रिलायंस फ्रेश और सांची को लौटाने होंगे 5.28 रु: इंदौर में तीन छाछ के पाउच पर ज्यादा वसूले थे; एडवोकेट ने लड़ा 7 साल केस, 40 बार हुई पेशी – Indore News

रिलायंस फ्रेश और सांची को लौटाने होंगे 5.28 रु:  इंदौर में तीन छाछ के पाउच पर ज्यादा वसूले थे; एडवोकेट ने लड़ा 7 साल केस, 40 बार हुई पेशी – Indore News


एडवोकेट नरेंद्र तिवारी के परिवाद पर उपभोक्ता फोरम ने फैसला दिया है।

इंदौर के एडवोकेट नरेंद्र तिवारी से रिलायंस फ्रेश स्टोर ने सांची छाछ के तीन पाउच पर 5.28 रुपए ज्यादा वसूल लिए। आपत्ति के बाद भी राशि वापस नहीं की गई, तो तिवारी ने उपभोक्ता फोरम में केस दर्ज कराया। सात साल तक चले मामले में 40 बार सुनवाई हुई।

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अब जिला उपभोक्ता फोरम ने आदेश दिया है कि रिलायंस फ्रेश और सांची, दोनों को 2.64-2.64 रुपए लौटाने होंगे। साथ ही मानसिक प्रताड़ना के लिए 3,000 रुपए और केस खर्च के 2,000 रुपए भी अदा करने होंगे।

पीड़ित एडवोकेट नरेंद्र तिवारी ने दैनिक भास्कर को बताया कि सवाल 5.28 रुपए का नहीं है। कई स्टोर इस तरह से ग्राहकों से ज्यादा पैसे ले लेते हैं पर वे ध्यान नहीं देते और ठगे जाते हैं। इस केस के जरिए लोगों में जागरूकता लाना है ताकि वे अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहें।

सात साल में चालीस बार पेशी पर गया, निश्चित रूप से इसमें मेरा काफी पैसा खर्च हुआ। फोरम के सामने मुझे झूठा साबित करने की कोशिश की गई। कहा गया कि बिल पर कहीं भी खरीदने वाले का नाम (नरेंद्र तिवारी) नहीं है। ऐसे में वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं है। उन्होंने उलट हमारी (रिलायंस फ्रेश) आउटलेट की साख को खराब करने का प्रयास किया। यह भी तर्क दिया कि नापतौल विभाग की ओर से वजन की पर्ची, तुलवाई, तारीख आदि संबंधी रसीदें या कार्यवाही के दस्तावेज भी पेश नहीं किए हैं।

यह भी तर्क दिए कि इंदौर दुग्ध संघ ने जो कीमत प्रिंट की है वह नीली स्याही से अंकित है। ऐसे में रिलायंस की ओर से सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की गई है। इन तर्कों के साथ दावा पेश खारिज करने की अपील की। आउटलेट यह भी साबित नहीं कर पाया कि 5.28 रु. किस बात के लिए हैं। कहा कि ‘अलग चार्ज तो लगता है’। इस पर फोरम ने मेरे पक्ष में फैसला सुनाया।

10-10 रुपए के 3 पाउच खरीदे थे, लिए 35.28 मामला 31 मार्च 2018 का है। इंदौर के एडवोकेट नरेंद्र तिवारी ने ट्रेड सेंटर स्थित रिलायंस फ्रेश, रिलायंस लिमिटेड से सांची छाछ के 10-10 रुपए वाले तीन पाउच खरीदे थे। इस पर रिलायंस ने उन्हें 35.28 रुपए का बिल दिया।

एडवोकेट ने जब छाछ के पाउच देखे तो उस पर कीमत 10 रुपए लिखी हुई थी। उन्होंने आउटलेट संचालक से कहा कि छाछ की कीमत प्रति पाउच 10 रुपए है। ऐसे में कुल कीमत 30 रुपए होती है लेकिन उनसे तीनों के कुल 5.28 रुपए ज्यादा लिए गए हैं। बिल बताया तो संचालक ने कहा कि यह नियम है। यहां जो ज्यादा रुपए लिए गए है, उसका जिक्र है। उनसे सही कीमत ली गई है और 5.28 रुपए लौटाने से इनकार कर दिया।

एडवोकेट ने बिल समेत सभी सबूतों के साथ उपभोक्ता फोरम में परिवाद लगाया।

लैंडलाइन और टोल फ्री नंबर से भी नहीं मिला रिस्पांस इसके बाद उन्होंने सांची के लैंडलाइन फोन नंबर और टोल फ्री नंबर पर फोन लगाए लेकिन हमेशा व्यस्त रहने से संपर्क नहीं हो सका। फिर उन्होंने इंदौर सहकारी दुग्ध संघ मर्यादित (सांची), इंदौर और रिलायंस फ्रेश को नोटिस जारी किए लेकिन दोनों ने जवाब नहीं दिया।

फिर 3 अप्रैल 2018 को नाप तौल विभाग को लिखित शिकायत की। वहां से भी कोई रिस्पांस नहीं मिला। आखिरकार उन्होंने 4 अप्रैल 2018 को उपभोक्ता फोरम की शरण ली। इसमें इंदौर दुग्ध संघ और रिलायंस फ्रेश को पार्टी बनाया।

सांची की ओर से कोई पेश ही नहीं हुआ मामले में फोरम ने इंदौर दुग्ध संघ और रिलायंस फ्रेश को सुनवाई के लिए तलब किया। इसमें इंदौर दुग्ध संघ की ओर से हर बार कोई उपस्थित नहीं हुआ। इस पर फोरम ने इसे लेकर एक पक्षीय निर्णय लिया और रिलायंस फ्रेश और पीड़ित पक्ष के बीच सुनवाई शुरू की।

इसमें रिलायंस फ्रेश के एडवोकेट की ओर से भी वही तर्क दिए गए जो आउटलेट पर संचालक ने मौके पर दिए थे। उनका कहना था कि 5.28 रुपए अलग से लगने वाला चार्ज है जो सही लगाया गया है।

सहेजकर रखे छाछ के खाली पाउच और बिल पीड़ित एडवोकेट की ओर से खरीदे गए छाछ का बिल, उसके यूज करने के बाद के खाली पाउच, नाप तौल विभाग को की गई शिकायत के दस्तावेज फोरम में पेश किए। उन्होंने तर्क दिए कि छाछ के पाउच पर जो कीमत रखी है वही वसूली जानी था या फिर सांची व रिलायंस आउटलेट ने जो ज्यादा कीमत वसूली है, वह पाउच पर अंकित होनी थी।

40 से ज्यादा बार पेशी, मिला न्याय इधर, पीड़ित एडवोकेट नरेंद्र तिवारी का कहना है कि सात साल में 40 बार पेशी हुई। एक पेशी के बाद दूसरी पेशी में आमतौर पर दो से तीन माह का समय लगता है। दूसरा कारण 2019 से करीब ढाई साल तक कोरोना काल भी रहा।फोरम में ज्यूडिशियल अध्यक्ष और दो सदस्यों की मौजूदगी में सुनवाई होती है। कई बार पोस्ट भी खाली रहती है जिसके चलते सुनवाई आगे बढ़ जाती है। कई बार विरोधी पक्षकार के एडवोकेट भी अलग-अलग कारणों से पेश नहीं हो पाते, यह भी कारण रहता है।

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