एमपी सरकार जंगलों की कटाई रोकने और जंगल पर आश्रित आदिवासी वर्ग की आजीविका बढ़ाने के लिए वन विज्ञान केंद्र शुरू करने जा रही है। वन विकास केंद्र स्थानीय स्तर पर रिसर्च करके ये तय करेंगे कि किस क्षेत्र में किस प्रजाति के पौधे लगाकर जंगल बढ़ाना चाहिए।
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फिलहाल तीन क्षेत्रों विंध्य, महाकौशल और मध्य क्षेत्र में ये वन विकास केंद्र पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किए जाएंगे। वन विज्ञान केंद्र (VVK) को कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) की तर्ज पर स्थापित किया जाएगा।
सागौन के बजाय स्थानीय आजीविका को प्राथमिकता आमतौर पर मप्र में वन विभाग सागौन के पौधे लगाने पर जोर देता है। उसकी वजह ये है कि जानवर सागौन को नुकसान नहीं पहुंचाते और इमारती लकड़ी होने के कारण इससे सरकार को आमदनी अच्छी होती है।
अब वन विज्ञान केंद्र के जरिए स्थानीय जलवायु और वातावरण में आदिवासी वर्ग की आजीविका को बढ़ाने में मददगार पेड़ लगाने के लिए शोध करेगा। इसके बाद हरड़, बहेड़ा, आंवला, महुआ जैसे पेड़ लगाए जाएंगे। इससे जंगल भी बचेंगे और आदिवासी वर्ग की आजीविका भी बढ़ेगी।
IIFM देगा टेक्निकल सपोर्ट वन विकास केंद्रों का संचालन करने के लिए तीन एनजीओ चयनित किए जाएंगे। इस काम में आईआईएफएम यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट टेक्निकल सपोर्ट देगा।
वन विभाग इस पूरे प्रोजेक्ट की निगरानी करेगा। इस पायलट में तीन प्रमुख आधार होंगे। पहला वन विभाग, दूसरा संबंधित ग्राम सभा (स्थानीय जनसमुदाय का प्रतिनिधित्व करेगी) और तीसरा निजी निवेशक।
रविवार को सीएम ने वन विज्ञान केन्द्र को लेकर बैठक की।
महाराष्ट्र के जलयुक्त शिविर के कॉन्सेप्ट पर भी होगा काम महाराष्ट्र में वाटरशेड मैनेजमेंट के लिए सरकार ने एनजीओ, ग्रामीण विकास विभाग, स्व सहायता समूहों की मदद से सूखाग्रस्त गांवों को पानीदार बनाने पर काम किया।
इसमें तालाबों, नदी, नालों का चौड़ीकरण, गहरीकरण पर काम शामिल है। करीब 25 हजार गांवों का चयन कर सरकार ने वर्षा जल को रोककर सिंचाई क्षमता को दो फसलें पैदा करने पर काम किया है।
बोलवेल रीचार्ज, मिट्टी, कॉन्क्रीट के चैक डेम, छोटे बांध बनाकर करीब 22,593 गांवों में 6.3 लाख काम कराए गए। 20,544 गांवों को जलपूर्ण घोषित किया गया।
27 lakh TCM तक जल भंडारण क्षमता हासिल हुई और सिंचाई क्षमता 39.04 लाख हेक्टेयर तक पहुंची। इस कॉन्सेप्ट पर वन विज्ञान केंद्र में काम किया जाएगा।
वन विज्ञान केंद्र की तर्ज पर करेंगे काम
- वैज्ञानिक संस्थानों, सरकारी कार्यक्रमों और जनजातीय समुदायों के बीच सेतु का काम करना।
- डिग्रेड यानी विशेष रूप से निम्नीकृत वनों के लिए कार्ययोजना बनाने में ग्राम सभाओं की मदद करेंगे।
- वनोपज की मार्केटिंग के लिए मार्केट लिंकेज और प्रशिक्षण देंगे।
- सरकारी, प्राइवेट और बहुपक्षीय स्रोतों से संसाधन एकत्रित करना।
- सीएसआर (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी), कैम्पा फंड (प्रतिपूरक वनीकरण निधि) और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्त (जैसे कार्बन क्रेडिट्स) के जरिए रिसोर्स जुटाना।
अप्रैल में हुआ था मंथन, केंद्र को प्रस्ताव मंजूरी के लिए भेजा तीन महीने पहले 18-19 अप्रैल को भोपाल के प्रशासन अकादमी में मप्र के जनजातीय क्षेत्रों में समुदाय आधारित वन पुर्नस्थापन एवं जलवायु परिवर्तन अनुकूल आजीविका विषय पर विशेषज्ञों ने मंथन कर इसका ड्राफ्ट तैयार किया था। रविवार को सीएम ने इसकी मंजूरी दी है। अब इसे केंद्र सरकार के पास मंजूरी के लिए भेजा है।