जिस स्कूल में बच्चे नहीं, वहां टीचर का ट्रांसफर: पति-पत्नी का 12 साल से तबादला नहीं, स्कूल शिक्षा विभाग ने कैसे तोड़े नियम – Madhya Pradesh News

जिस स्कूल में बच्चे नहीं, वहां टीचर का ट्रांसफर:  पति-पत्नी का 12 साल से तबादला नहीं, स्कूल शिक्षा विभाग ने कैसे तोड़े नियम – Madhya Pradesh News


केस1: रायसेन के रहने वाले ललित यादव की बहन दिव्यांग है। वह जिले के सिरसोदा के प्रायमरी स्कूल में पदस्थ थीं, हाल ही में उनका तबादला इमलिया गांव के स्कूल में किया गया है। ये गांव मुख्य सड़क से पांच किलोमीटर अंदर है। वहां तक जाने का कोई साधन भी नहीं है।

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केस 2: इटारसी के पथरोटा में पदस्थ मिडिल स्कूल टीचर रवि जैन ने भी तबादले के लिए आवेदन किया था। उन्होंने विकल्प के कॉलम में इटारसी के 12 स्कूलों के नाम भरे थे। मगर, उनका ट्रांसफर ऐसे स्कूल में हुआ, जो विकल्प में नहीं था। वहां पद भी खाली नहीं है।

ये सिर्फ दो मामले नहीं हैं। हाल में स्कूल शिक्षा विभाग ने जो तबादले किए हैं उसमें अपनी ही तबादला नीति के नियमों को दरकिनार कर दिया है। जिन्हें तबादले की जरूरत थी उसका तबादला नहीं हुआ और जिन्हें इसकी कोई जरूरत नहीं थी उनका ट्रांसफर कर दिया गया। ट्रांसफर में हुई गड़बड़ियों को दुरुस्त कराने के लिए टीचर्स लोक शिक्षण संचालनालय के चक्कर काट रहे हैं।

इन्हें संचालनालय के अफसर जवाब दे रहे हैं कि अब प्रक्रिया खत्म हो चुकी है। भास्कर ने जब स्कूल शिक्षा मंत्री से बात की तो उन्होंने कहा कि कोई तकनीकी गड़बड़ी नहीं है। इतना बड़ा अमला जिस विभाग में हो तो वहां 100-50 विसंगतियां देखने को मिलती है, सरकार उसका निराकरण भी करती है। पढ़िए किस तरह से स्कूल शिक्षा विभाग ने अपनी ही तबादला प्रक्रिया का पालन नहीं किया।

पहले इन तीन केस से समझिए ट्रांसफर में गड़बड़ी

जिस पद के लिए तबादला वो खाली नहीं इटारसी के शिक्षक रवि जैन ने ऑनलाइन तबादला प्रक्रिया के दौरान 12 स्कूलों को विकल्प के तौर पर भरा था, लेकिन उनका ट्रांसफर उस स्कूल में कर दिया गया जिसका नाम उन्होंने विकल्प में भरा ही नहीं था। हैरानी की बात यह है कि जिस पद के लिए रवि का तबादला हुआ है, वह पद उस स्कूल में खाली ही नहीं है।

रवि जब स्कूल में जॉइन करने गए तो स्कूल के प्राचार्य ने लिखित में दे दिया कि जिस पद पर उन्हें भेजा गया है, वह भरा हुआ है और वे उन्हें जॉइन नहीं करा सकते। जब रवि डीईओ कार्यालय पहुंचे, तो जवाब मिला, ‘सारी प्रक्रिया ऑनलाइन है, हम कुछ नहीं कर सकते। अब तो डीपीआई ही कुछ कर सकता है।’ अब रवि लगातार डीपीआई के चक्कर काट रहे हैं।

सविता दिव्यांग के साथ हार्ड और किडनी पेशेंट भी है ललित यादव अपनी बहन सविता के तबादले को निरस्त करवाने के लिए डीपीआई कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं। उनकी 55 वर्षीय बहन प्राथमिक शिक्षक हैं। उम्र के इस पड़ाव में वह न सिर्फ दिव्यांग हैं, बल्कि दिल और किडनी की बीमारी से भी जूझ रही हैं। उनका स्वैच्छिक तबादला रायसेन के इमलिया गांव के प्रायमरी स्कूल में कर दिया गया है।

ये गांव मुख्य सड़क से करीब 5 किलोमीटर अंदर है। यहां तक पहुंचने के लिए कोई परिवहन सुविधा उपलब्ध नहीं है। ललित ने बताया कि है कि वे सभी मेडिकल दस्तावेज लेकर डीपीआई पहुंचे तो कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला। वे कहते है,

