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Agriculture News: खास बात यह है कि जीवमित्रा खाद गर्मियों में भी असरदार है. जून-जुलाई में जब तापमान 40-45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, तब भी खेत में मौजूद सूक्ष्म कीटाणु नहीं मरते हैं बल्कि मानसून में पूरी…और पढ़ें
सतना के किसान अशोक कुमार द्विवेदी ने लोकल 18 को बताया कि अंधाधुंध कीटनाशक और रासायनिक खादों के प्रयोग से खेतों की उर्वरता लगभग खत्म हो चुकी है. आज खेत की मिट्टी में जो उमस होनी चाहिए, वो घटकर 0.2 से 0.3 तक पहुंच गई है. इसका सीधा असर फसलों की पैदावार और किसानों की आमदनी पर पड़ा है. रासायनिक खेती से उपजा अनाज हमारे शरीर को भी नुकसान पहुंचा रहा है. आज जो हम खाते हैं, उसमें केमिकल ही केमिकल है. ऐसे में उनका मानना है कि अब वक्त आ गया है, जब किसानों को प्राकृतिक खेती की ओर लौटना चाहिए.
कैसे बनाएं जीवमित्रा खाद?
इस खाद को तैयार करने की विधि बेहद आसान है. सबसे पहले एक 200 लीटर का प्लास्टिक ड्रम लें. उसमें 5-10 किलो मिट्टी डालें, जो किसी ऐसे खेत की हो, जहां कभी रासायनिक खाद या दवाएं न डाली गई हों. इसके बाद 14 किलो गुड़ या शक्कर और 14 किलो बेसन या आटा डालें. इस मिश्रण को अच्छी तरह मिलाकर ड्रम को ढक दें और इसे दिन में एक बार हिलाते रहें. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, एक महीने में जीवमित्रा खाद पूरी तरह तैयार हो जाती है. एक ड्रम खाद से करीब 10 एकड़ भूमि पर प्राकृतिक खेती की जा सकती है. मानसून के दौरान जब खेतों में पानी भरता है, तो यह खाद सीधे पानी के साथ खेतों में डाली जा सकती है और जब खेत सूखे हों, तो एक कुंतल सड़ी हुई गोबर की खाद में 20 लीटर जीवमित्रा मिलाकर एक एकड़ खेत में बिखेर सकते हैं.
बंजर खेतों को फिर से जीवन
खास बात यह है कि यह खाद गर्मियों में भी असरदार रहती है. जून-जुलाई में जब तापमान 40-45 डिग्री तक पहुंचता है, तब भी खेत में मौजूद सूक्ष्म कीटाणु नहीं मरते बल्कि मानसून में पूरी ताकत से खेतों में फैल जाते हैं. किसान बीच-बीच में खेतों में पराली, गोबर या अन्य जैविक कचरा डालते रहें ताकि कीटाणुओं को पोषण मिलता रहे. अशोक द्विवेदी ने बताया कि उन्हें इस जैविक खाद की जानकारी झांसी के कृषि वैज्ञानिक विनोद सचान से मिली थी, जो यह खाद किसानों को निःशुल्क उपलब्ध कराते हैं. उनका उद्देश्य रासायनिक खेती से होने वाले नुकसान से किसानों को बचाना और मिट्टी की सेहत को फिर से बहाल करना है.