Dharohar: MP का 200 साल पुराना विट्ठल मंदिर, जहां 144 सालों से बिना रुके 24 घंटे होते हैं भजन-कीर्तन

Dharohar: MP का 200 साल पुराना विट्ठल मंदिर, जहां 144 सालों से बिना रुके 24 घंटे होते हैं भजन-कीर्तन


भारत की धार्मिक परंपराएं, भक्ति और आस्था की अनमोल मिसालें हैं. इन्हीं में से एक है मध्य प्रदेश के खंडवा शहर में स्थित श्री विट्ठल मंदिर, जो न सिर्फ अपनी 200 वर्षों पुरानी विरासत के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसलिए भी विशेष है कि यहां पिछले 144 सालों से जुलाई के महीने में लगातार 24 घंटे भजन-कीर्तन होते आ रहे हैं. यह परंपरा आज भी उतनी ही श्रद्धा और समर्पण से निभाई जा रही है, जितनी वर्ष 1882 में शुरू हुई थी.

प्राचीन लकड़ी का बना मंदिर
यह मंदिर खंडवा शहर के बीचोंबीच स्थित है और इसका निर्माण प्राचीन लकड़ी से किया गया था. खास बात यह है कि आज भी यह मंदिर उन्हीं लकड़ियों के सहारे मजबूती से खड़ा हुआ है. यह स्थापत्य शैली न केवल खंडवा की सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि उस दौर की कारीगरी की जीवंत मिसाल भी है.

कैसे शुरू हुई यह परंपरा?
मंदिर के पंडितों और स्थानीय श्रद्धालुओं के अनुसार, सन् 1882 में यहां भगवान दत्तात्रेय की स्थापना की गई थी. इस स्थापना के पीछे रहे थे पंडनाथ महाराज, जिनकी उम्र उस समय लगभग 102 वर्ष बताई जाती है. इसी साल उन्होंने सात दिवसीय अखंड भजन-कीर्तन का आयोजन शुरू किया, जिसे स्थानीय भाषा में “उत्सव” कहा जाता है. इस उत्सव के दौरान मंदिर के पट दिन-रात खुले रहते हैं और भजन-कीर्तन एक पल के लिए भी नहीं रुकते.

क्या है विट्ठल मंदिर की विशेषता?
यहां की विशेष बात यह है कि जुलाई माह की एकादशी, जिसे देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है, से यह उत्सव प्रारंभ होता है. इस वर्ष यह तिथि छह जुलाई को है. उसके बाद गुरु पूर्णिमा और 11 जुलाई को भगवान विट्ठल की पालकी यात्रा निकाली जाएगी. इस यात्रा को लेकर पूरे शहर में भक्ति का वातावरण बन जाता है और दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.

महिलाओं की विशेष भूमिका
इस उत्सव में महिला भजन मंडल की भी महत्वपूर्ण भागीदारी होती है. प्रतिदिन दोपहर एक बजे से चार बजे तक केवल महिलाओं के भजन मंडल मंदिर में प्रस्तुति देते हैं. छह वर्ष की बच्चियों से लेकर 85 वर्ष की वृद्ध माताएं तक भगवान विट्ठल के चरणों में भक्ति समर्पित करती हैं. इनकी भक्ति भाव देखकर भक्तों का मन स्वतः ही भावविभोर हो जाता है.

सात दिन का विशेष श्रृंगार
इस सात दिवसीय उत्सव में भगवान विट्ठल का प्रतिदिन अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है. कभी फूलों से, कभी रेशमी वस्त्रों से, तो कभी पारंपरिक अलंकारों से विट्ठल भगवान को सजाया जाता है. यह श्रृंगार न केवल आध्यात्मिक आनंद देता है बल्कि दर्शकों के मन को भी प्रसन्न कर देता है.

श्रद्धालुओं से विशेष निवेदन
मंदिर समिति और पंडितों ने सभी श्रद्धालुओं से अपील की है कि इस 144वें अखंड भजन उत्सव में अधिक से अधिक संख्या में पहुंचें, दर्शन करें और इस परंपरा को अनुभव करें. यह परंपरा न केवल खंडवा की पहचान है, बल्कि हिंदू धर्म की उस जीवंतता का प्रमाण है, जो भक्ति और सेवा को सर्वोपरि मानती है.

खंडवा का श्री विट्ठल मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सदियों पुरानी आस्था का केंद्र है, जहां भक्ति की धारा बिना रुके 144 वर्षों से बह रही है. यह परंपरा, यह उत्सव और यह समर्पण — भारत की सांस्कृतिक आत्मा को जीवित रखने का जीवंत उदाहरण है.



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