फ स्वाद मिलता है, बल्कि इम्यूनिटी भी बढ़ती है. यह मशरूम कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में भी कारगर बताया गया है.

सतर्कता ज़रूरी, परंपरा ही पहचान
हालांकि जंगली मशरूम स्वादिष्ट होते हैं, लेकिन सही पहचान बेहद जरूरी है. आदिवासी समुदायों के पास इस ज्ञान की पीढ़ियों पुरानी विरासत है वे ज़हरीले मशरूम से सुरक्षित उपज को पहचानते हैं. इसे अच्छी तरह धोकर ही पकाया जाता है और जल्दी इस्तेमाल करना बेहतर होता है.

आदिवासी आजीविका का मजबूत सहारा
इस ‘धरती के फूल’ ने जंगलों में रहने वाले परिवारों को न केवल पोषण दिया है, बल्कि एक सशक्त आर्थिक साधन भी प्रदान किया है. आज आदिवासी महिलाएं मशरूम बेचकर आत्मनिर्भर बन रही हैं. कई समूहों को सरकार और आजीविका मिशन से सहयोग भी मिल रहा है.

भविष्य की संभावनाएं
सरकार अगर इस प्राकृतिक उपज के लिए संग्रहण, प्रसंस्करण और विपणन की योजनाएं बनाती है, तो यह मशरूम दूध और दाल की तरह रोज़मर्रा की ज़रूरत में शामिल हो सकता है. इससे जंगल सुरक्षित रहेंगे और जंगलों के वासी आत्मनिर्भर.

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Disclaimer: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह, एक्सपर्ट्स से की गई बातचीत के आधार पर है. यह सामान्य जानकारी है, व्यक्तिगत सलाह नहीं. इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही कोई चीज उपयोग करें. Local-18 किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा.



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