चेतकपुरी रोड की ये कैसी जांच…: जब मिट्टी और कॉम्पेक्शन की जांच नहीं होनी थी तो क्या देखने गए थे अफसर? – Gwalior News

चेतकपुरी रोड की ये कैसी जांच…:  जब मिट्टी और कॉम्पेक्शन की जांच नहीं होनी थी तो क्या देखने गए थे अफसर? – Gwalior News



मिट्‌टी की जांच करनी थी बहाना… मिट्‌टी गीली थी, इसलिए लैब में नहीं भेजा

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कॉम्पेक्शन की जांच करनी थी बहाना… लूज मिट्‌टी में प्रेशर की जांच नहीं हो सकती

अफसरों का दावा- 550 मीटर के दायरे में 22 प्वाइंट लगाकर सड़क की जांच की

हल्की बारिश में ही धंसक कर सुरंगनुमा गड्डे में बदली चेतकपुरी-माधवनगर रोड की जांच करने निकली टीम भी खानापूर्ति करके निकल गई है। कलेक्टर रुचिका चौहान द्वारा बनाई गई टीम को बार-बार सड़क धंसकने की तकनीकी जांच करनी थी। जिसमें मिट्टी की क्वालिटी, स्ट्रेन्थ और कॉम्पेक्शन की जांच अहम है।

लेकिन टीम ने इनमें से एक भी जांच नहीं की और ऊपरी तौर पर जांच करके रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है। जांच करने वाले अधिकारियों का दावा है कि 550 मीटर के दायरे में 22 प्वाइंट लगाकर सड़क निर्माण की मजबूती जांची गई है। जो इस जांच में हर स्तर पर फेल हो चुकी है और रिपोर्ट में भी ये स्पष्ट किया गया है कि उक्त सड़क फिर से धंसकने की स्थिति में है। गौरतलब है कि बारिश शुरू होने के साथ ही चेतकपुरी से माधव नगर गेट तक के बीच ये सड़क बार-बार धंसकती जा रही है और इसकी वजह से ग्वालियर की देशभर में बदनामी भी हुई। जिसके बाद नगरीय प्रशासन के ईएनसी संकेत भोंडवे ने भी भोपाल से आकर जांच की थी।

यह हैं जांच के मानक… मिट्टी की क्वालिटी, कॉम्पेक्शन हुआ या नहीं

मिट्टी: पाइप लाइन डालने के बाद मिट्टी से फिलिंग की गई है उसकी क्वालिटी क्या है? मिट्टी की 3 प्रकार से जांच होती है जिसमें लिक्विड लिमिट, प्लास्टिक लिमिट और सीवीआर वैल्यू पता चलती है। जिसमें से सीवीआर मुख्य एवं जरूरी है। क्योंकि, यदि मिट्टी 7 सीवीआर से कम वैल्यू पर है तो खराब क्वालिटी होती है। वहीं अधिकारियों का दावा है कि इस सड़क में उपयोग की गई मिट्टी खुदाई में निकली हुई ही है और वह 3-4 सीवीआर तक क्वालिटी वाली है। इसमें मुरम का उपयोग होना चाहिए था क्योंकि मुरम की सीवीआर वैल्यु 28-30 तक होती है।

कॉम्पेक्शन: डाली गई पाइप लाइन के बाद जो फिलिंग की गई है उस फिलिंग मटेरियल का सही से कॉम्पेक्शन (कुटाई) किया गया है या नहीं? क्योंकि ठेकेदार कंपनी द्वारा पाइप डालने के बाद जो मटेरियल भरा गया। उसका लेयर वाइज कॉम्पेक्शन किया जाना जरुरी होता है, जो कि नहीं किया गया। सिर्फ सबसे ऊपरी लेयर का कॉम्पेक्शन किया गया, वह भी साधारण रोड रोलर से।

भास्कर एक्सपर्ट – सुनील राजपूत, संचालक सेनेटस लेब्रोटरी

​​​​​​​मिट्टी को सुखाकर हो सकती थी जांच ऐसा नहीं कि मिट्टी की जांच नहीं सकती थी, इस मिट्टी को सुखाकर उसे टेस्टिंग में ले सकते हैं और उसके बाद ये पता चल सकता है कि कॉम्पेक्शन कितना प्रतिशत रहा। मिट्टी का सीवीआर कितना था और कितना है, साथ ही मिट्टी की लिक्विड लिमिट व प्लास्टिक लिमिट भी खुल सकती है। यदि मिट्टी 7 सीवीआर से कम है तो ये उपयोग लायक ही नहीं हो सकती।

मिट्टी को सुखाकर हो सकती थी जांच ऐसा नहीं कि मिट्टी की जांच नहीं सकती थी, इस मिट्टी को सुखाकर उसे टेस्टिंग में ले सकते हैं और उसके बाद ये पता चल सकता है कि कॉम्पेक्शन कितना प्रतिशत रहा। मिट्टी का सीवीआर कितना था और कितना है, साथ ही मिट्टी की लिक्विड लिमिट व प्लास्टिक लिमिट भी खुल सकती है। यदि मिट्टी 7 सीवीआर से कम है तो ये उपयोग लायक ही नहीं हो सकती।



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