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Narmada Parikrama: संत जयराम दास महाराज ने लोकल 18 से कहा कि इस दौरान परिक्रमा करने वालों को एक ही जगह पर रहना होता है, चाहे वो कोई आश्रम हो, मंदिर परिसर हो या गांव के किनारे कोई सुरक्षित जगह.
चातुर्मास के दौरान नर्मदा परिक्रमा नहीं करने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि ये चार महीने वर्षा ऋतु के होते हैं. नर्मदा परिक्रमा का मार्ग नदी किनारे-किनारे होता है लेकिन बारिश के समय नर्मदा का जलस्तर बहुत बढ़ जाता है. नदी किनारे के घाट, जंगल के रास्ते, छोटे पुल और संकरे मार्ग जलमग्न हो जाते हैं, जिससे आगे बढ़ना असंभव हो जाता है. कई जगहों पर नदी-नालों में अचानक बाढ़ जैसी स्थिति बन जाती है, जिससे परिक्रमा करने वालों की जान को खतरा हो सकता है.
संत जयराम दास महाराज लोकल 18 को बताते हैं कि इस दौरान परिक्रमावासियों को एक ही स्थान पर रहना होता है, चाहे वह कोई आश्रम हो, मंदिर परिसर हो या गांव के किनारे कोई सुरक्षित जगह. उन्हें चार महीने तक वहीं रहना होता है. यात्रा करना, स्थान बदलना या परिक्रमा मार्ग पर आगे बढ़ना धर्मशास्त्रों के अनुसार वर्जित भी है और असुरक्षित भी. चातुर्मास के दौरान परिक्रमावासी अपनी दिनचर्या में खास अनुशासन रखते हैं. सात्त्विक भोजन, ब्रह्मचर्य पालन, ध्यान, मंत्र जाप और मां नर्मदा की आराधना उनका केंद्र बन जाती है. नर्मदा स्नान, आरती और नर्मदाष्टक का पाठ उनके दैनिक कर्म बन जाते हैं.
अब कब शुरू होगी नर्मदा परिक्रमा?
यह भी मान्यता है कि चातुर्मास में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और जब तक वह पुनः जागते नहीं हैं, तब तक कोई भी मांगलिक या शुभ यात्रा नहीं की जाती. चातुर्मास के बाद अब नर्मदा परिक्रमा की यात्रा 12 नवंबर 2025 को देवउठनी एकादशी के बाद ही पुनः आरंभ होगी. तब तक परिक्रमावासी खासकर साधु-संत मां नर्मदा और भगवान शिव की साधना और भक्ति में किसी एक ही स्थान पर रहकर गुजारेंगे.