ट्यूबरकुलोसिस (TB) सुनते ही आज भी सबसे पहले फेफड़ों की बीमारी का ख्याल आता है। लेकिन टीबी आंखों, हड्डी, पेट सहित शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती है। यह इतना घातक रोग है कि जिस अंग को प्रभावित करता है, उसे गला कर नष्ट कर देता है। इसी बीमारी की
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रोग के कारण गली हुई हड्डी, सड़ चुके मांस और मवाद से भरा कूबड़ बाहर निकल आया था, जिससे बच्ची आगे की ओर झुक गई थी। इन सबके बावजूद, आयुष्मान भारत योजना के तहत बच्ची का निजी अस्पताल में 15 दिन तक इलाज चला, जहां केवल जांचें और दर्द की गोलियां दी गईं। जब हालत बिगड़ने लगी, तो उसे हमीदिया अस्पताल रेफर कर दिया गया।
यहां डॉक्टरों की टीम ने रेयर और जटिल सर्जरी कर न केवल उसकी जान बचाई, बल्कि उसे दोबारा अपने पैरों पर सीधा खड़ा कर दिया। इशरा 16 जून को हमीदिया अस्पताल पहुंची थी और उसे ऑर्थोपेडिक विभाग में भर्ती किया गया। उसके पिता बेहतर इलाज के लिए अधीक्षक डॉ. सुनीत टंडन से मिले। आर्थिक स्थिति को देखते हुए अस्पताल प्रबंधन ने 23 जून को सर्जरी करने का निर्णय लिया और आवश्यक Spine Operative Monitoring मशीन दिल्ली से मंगाई गई।
प्रबंधन के मुताबिक, यह सर्जरी निजी अस्पतालों में 12 से 15 लाख रुपए में होती, जबकि हमीदिया में आयुष्मान योजना के अंतर्गत पूरी तरह मुफ्त की गई। बच्ची को गुरुवार को डिस्चार्ज कर दिया गया। आने वाले डेढ़ साल तक उसका टीबी का इलाज चलेगा।
पहली बार मशीन से सर्जरी वरिष्ठ ऑर्थोपेडिक विशेषज्ञ डॉ. राहुल वर्मा के अनुसार, इस मशीन की मदद से प्रदेश के किसी मेडिकल कॉलेज में पहली बार सर्जरी की गई है। ऑपरेशन से पहले बच्ची के शरीर में Spine Operative Monitoring मशीन के सिग्नल कैचर पॉइंट लगाए गए, जो सिर से पैर तक लगाए जाते हैं। ये शरीर की नसों और स्पाइनल कॉर्ड के काम को रियल टाइम में मॉनिटर करते हैं।
इससे सर्जरी के दौरान डॉक्टर को पता रहता है कि वे किसी गलत नस या कॉर्ड पर दबाव तो नहीं डाल रहे हैं, जिससे मरीज को पैरालिसिस होने का खतरा रहता है।
उपयोग – रीढ़ की नसों की निगरानी के लिए फायदा – ऑपरेशन के दौरान नसों को क्षति से बचाना विशेषता – नसों की उत्तेजना, प्रतिक्रिया और मांसपेशियों की हलचल की जानकारी तुरंत देना उपयोगिता – जटिल न्यूरो और ऑर्थो सर्जरी में अनिवार्य उपकरण
मशीन का खर्च और डेमो हमीदिया अस्पताल अधीक्षक डॉ. सुनीत टंडन ने बताया कि मशीन मंगाने का खर्च लगभग 50 हजार रुपए था, लेकिन कंपनी ने डेमो के उद्देश्य से इसे मुफ्त उपलब्ध कराया। अब इस केस को ऑर्थोपेडिक विभाग की आगामी कॉन्फ्रेंस में पेश किया जाएगा।

2 घंटे चली सर्जरी जटिल सर्जरी करीब 2 घंटे चली। इस दौरान डॉक्टरों की टीम ने न केवल सड़ी हुई हड्डी को हटाया, बल्कि नई हड्डी जोड़ने के लिए प्लेट और स्क्रू लगाए। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ऑपरेशन के दौरान 1 लीटर से अधिक मवाद निकाला गया।
सर्जरी टीम करने वाली टीम ऑर्थोपेडिक विभाग से डॉ. सुनीत टंडन, डॉ. वैभव जैन, डॉ. राहुल वर्मा, डॉ. आशीष गोहिया सहित अन्य डॉक्टरों ने सर्जरी में भाग लिया। वहीं एनेस्थीसिया विभाग से डॉ. ट्विंकल केवल, डॉ. उर्मिला और डॉ. आरपी कौशल भी टीम का हिस्सा रहे।

डिस्चार्ज से पहले बच्ची इशरा हमीदिया अस्पताल अधीक्षक डॉ. सुनीत टंडन और ऑर्थोपेडिक विभाग के विशेषज्ञ डॉ. राहुल वर्मा व डॉ. वैभव जैन से मिलने पहुंची।
नई जिंदगी की शुरुआत इशरा के पिता रईस खान ने कहा, हम तो पूरी तरह निराश हो चुके थे। इस अस्पताल ने हमारी बेटी को नया जीवन दे दिया। इशरा ने भी कहा कि अब अपने पैरों पर फिर से चलना उनके लिए ऐसा अनुभव है जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।