सरदार सरोवर बांध के मुआवजे को लेकर मध्यप्रदेश और गुजरात सरकार झगड़ रही हैं। मध्यप्रदेश 7,669 करोड़ रुपए गुजरात से मांग रहा है, वहीं गुजरात 281 करोड़ रुपए पर ही विचार करने की बात कह रहा है। हालत यह है कि मध्यप्रदेश सरकार ने गुजरात के रवैये को गुमराह कर
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विवाद का खामियाजा डूब क्षेत्र में आने वाले मध्यप्रदेश के वो लोग भुगत रहे हैं जो पुनर्वास के इंतजार में हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर के मुताबिक आज भी करीब 10 हजार लोगों का पूरी तरह से पुनर्वास नहीं हुआ है। अधिकारी हर बार फंड की कमी का हवाला देते हैं।
23 साल से चल रहे विवाद को सुलझाने के लिए जुलाई के आखिरी सप्ताह में गुजरात के केवड़िया में दोनों राज्यों के मध्यस्थों की बैठक होने वाली है। इससे पहले दैनिक भास्कर ने दोनों राज्यों के बीच हुए गोपनीय पत्राचार और दस्तावेज हासिल किए हैं। इन दस्तावेजों की पड़ताल की। दोनों राज्यों के अफसरों से बात की।
एमपी सरकार ने शुरुआत में 281.46 करोड़ का मुआवजा मांगा
एमपी सरकार के नर्मदा घाटी विकास विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव ने पहले पत्र में वन वृद्धि क्षेत्र के लिए 112.51 करोड़ रुपए मुआवजा मांगा। दूसरे पत्र में सरकारी जमीन के लिए 157.61 करोड़ रुपए और तीसरे पत्र में डूब क्षेत्र में आने वाली वन भूमि के लिए 11.34 करोड़ रुपए मांगे। इस तरह कुल 281.46 करोड़ रुपए का मुआवजा मांगा गया। उस समय सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई 90 मीटर थी।

बांध की ऊंचाई बढ़ी तो मुआवजे की राशि बढ़ गई सरदार सरोवर बांध परियोजना की नींव 5 अप्रैल 1961 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी। 56 साल बाद 17 सितंबर 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांध का उद्घाटन किया। इतने सालों में बांध की ऊंचाई 5 बार बढ़ाई गई। 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने बांध की ऊंचाई 80.3 मीटर तक सीमित रखने को कहा था।
मगर, लगातार बांध की ऊंचाई बढ़ती गई और 2014 में इसे 138.68 मीटर कर दिया गया। साल 2019 में जब बांध को पूरी क्षमता के साथ भरा गया तब मप्र ने डूब क्षेत्र में आई अपने हिस्से की जमीन का फिर से आकलन किया और साल 2019-20 के बाजार मूल्य के हिसाब से गुजरात सरकार से 7,669 करोड़ रुपए के संशोधित मुआवजे की मांग की।

गुजरात ने मुआवजा देने से किया इनकार भास्कर को मिले गोपनीय दस्तावेजों के मुताबिक गुजरात ने पुरानी मुआवजा राशि (281.46 करोड़ रुपए) को लेकर 23 सितंबर 2003 को एमपी सरकार के तीनों पत्रों का जवाब दिया। इसमें साफ कहा कि वो भुगतान नहीं करेंगे। इसके बाद 7 अक्टूबर 2003 को दोनों राज्य सरकारों के अधिकारियों की एक बैठक गुजरात के वडोदरा में हुई। बैठक का कोई नतीजा नहीं निकला। इसके बाद एमपी सरकार ने एनडब्ल्यूडीटी अवॉर्ड के तहत विवाद को मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) के लिए ले जाने का निर्णय लिया।

मुआवजा न देने पर एमपी ने गुजरात के बयान को झूठा बताया इसके बाद दो दशक तक बैठकों का दौर चलता रहा, मगर कोई नतीजा नहीं निकला। इसी कड़ी में 12-13 अगस्त 2024 को दोनों ही राज्यों के मध्यस्थों की गुजरात के गांधीनगर में एक बैठक हुई, जिसके बाद 17 अगस्त 2024 को गुजरात सरकार ने मध्यस्थों के सामने पत्र के माध्यम से लिखित प्रस्तुतिकरण (सबमिशन) पेश किया।
गुजरात सरकार ने अपने प्रस्तुतिकरण में कई जरूरी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए थे। मप्र सरकार ने दोनों सरकारों के बीच हुए पत्राचार और कुछ दस्तावेज जुटाए। जिसके बाद अपना जवाब पेश किया जिसमें गुजरात सरकार के कथन को ‘पूरी तरह झूठा’ और ‘भ्रामक’ बताया।

