खुद देख नहीं सकते लेकिन पढ़ाने का तरीका शानदार, एक शिक्षक की कहानी

खुद देख नहीं सकते लेकिन पढ़ाने का तरीका शानदार, एक शिक्षक की कहानी


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Balaghat News: रमेश राहंगडाले की पत्नी शांति उनकी काफी मदद करती हैं. वह उन्हें घर से लाने ले जाने का काम करती हैं. वह जो कुछ भी बच्चों को पढ़ाते हैं, शांति उसे ब्लैक बोर्ड पर लिखने का काम करती हैं.

बालाघाट. मध्य प्रदेश के बालाघाट में लोकल 18 की मुलाकात एक ऐसे टीचर से हुई, जिनकी आंखों में भले ही रोशनी न हो लेकिन वह भारत के भविष्य के जीवन में दुनियादारी के रंग भर रहे हैं. दरअसल बालाघाट से करीब पांच किलोमीटर दूर स्थित भरवेली के शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला में वह मिडिल स्कूल में पढ़ा रहे हैं. उनका नाम रमेश राहंगडाले है. वह करीब 36 साल से बच्चों को पढ़ा रहे हैं. जब हम स्कूल की 8वीं क्लास में पहुंचे, तो वह बच्चों को प्राकृतिक संसाधन और कृत्रिम संसाधन के बारे में पढ़ा रहे थे. वह बच्चों को पढ़ा रहे थे कि वन कैसे बने, पेड़ों की सघनता क्या होती है, सौरमंडल क्या होता है, जमीन से कच्चा ईंधन कैसे निकलत है, उससे पेट्रोल, डीजल और दूसरे ज्वलनशील पदार्थ बनते हैं. ऐसे में ये मानव निर्मित संसाधन या कृत्रिम संसाधन कहलाते हैं.

खास बात यह है कि रमेश राहंगडाले ये सब बिना किसी किताब की मदद से पढ़ा रहे थे. उनके पढ़ाने की शैली में आत्मविश्वास था. वह ऐसे पढ़ा रहे थे, मानो बच्चों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने का ध्येय हो. भले ही वह दुनिया न देख सकते हों लेकिन बच्चों को ज्ञान की राह पर चला रहे हैं. उन्होंने लोकल 18 से बात करते हुए कहा कि वह जन्म के बाद देख पाते थे लेकिन नौकरी के कुछ समय के बाद उन्हें दिखना बंद हो गया. शुरुआत में तो लोगों ने काफी विरोध किया लेकिन शासन के नियम बताने और पढ़ाने के तरीके को देखने के बाद उन लोगों का व्यवहार नम्र पड़ा. इसके बाद उन्होंने उनके काम को सराहा. लोगों की सराहना से अच्छा लगता है. वहीं लोगों में समानुभूति का भाव होना चाहिए, जिससे किसी भी दिव्यांग के लिए दुर्भावना नहीं आएगी. बच्चे छोटे होते हैं, वो इन बातों को समझ नहीं पाते हैं लेकिन समय के साथ वो भी समझते हैं और समन्वय के साथ सीखते हैं.

पत्नी का भी अहम योगदान
रमेश राहंगडाले की पत्नी शांति भी उनके साथ कदम से कदम मिला रही हैं. वह उनकी काफी मदद करती हैं. वह उन्हें घर से लाने ले जाने का काम करती हैं. रमेश जो कुछ भी बच्चों को पढ़ाते हैं, उसे शांति बोर्ड पर लिखने का काम करती हैं.

सिलेबस में बदलाव हो तो…
वैसे तो रमेश खुद ही बिना किताब के पढ़ाते हैं लेकिन सिलेबस में कोई बदलाव आए, तो वह घर पर उसकी तैयारी करते हैं और स्कूल आकर उसे आसानी से बच्चों को पढ़ाते हैं. बच्चे भी उनकी पढ़ाई को खूब समझते हैं. छात्रों का कहना है कि रमेश सर का पढ़ाया हमेशा याद रहता है. वह हमारे प्रिय शिक्षक हैं.

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