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मेरी बहन इस रास्ते को पार कर स्कूल तक नहीं जा सकतीं, ऐसे में मैं बस इतना चाहता हूं कि उनका तबादला रद्द किया जाए।

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बच्चे प्राइवेट स्कूल में जाते हैं राजगढ़ जिले के गेहूंखेड़ी गांव के प्रायमरी स्कूल में न तो कोई छात्र है, न ही कोई पढ़ाई हो रही है। दरअसल, पिछले शैक्षणिक सत्र से ही यह स्कूल पूरी तरह विद्यार्थी विहीन हो चुका है। गांव के बच्चों ने दूसरे स्कूलों में दाखिला ले लिया है। हैरानी की बात यही है कि शिक्षा विभाग ने इस बंद पड़े स्कूल में टीचर प्रेमनारायण गुप्ता का तबादला कर दिया है।

गुप्ता इससे पहले पाड़ल्याखेड़ी के प्रायमरी स्कूल में टीचर थे। गांव के लोगों का कहना है कि गांव के ज्यादातर बच्चों ने प्राइवेट स्कूल में दाखिला ले लिया है। अब सरकारी स्कूल में कोई भी बच्चा नहीं है, इसलिए स्कूल की बिल्डिंग में सरपंच ने ताला लगा दिया है। जब स्कूल में बच्चे ही नहीं है तो फिर यहां टीचर किसे पढ़ाएंगे ये समझ नहीं आ रहा।

जिन्हें जरूरत उन्हें नहीं मिला ट्रांसफर.. ऐसे तीन केस

एक साल की बेटी के साथ पति से दूर परमा सोलंकी के पति उनसे 550 किलोमीटर दूर खरगोन में रहते है। वहीं परमा अपनी एक साल की बेटी के साथ सागर में रहती है। परमा रोज सागर से बंडा ब्लॉक के बहरोल अपनी बेटी के साथ आना जाना करती है। जब स्वैच्छिक तबादला प्रक्रिया शुरू हुई तो परमा ने खरगोन और उसके आसपास के स्कूलों के लिए अप्लाई किया, ताकि वे पति के पास जा सकें।

जब तबादला सूची आई, तो परमा का नाम उसमें शामिल नहीं था। परमा कहती हैं, मैं रोज सागर से बंडा अपडाउन करती हूं। मेरी बच्ची की देखभाल करना मुश्किल होता है। परिवार से दूर रहना मानसिक रूप से भी परेशान करता है। अब परमा का ट्रांसफर नहीं हुआ तो वह लोक शिक्षण संचालनालय के चक्कर काट रही है। इस उम्मीद में कि विभाग उसकी परिस्थिति को देखते हुए तबादले पर पुनर्विचार करेगा।

27 स्कूलों में आवेदन किया, एक में भी नहीं हुआ प्रकाश राठौर बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी में पदस्थ हैं जबकि उनकी पत्नी कंचन हरदा जिले के टिमरनी ब्लॉक में कार्यरत हैं। दोनों पिछले 12 सालों से अलग-अलग जिलों में रहकर नौकरी कर रहे हैं। उनके दो बच्चे हैं। 22 साल की बेटी पिता के साथ रहती है और 20 साल का बेटा सतना में पढ़ाई कर रहा है।

कंचन ने इस साल ट्रांसफर प्रक्रिया के दौरान बैतूल जिले के 27 स्कूलों में आवेदन किया था, लेकिन किसी भी स्कूल में उनका ट्रांसफर नहीं हो सका। प्रकाश बताते हैं, कंचन की पोस्टिंग बहुत ही अंदरूनी और ग्रामीण क्षेत्र में है। गांव के लोग हर हफ्ते उन्हें मेन रोड तक छोड़ने आते हैं, फिर वह बस से शनिवार को बैतूल आती हैं और सोमवार सुबह वापस चली जाती हैं। 12 सालों से यहीं सिलसिला चल रहा है। प्रकाश कहते हैं,

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जब मैंने सीपीआई शिल्पा गुप्ता से मुलाकात की, तो उन्होंने कहा कि ट्रांसफर प्रक्रिया अब समाप्त हो चुकी है, समय रहते बताया होता तो कुछ किया जा सकता था।

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छुट्टियां लेकर कर रहीं बेटे की देखभाल शिवपुरी जिले के दसेरिया खनियाधान में पदस्थ शिक्षिका दीक्षा गौतम का चार साल का बेटा ऑटिज्म से ग्रसित है। उसकी नियमित थेरेपी भोपाल में चल रही है। दीक्षा के पति राहुल भी सरकारी नौकरी में हैं और उन्होंने पहले ही अपना तबादला भोपाल करवा लिया है। राहुल बेटे के साथ रहकर उसकी देखभाल कर रहे हैं।