गुजरात के 4 दावे, एमपी ने तर्कों से किए खारिज
17 अगस्त 2024 को गुजरात ने एमपी के मुआवजा संबंधी दावों पर सवाल उठाए थे। गुजरात ने जो सबमिशन (प्रस्तुतीकरण) दिया उसमें लिखा कि एमपी ने मुआवजे के संबंध में मांगी गई जानकारी नहीं दी और एमपी द्वारा की गई संशोधित मुआवजे की मांग पर भी सवाल उठाए। एमपी ने तर्कों से इन सभी दावों को खारिज कर दिया। सिलसिलेवार जानिए इन दावों के बारे में…
1. गुजरात का दावा: एमपी ने मुआवजे के संबंध में मांगी जानकारी नहीं दी
एमपी का तर्क: एमपी सरकार ने इसका जवाब देते हुए लिखा कि- गुजरात ने जानकारी मांगने वाला पत्र 16 सितंबर 2003 को लिखा था। जो 26 सितंबर 2003 को हमें मिला। इस पत्र का कोई महत्व नहीं है क्योंकि इसके तुरंत बाद गुजरात सरकार ने 23 सितंबर 2003 को मुआवजे के दावे पर विचार करने से साफतौर पर मना कर दिया था।

23 सितंबर 2003 का वह पत्र जिसमें गुजरात ने मप्र को भुगतान करने से इनकार किया।
2. गुजरात का दावा: 157.61 करोड़ रुपए की मांग को खारिज नहीं किया
एमपी का तर्क: गुजरात ने यह बयान बाद में सोचा है और यह पूरी तरह से झूठा और भ्रामक है। 7 अक्टूबर 2003 को दोनों राज्यों के अधिकारियों के बीच बैठक हुई थी। जिसमें डूब क्षेत्र में आने वाली एमपी की राजस्व और वन भूमि के मूल्यांकन से जुड़े विवाद का हल निकलना था, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। गुजरात ने मुआवजा देने से साफ इनकार किया, इसलिए मध्यस्थता के लिए जाना पड़ा।

मप्र सरकार का जवाब जिसमें लिखा है, ‘गुजरात ने जो बयान दिया वो बाद में सोचा गया और पूरी तरह से झूठा एवं भ्रामक है। गुजरात ने मुआवजा नहीं दिया इसलिए मध्यस्थता की पहल की।
3. गुजरात का दावा: एमपी ने 2 सितंबर 2006 को मध्यस्थता आयोग को पत्र लिखा, मुआवजा दावा पेश किया
एमपी का तर्क: जून 2015 तक तो मध्यस्थता प्रक्रिया शुरू ही नहीं हुई थी। मध्यस्थों की पहली बैठक 23 जून 2015 को गुजरात के गांधीनगर में हुई , जिसमें एमपी से मुआवजे के संबंध में अपना दावा प्रस्तुत करने के लिए कहा गया । इसके बाद अगले 6 सालों तक बैठक नहीं केवल पत्राचार हुआ। बैठकों का सिलसिला 1 सितंबर 2021 से शुरू हुआ।
4. गुजरात का दावा: एमपी ने मुआवजा संबंधित दस्तावेज नहीं दिए
एमपी का तर्क: 12 अक्टूबर 2021 को हुई मध्यस्थों की बैठक हुई थी, जिसमें एमपी सरकार से चार महीने के भीतर 11 फरवरी 2022 तक अपना मुआवजा दावा पेश करने के लिए कहा था। एमपी ने 10 फरवरी 2022 को ये दावा सौंप दिया था। इस बैठक में ये भी तय हुआ था कि गुजरात इस दावे पर 12 मई 2022 तक जवाब देगा। ऐसा न करते हुए गुजरात दस्तावेज मांगने लगा।

मप्र ने लिखा कि कई मौके दिए जाने के बाद भी गुजरात ने जवाब पेश नहीं किया। इसके उलट गुजरात, मध्य प्रदेश से कुछ और दस्तावेजों की मांग करने लगा, जबकि उन दस्तावेजों की सूची भी उपलब्ध नहीं कराई। मप्र के दावों पर कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया देने के बजाय, गुजरात केवल मामले को अस्पष्ट बना रहा है और गुमराह कर रहा है।
दो साल बाद गुजरात बोला- पुराने मुआवजा दावे पर विचार के लिए तैयार
एमपी ने तर्कों से गुजरात के सारे दावों को खारिज किया तो गुजरात ने दो साल तक कोई जवाब नहीं दिया। 21 मार्च 2024 को मध्यस्थों की फिर बैठक हुई। बैठक के मिनट्स के मुताबिक गुजरात ने एक पत्र में सुझाव दिया था कि वह 2001 में किए गए एमपी के दावों पर विचार करने के लिए तैयार है। यानी वह 281 करोड़ रु. की पुरानी मुआवजा राशि को लेकर विचार कर सकता है।
आगे लिखा कि उसके बाद के दावे खारिज किए जा सकते हैं। यानी करीब 8 हजार करोड़ की मुआवजा राशि देने पर वह सहमत नहीं है। इस पर मध्यस्थों ने संयुक्त रूप से कहा कि एमपी सरकार ने जो दावे 2022 में प्रस्तुत किए गए थे, वो ही माने जाएंगे।

