मप्र के पांच बड़े जिलों में सबसे ज्यादा टेंशन में भोपाल के स्टूडेंट्स हैं। इनकी संख्या 59% हैं। दूसरे नंबर पर जबलपुर के 54% तो 53 फीसदी आंकड़े के साथ तीसरे नंबर पर ग्वालियर के स्टूडेंट्स हैं। इंदौर के 52% स्टूडेंट्स तनाव में हैं। ये खुलासा शिक्षा मंत
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सर्वे के नतीजों में ये भी सामने आया कि 47 फीसदी छात्र पैदल स्कूल जाते हैं, तो 65 फीसदी छात्र स्मार्टफोन से पढ़ाई करते हैं। दरअसल, शिक्षा मंत्रालय ने पिछले साल 4 दिसंबर को ये सर्वे किया था जिसमें मप्र के 52 जिलों के 5 हजार स्कूलों के 17 हजार टीचर और तीसरी, छठी एवं नौवीं के 1.38 लाख छात्रों को शामिल किया था।
इसमें बच्चों के ओवरऑल प्रदर्शन, उनकी सीखने की क्षमता और पढ़ाई पर असर डालने वाले 10 कारकों का एनालिसिस किया गया। शिक्षा मंत्रालय ने 8 जुलाई को सर्वे के नतीजे जारी किए हैं। दैनिक भास्कर ने एमपी के 52 में से पांच बड़े जिले भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और उज्जैन में छात्रों का चार कैटेगरी में किए गए सर्वे का एनालिसिस किया।
वहीं स्कूलों के शिक्षकों और छात्रों से पूछा कि वे किस तरह का टेंशन महसूस करते हैं? इसकी उन्होंने अलग-अलग वजह बताई। साथ ही एक्सपर्ट से छात्रों के तनाव की वजह जानी। पढ़िए रिपोर्ट
सिलसिलेवार जानिए चारों कैटेगरी के बारे में
पहली कैटेगरी: उदास या टेंशन महसूस करना इस कैटेगरी में पांच जिलों के जो नतीजे सामने आए उसमें भोपाल के 59 फीसदी स्टूडेंट ज्यादा तनाव महसूस करते हैं। 54 फीसदी के साथ जबलपुर दूसरे नंबर पर और 53 फीसदी के साथ ग्वालियर तीसरे नंबर पर है। इंदौर के 52% और उज्जैन के 46% छात्र तनाव में रहते हैं।
कक्षा तीसरी, छठी और नौवीं के छात्रों पर किए सर्वे में सबसे चौंकाने वाली बात ये हैं कि ग्वालियर में तीसरी क्लास के 45 फीसदी छात्र सबसे ज्यादा तनाव महसूस करते हैं। जबकि इंदौर और उज्जैन के 37 फीसदी छात्र ही तनाव में रहते हैं। इंदौर के कक्षा छठी के छात्र सबसे कम तनाव महसूस करते हैं। इनका आंकड़ा 49 फीसदी है। वहीं कक्षा नौवीं में कम तनाव महसूस करने वाले छात्र उज्जैन जिले के हैं।

दूसरी कैटेगरी: स्कूल वर्क की वजह से तनाव इस कैटेगरी में भोपाल और इंदौर के 48.66 फीसदी स्टूडेंट्स तनाव महसूस करते हैं। इसके बाद 45.66 फीसदी के साथ जबलपुर और 44.66 फीसदी के साथ ग्वालियर का नंबर आता है। उज्जैन के 34.66 फीसदी स्टूडेंट्स स्कूल वर्क की वजह से तनाव में रहते हैं।
खास बात ये है कि इंदौर के तीसरी क्लास के 33 फीसदी स्टूडेंट्स स्कूल वर्क को लेकर सबसे ज्यादा तनाव में रहते हैं। दूसरे नंबर पर ग्वालियर( 32 फीसदी) और तीसरे पर भोपाल(31 फीसदी) है। भोपाल के कक्षा छठी के 52 फीसदी स्टूडेंट स्कूल वर्क को लेकर तनाव में है। इस कैटेगरी में इंदौर के केवल 39 फीसदी छात्र ही तनाव महसूस करते हैं।
वहीं कक्षा नौवीं की बात करें तो इंदौर के 75 फीसदी छात्र स्कूल वर्क की वजह से तनाव में हैं। इसके बाद भोपाल-जबलपुर का नंबर आता है। दोनों जिलों में 63 फीसदी स्टूडेंट स्कूल वर्क की वजह से तनाव में होते हैं।

