कौन हैं आल्हा-ऊदल? 1000 साल पहले जन्में थे जहां वहां आज भी गूंजती तलवारों की आवाज!

कौन हैं आल्हा-ऊदल? 1000 साल पहले जन्में थे जहां वहां आज भी गूंजती तलवारों की आवाज!


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Alha Udal ki Kahani: आल्हा-ऊदल की कहानी हमलोग बचपन से सुनते आ रहे हैं लेकिन इनका छतरपुर से क्या कनेक्शन है, आइए जानते हैं इसके बारे में…

हाइलाइट्स

  • आल्हा और ऊदल का छतरपुर से है गहरा नाता.
  • आल्हा और ऊदल राजा परमालदेव के दरबार के सम्मनित सेनापति थे.
  • दोनों भाईयों की परवरिश रानी मलिनहा ने की थी.
Alha-Udal Story. आज से लगभग 1 हजार साल पहले बुंदेलखंड की धरती में आल्हा-ऊदल जैसे वीर योद्धा हुए थे. जिनकी रियासत महोबा थी. महोबा में आज भी आल्हा-ऊदल के किले और तालाब गवाही देते हैं. महोबा से सटा जिला छतरपुर जो एमपी में आता है. यहां भी आल्हा-ऊदल के रियासत की सीमाएं थीं. यहां भी उनके किले, गढ़ी और महल बने हुए हैं.
छतरपुर जिले में आज भी आल्हा-ऊदल का एक ऐसा महल है जहां एक मंदिर भी है. इसी मंदिर में आल्हा-उदल पूजा करते थे. हालांकि, आज वीरान पड़ा है.

छतरपुर जिले में बना है महल
बता दें, छतरपुर जिले के गौरिहार जनपद के अंतर्गत आने वाली प्रकाश बम्होरी में एक ऐसी भी धरोहर है जिसे वीर योद्धा आल्हा-ऊदल से जोड़ा जाता है.  गांव के पुराने बुजुर्ग बताते आए हैं कि आल्हा-ऊदल इस महल में रहकर युद्ध की रणनीति बनाते थे और यहां पर एक मंदिर भी बना है. जहां वह पूजा करते थे. यहां एक पत्थर की मूर्ति दिखाई देती है. हालांकि, आज यह मंदिर वीरान पड़ा है.
पं० ललिता प्रसाद मिश्र के ग्रन्थ आल्हखण्ड के मुताबिक आल्हा को युधिष्ठिर और ऊदल को भीम का साक्षात अवतार बताया है. “यह दोनों वीर अवतारी होने के कारण अतुल पराक्रमी थे. ये 12वीं विक्रमीय शताब्दी में पैदा हुए और 13वीं शताब्दी के पुर्वार्द्ध तक अमानुषी पराक्रम दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए.

ऐसा प्रचलित है कि ऊदल की पृथ्वीराज चौहान द्वारा हत्या के पश्चात आल्हा ने संन्यास ले लिया और जो आज तक अमर है और गुरु गोरखनाथ के आदेश से आल्हा ने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था.

कौन हैं आल्हा-ऊदल
राजा परमालदेव चन्देल खानदान का आखिरी राजा था. तेरहवीं शाताब्दी के आरम्भ में वह खानदान समाप्त हो गया. महोबा जो एक मामूली कस्बा है उस जमाने में चन्देलों की राजधानी था. महोबा की सल्तनत दिल्ली और कन्नौज से आंखें मिलाती थी.

चंदेल राजा के सेनापति थे
आल्हा और ऊदल राजा परमालदेव के दरबार के सम्मनित सेनापति थे. इनके पिता जसराज एक लड़ाई में मारे गए थे. राजा अनाथ आल्हा-ऊदल को राजमहल में ले आये और मोहब्बत के साथ अपनी रानी मलिनहा के सुपुर्द कर दिया.  रानी ने उन दोनों भाइयों की परवरिश और लालन-पालन अपने लड़के की तरह किया. जवान होकर यही दोनों भाई बहादुरी में सारी दुनिया में मशहूर हुए. इन्हीं दिलावरों के कारनामों ने महोबे का नाम रोशन कर दिया है.

आल्हा और ऊदल राजा परमालदेव पर जान कुर्बान करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे. रानी मलिनहा ने उन्हें पाला, उनकी शादियां कीं, उन्हें गोद में खिलाया. नमक के हक के साथ-साथ इन एहसानों और सम्बन्धों ने दोनों भाइयों को चन्देल राजा का रखवाला और राजा परमालदेव का वफादार सेवक बना दिया था. उनकी वीरता के कारण आस-पास के सैकडों घमंडी राजा चन्देलों के अधीन हो गए. महोबा राज्य की सीमाएँ नदी की बाढ़ की तरह फैलने लगीं और चन्देलों की शक्ति दूज के चांद से बढ़कर पूरनमासी का चांद हो गई.

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कौन हैं आल्हा-ऊदल? जहां जन्मे थे वहां 1000 साल बाद भी गूंजती तलवारों की आवाज!



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