मप्र के जवाब का वह हिस्सा जिसमें उसने बताया है कि गुजरात ने पुराने मुआवजा दावे पर विचार करने की बात कही थी, जिस पर मध्यस्थों ने कहा कि एमपी सरकार द्वारा 2022 में पेश किए गए संशोधित दावे को ही वे मान्य करेंगे। इसको लेकर मप्र ने कहा कि गुजरात द्वारा 02 सितंबर 2006 के पत्र को मप्र द्वारा मध्यस्थों के समक्ष पेश किया गया मुआवजा दावा मान लेना झूठ, भ्रामक और मध्यस्थता प्रक्रिया को गुमराह करने वाला है।
एमपी-गुजरात के अफसर बोले- विवाद का हल ढूंढ रहे मध्यस्थता बैठकों में शामिल रहे एनवीडीए के एक मौजूदा अधिकारी बताते हैं कि 2017 में जब पहली बार बांध भरा गया था तब तक जमीन अधिग्रहण हो रहा था, इसलिए मध्यस्थता हो न हो, गुजरात जो भी पैसा दे रहा था वो पुनर्वास में खर्च हो रहा था। अब लेन-देन का पूरा वाजिब हिसाब करना है, जिसे लेकर दोनों राज्यों के बीच विवाद है। इसे लेकर मध्यस्थता हो रही है।
मध्यस्थता में संबंधित पक्ष अपना दावा पेश करते हैं। कौन सही है और क्या सही है ये मध्यस्थ ही तय करते हैं। इस विवाद का राजनीतिक हल निकल सकता है या नहीं ये तो दोनों राज्यों के नेता ही तय करेंगे। दूसरी तरफ भास्कर ने गुजरात के सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड के चीफ इंजीनियर शुभम गोयल से बात की तो उन्होंने माना कि मुआवजा विवाद से जुड़ी बैठकें हो रही है।
करीब 8 हजार करोड़ की राशि पर विवाद है। हम लोग ये जांच रहे हैं कि मप्र ने जो डूब क्षेत्र बताया है वो सही है या गलत है। जहां तक मप्र ने गुजरात के तथ्यों को झूठा और भ्रामक बताया है वो सब आधारहीन हैं। इस विवाद का हल ढूंढने के लिए दोनों राज्य ठीक तरीके से काम कर रहे हैं, ताकि अंतिम फैसले पर पहुंचा जा सके।

क्या है मौजूदा स्थिति और कैसे होगा समाधान?
गुजरात के आर्बिट्रेटर पीके लाहेरी ने दैनिक भास्कर को बताया कि दोनों पक्षों ने पांच बैठकों में अपने-अपने प्रजेंटेशन दे दिए हैं। अब मुद्दे तय होंगे और सुनवाई आगे बढ़ेगी। समाधान कब तक होगा, यह दोनों राज्यों पर निर्भर करता है। दोनों राज्यों के बीच मुआवजे की राशि को लेकर बहुत बड़ा अंतर है।
मध्य प्रदेश का एक पुराना क्लेम है और 2022 में उन्होंने एक संशोधित क्लेम पेश किया है। दूसरा क्लेम स्वीकार्य है या नहीं, यह भी मुद्दे तय करते समय साफ होगा। तभी हम लोग सटीक सुनवाई कर पाएंगे। अगर हमारे फैसले पर सहमति नहीं होगी तो सुप्रीम कोर्ट से जज की अपॉइंटमेंट ली जाएगी।

दिग्गी-पाटकर बोले- दोनों राज्यों में समन्वय नहीं सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई को लेकर पिछले 30 सालों से लड़ाई लड़ रही नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेघा पाटकर कहती हैं कि नर्मदा वाटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल यानी एनडब्ल्यूडीटी का फैसला कानून है। वन भूमि, शासकीय भूमि और पुनर्वास का खर्चा गुजरात को देना है। गुजरात अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रहा है, लेकिन मध्य प्रदेश उसके सामने क्यों चुप है, ये समझ से परे है। इसे अपना हक लेना चाहिए और लोगों का हक उन्हें देना चाहिए। लोग बिना पुनर्वास के ही मर रहे हैं। अगर ये राशि मिल जाए तो पुनर्वास आसानी से हो जाएगा।
वहीं पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने कहा कि इस मामले का समाधान बड़ी आसानी से हो सकता है क्योंकि दोनों राज्यों और केंद्र में बीजेपी की सरकार है। केंद्र सरकार गुजरात को भुगतान करने के लिए बाध्य करें। सीएम मोहन यादव को दृढ़ता से ये बात प्रधानमंत्री से करना चाहिए।
