बता दें कि, जिले में कपास की बुआई मई से शुरू हो गई थी, फिलहाल किसान देखरेख में लगे है. लेकिन अब रुक-रुक कर बारिश से खेतों में नमी बढ़ गई. यही अधिक नमी अब कपास के पौधों के लिए जानलेवा साबित हो रही है. खेतों में जड़ों के पास पानी भरने और मिट्टी की सतह गीली रहने से कपास के पौधे जड़ गलन रोग की चपेट में आ गए हैं.
विशेषज्ञों के अनुसार, कपास के पौधों में सबसे पहले मुरझाने के लक्षण नजर आते हैं. इसके बाद पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और धीरे-धीरे पौधा सूखने लगता है. जड़ों पर फफूंद का असर दिखाई देता है, जिससे वे सड़ जाती हैं. शुरुआत में यह बीमारी कुछ ही पौधों में दिखती है, लेकिन सही देखभाल न होने पर धीरे-धीरे यह पूरे खेत में फैल सकती है.
किसानों की बढ़ गई चिंता
जिन किसानों के खेतों में यह बीमारी तेजी से फैली है, वे अब कपास की फसल को पूरी तरह उखाड़ने लगे हैं. कुछ गांवों में किसानों ने फसल उखाड़कर मक्का, सोयाबीन जैसी फसल लगाना शुरू कर दी है. उनका कहना है कि अगर समय पर बदलाव नहीं किया गया, बुआई का खर्च भी नहीं निकलेगा.
कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को सलाह दी है कि वे तुरंत फसल को उखाड़ने की बजाय पहले उसके उपचार के प्रयास करें. क्योंकि, यह बीमारी गंभीर जरूर है, लेकिन काबू में लाई जा सकती है. कृषि विभाग के सहायक संचालक प्रकाश ठाकुर एवं वैज्ञानिक डॉ. राजीव सिंह ने बताया कि प्रभावित खेतों में ब्लू कॉपर और 19:19:19 फर्टिलाइजर का घोल बनाकर छिड़काव करें. इससे फफूंद के प्रसार को रोका जा सकता है. इसके अलावा, जहां पौधे पूरी तरह सूख गए हैं, वहां से उन्हें उखाड़कर खेत से बाहर करे, ताकि संक्रमण आगे न फैले.
जल निकासी व्यवस्था दुरुस्त करें
ठाकुर ने यह भी बताया कि, खेतों में यदि जल निकासी ठीक नहीं है, तो यह रोग तेजी से फैल सकता है. इसलिए खेतों में नाली बनाकर अतिरिक्त पानी को बाहर निकालें. जिसे मेढ़ पद्धति कहते है. अधिकतर मामलों में यह रोग वहीं फैलता है जहां खेतों में पानी जमा हो जाता है या मिट्टी में लगातार नमी बनी रहती है.
इधर, रोग की जानकारी लगने पर कृषि विभाग की टीमें गांवों में जाकर किसानों को इस रोग के लक्षणों और उपचार की जानकारी दे रही हैं. साथ ही, दवाइयों की उपलब्धता और छिड़काव के तरीकों की भी जानकारी दी जा रही है. अधिकारियों का कहना है कि यदि किसान सलाह अनुसार उपचार करें, तो फसल को बचाया जा सकता है.