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Balaghat News: रमेश राहंगडाले की पत्नी शांति उनकी काफी मदद करती हैं. वह उन्हें घर से लाने ले जाने का काम करती हैं. वह जो कुछ भी बच्चों को पढ़ाते हैं, शांति उसे ब्लैक बोर्ड पर लिखने का काम करती हैं.
खास बात यह है कि रमेश राहंगडाले ये सब बिना किसी किताब की मदद से पढ़ा रहे थे. उनके पढ़ाने की शैली में आत्मविश्वास था. वह ऐसे पढ़ा रहे थे, मानो बच्चों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का ध्येय हो. भले ही वह दुनिया न देख सकते हों लेकिन बच्चों को ज्ञान की राह पर चला रहे हैं. उन्होंने लोकल 18 से बात करते हुए कहा कि वह जन्म के बाद देख पाते थे लेकिन नौकरी के कुछ समय के बाद उन्हें दिखना बंद हो गया. शुरुआत में तो लोगों ने काफी विरोध किया लेकिन शासन के नियम बताने और पढ़ाने के तरीके को देखने के बाद उन लोगों का व्यवहार नम्र पड़ा. इसके बाद उन्होंने उनके काम को सराहा. लोगों की सराहना से अच्छा लगता है. वहीं लोगों में समानुभूति का भाव होना चाहिए, जिससे किसी भी दिव्यांग के लिए दुर्भावना नहीं आएगी. बच्चे छोटे होते हैं, वो इन बातों को समझ नहीं पाते हैं लेकिन समय के साथ वो भी समझते हैं और समन्वय के साथ सीखते हैं.
रमेश राहंगडाले की पत्नी शांति भी उनके साथ कदम से कदम मिला रही हैं. वह उनकी काफी मदद करती हैं. वह उन्हें घर से लाने ले जाने का काम करती हैं. रमेश जो कुछ भी बच्चों को पढ़ाते हैं, उसे शांति बोर्ड पर लिखने का काम करती हैं.
सिलेबस में बदलाव हो तो…
वैसे तो रमेश खुद ही बिना किताब के पढ़ाते हैं लेकिन सिलेबस में कोई बदलाव आए, तो वह घर पर उसकी तैयारी करते हैं और स्कूल आकर उसे आसानी से बच्चों को पढ़ाते हैं. बच्चे भी उनकी पढ़ाई को खूब समझते हैं. छात्रों का कहना है कि रमेश सर का पढ़ाया हमेशा याद रहता है. वह हमारे प्रिय शिक्षक हैं.