राहुल कहते हैं कि डॉक्टरों ने कहा है कि यह थेरेपी का आखिरी साल है और यदि इसमें कोई रुकावट आई तो बच्चे के मानसिक विकास और भविष्य पर गंभीर असर पड़ सकता है। मेरी पत्नी दीक्षा ने शिक्षा विभाग की ट्रांसफर नीति में दिए गए बीमारी संबंधी प्रावधानों के तहत प्राथमिकता मांगी थी। उन्होंने भोपाल के स्थानीय स्कूलों का चयन भी किया, लेकिन इसके बावजूद उनका तबादला नहीं किया गया।

दीक्षा कहती है कि “मैं अकेले रह रही हूं, इससे मानसिक तनाव तो बढ़ ही रहा है, मुझे बेटे की चिंता है। मैं उसकी पास रहूंगी तो उसकी देखभाल हो सकेगी। ट्रांसफर नीति में प्रावधान के बाद भी मुझे अनदेखा कर दिया। दीक्षा ने फिलहाल अपने बच्चे की देखभाल के लिए तीन महीने का अवकाश लिया है। दीक्षा अब एकबार फिर तबादले के लिए विभाग से गुहार लगा रही हैं।

क्या है नई तबादला नीति? स्कूल शिक्षा विभाग ने शिक्षकों और कर्मचारियों के तबादले की नीति-2022 में बदलाव किए थे। जिसके तहत राज्य और जिले दोनों स्तरों पर अधिकारियों और कर्मचारियों के तबादले के लिए नए आदेश जारी किए गए थे। 7 जून से 16 जून तक जिला स्तर पर होने वाले प्रशासनिक तबादलों का अधिकार उस जिले के प्रभारी मंत्री को दिया गया था।

जिले के भीतर जिन कर्मचारियों का तबादला हो सकता है, उनमें प्राथमिक शिक्षक, सहायक शिक्षक, विज्ञान विषय पढ़ाने वाले प्राथमिक शिक्षक, सहायक शिक्षक, प्राथमिक स्कूल के प्रधानाध्यापक, क्लर्क और चपरासी शामिल थे। इन सभी का तबादला जिला कलेक्टर के जरिए होना था, लेकिन अंतिम मंजूरी प्रभारी मंत्री को देना था।

नीति के अनुसार जिन स्कूलों में 10 से कम बच्चे पढ़ते हैं, वहां किसी भी शिक्षक को नहीं भेजा जाना था। इसके अलावा अगर दो शिक्षक आपस में जगह बदलना चाहते हैं (पारस्परिक तबादला), तो उसी सूरत में होगा जब दोनों का पद और विषय एक जैसा हो। जो शिक्षक 31 मई 2025 तक रिटायर होने वाले हैं, उनका पारस्परिक तबादला नहीं किया जाएगा।

मंत्री बोले- लाखों का अमला है कुछ विसंगतियां तो होंगी इस मामले को लेकर भास्कर ने जब स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदयप्रताप सिंह से पूछा तो उन्होंने कहा कि आपने कभी देखा है किसी भी युग में लोग संतुष्ट हुए हो, रामराज में भी रामजी लौट के आए तो उन पर भी कोई ना कोई आरोप लगाने वाला खड़ा ही था। जिस विभाग में 4 लाख का अमला है, अगर 100-500 विसंगति मिलती है तो उनका निराकरण भी सरकार करती है।

उनसे पूछा कि इस बार ट्रांसफर में तकनीकी गड़बड़ी सामने आई, तो वे बोले कि कोई तकनीकी गड़बड़ी नहीं है, उल्टा हम तो तकनीक उपलब्ध करवा रहे हैं। उन्होंने ई-अटेंडेंस का जिक्र करते हुए कहा कि शिक्षक समय पर स्कूल पहुंचे, वे बच्चों पढ़ाए इसके लिए ई-अटेंडेंस की व्यवस्था की है।

कुछ टीचर इस व्यवस्था को नहीं चाहते इसलिए मीडिया का सहारा लेकर व्यवस्था पर सवाल खड़े करते हैं। मीडिया ही बताता है कि शिक्षक स्कूल नहीं आते, कोई शराब पीकर आता है तो कोई अपनी जगह दूसरे को पढ़ाने के लिए भेज देता है। इन सभी विसंगतियों को दूर करने के लिए ही तकनीक का सहारा लिया है।



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