समरसता के बहाने सियासत? भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग पर कांग्रेस का तीखा प्रहार

समरसता के बहाने सियासत? भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग पर कांग्रेस का तीखा प्रहार


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MP Politics : ग्वालियर में हुए सामाजिक समरसता सम्मेलन के जरिए भाजपा ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है. मुख्यमंत्री मोहन यादव और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंच साझा करते हुए डॉ. अंबेडकर और श्रीक…और पढ़ें

सीएम मोहन यादव ने कांग्रेस पर बड़ा हमला बोला है.

हाइलाइट्स

  • सामाजिक समरसता सम्‍मेलन से बढ़ी सियासी हलचल
  • एक मंच पर आए सीएम मोहन यादव और ज्‍योतिरादित्‍य
  • डॉ. अंबेडकर और श्रीकृष्ण-सुदामा का उदाहरण दिया
ग्वालियर. यहां आयोजित हुए सामाजिक समरसता सम्मेलन महज एक सामाजिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि भाजपा की एक राजनीतिक स्‍ट्रेटजी भी थी. मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का एक साथ मंच साझा करना इस बात का संकेत है कि पार्टी अब सामाजिक न्याय, ओबीसी-दलित-आदिवासी समूहों को नए तरीके से साधने की कोशिश कर रही है. इस कार्यक्रम में डॉ. अंबेडकर, भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसे प्रतीकों का जिक्र करते हुए एक समावेशी समाज की बात की गई. लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह संदेश सिर्फ सामाजिक सद्भाव के लिए नहीं, बल्कि आने वाले उपचुनावों और 2029 की रणनीति का हिस्सा है, जिसमें भाजपा को अपने पुराने सवर्ण-ओबीसी समीकरण से आगे बढ़कर दलित, आदिवासी और मुस्लिम वोटर्स तक पहुंच बनानी है.

मोहन यादव की छवि अब तक ‘साफ-सुथरे प्रशासनिक नेता’ की रही है, लेकिन अब वह एक सामाजिक-राजनीतिक आइकन के तौर पर उभरने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया की इस मंच पर सक्रियता यह बताती है कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भाजपा उन्हें एक मजबूत चेहरे के रूप में फिर से स्थापित करना चाहती है. कांग्रेस ने इस आयोजन को लेकर भाजपा पर तीखा हमला बोला है. उसका आरोप है कि भाजपा केवल प्रतीकों की राजनीति कर रही है और जमीनी स्तर पर सामाजिक अन्याय की स्थिति जस की तस है. कांग्रेस ने यह भी सवाल उठाया कि यदि भाजपा सच में सामाजिक समरसता चाहती है तो ओबीसी आरक्षण, प्रमोशन में आरक्षण और दलित उत्पीड़न जैसे मुद्दों पर वह ठोस कदम क्यों नहीं उठाती?

भाजपा अब ‘सॉफ्ट सोशल इंजीनियरिंग’ के रास्ते पर
इस आयोजन से यह स्पष्ट है कि भाजपा अब ‘सॉफ्ट सोशल इंजीनियरिंग’ के रास्ते पर चल रही है – जहाँ सियासत धर्म या जाति के टकराव पर नहीं, बल्कि सहयोग और समावेश के प्रतीकों पर आधारित होगी. यह रणनीति भाजपा को शहरी और ग्रामीण दोनों वर्गों में नई स्वीकार्यता दिला सकती है. हालांकि इस प्रयास की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि भाजपा इस समरसता के संदेश को निचले स्तर तक कितना प्रभावी ढंग से पहुंचा पाती है. क्या यह सम्मेलन सिर्फ मंचीय प्रतीक बनकर रह जाएगा या वाकई इससे कोई राजनीतिक बदलाव आएगा – यह आने वाले महीनों में साफ हो जाएगा.

Sumit verma

सुमित वर्मा, News18 में 4 सालों से एसोसिएट एडीटर पद पर कार्यरत हैं. बीते 3 दशकों से सक्रिय पत्रकारिता में अपनी अलग पहचान रखते हैं. देश के नामचीन मीडिया संस्‍थानों में सजग जिम्‍मेदार पदों पर काम करने का अनुभव. प…और पढ़ें

सुमित वर्मा, News18 में 4 सालों से एसोसिएट एडीटर पद पर कार्यरत हैं. बीते 3 दशकों से सक्रिय पत्रकारिता में अपनी अलग पहचान रखते हैं. देश के नामचीन मीडिया संस्‍थानों में सजग जिम्‍मेदार पदों पर काम करने का अनुभव. प… और पढ़ें

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