तीसरी कैटेगरी: स्कूल जाना पसंद नहीं सर्वे की इस कैटेगरी में भोपाल और ग्वालियर के 37 फीसदी स्टूडेंट्स हैं जिन्हें स्कूल जाना पसंद नहीं है। इसके बाद इंदौर और जबलपुर के 35 फीसदी छात्र आते हैं। उज्जैन के 32 फीसदी छात्रों को स्कूल जाना पसंद नहीं है। कक्षा के हिसाब से देखें तो जबलपुर और ग्वालियर के तीसरी कक्षा के 39-39 फीसदी छात्रों को स्कूल जाना पसंद नहीं है।
उज्जैन के 74 फीसदी छात्र स्कूल जाना पसंद करते हैं। वहीं इंदौर के 29 फीसदी छात्रों को स्कूल जाना पसंद नहीं। कक्षा छठी के छात्रों की बात करें तो उज्जैन के 46 फीसदी छात्रों को स्कूल जाना पसंद नहीं है। दूसरे नंबर पर भोपाल(36%), तीसरे नंबर पर ग्वालियर( 35%) के स्टूडेंट है। वहीं नौवीं कक्षा में इंदौर के 46 फीसदी छात्रों को स्कूल जाना पसंद नहीं। दूसरे नंबर पर भोपाल( 41%) और तीसरे नंबर पर ग्वालियर(37%) है।

चौथी कैटेगरी: अकेलापन महसूस करना इस कैटेगरी में केवल नौवीं कक्षा के स्टूडेंट्स पर ही सर्वे किया गया। जो नतीजे आए उसमें इंदौर के 52 फीसदी छात्र अकेलापन महसूस करते हैं। वहीं दूसरे नंबर पर जबलपुर( 48%) और तीसरे नंबर पर भोपाल(45%) है। उज्जैन के 30 फीसदी छात्र अकेलापन महसूस करते हैं।

अब जानिए स्टूडेंट्स को किन बातों का तनाव…
हिंदी मीडियम से इंग्लिश मीडियम में आने का डर भास्कर ने स्कूलों में जाकर छात्रों के तनाव के बारे में बात की। भोपाल के सुभाष एक्सीलेंस स्कूल के 11वीं के कॉमर्स सेक्शन में पढ़ने वाले एक छात्र ने बताया कि मैं आठवीं तक हिंदी मीडियम में पढ़ा और जब 9वीं में इंग्लिश मीडियम में आया तो मुझे डर लगने लगा था। मैं रोता था। एग्जाम देते समय मुझे डर महसूस होता था। ऐसा कई महीनों तक हुआ, इसके बारे में मैंने किसी को नहीं बताया।
इस डर से उबरने में मुझे दोस्तों और टीचर्स ने मदद की। उससे पूछा कि पेरेंट्स को इस बारे में नहीं बताया तो उसने कहा कि कई बार हम छोटी-छोटी परेशानियों के बारे में अपने पेरेंट्स से खुल कर नहीं कह पाते हैं। पेरेंट्स भी इसे समझ नहीं पाते। मैं ज्यादातर बातें दोस्तों से ही शेयर करता हूं।

बहुत सी चीजें सीखने का तनाव होता है दसवीं में पढ़ने वाले छात्र ने बताया कि मुझे सोशल साइंस पसंद है, लेकिन इसके साथ ही मैं जापानी भाषा, कंप्यूटर कोडिंग लैंग्वेज भी सीख रहा हूं। ऐसे में एक साथ इतनी सारी चीजें सीखने में तनाव महसूस होता है। कभी कभी ऐसा लगता है कि मुझे जो पसंद है उसी पर ध्यान केंद्रित करूं, मगर आगे बढ़ने के लिए बाकी चीजें भी जरूरी है। जब कभी तनाव में आता हूं तो घरवालों या दोस्तों से शेयर करता हूं।
माता-पिता मेरी फीस के पैसों के लिए परेशान होते हैं इसी स्कूल की 10 वीं में पढ़ने वाली एक स्टूडेंट ने कहा कि स्कूल की वजह से तो नहीं लेकिन कभी-कभी घर की समस्याओं, आर्थिक परेशानियों की वजह से भी तनाव महसूस होता है। इस बात से तकलीफ होती है कि माता–पिता मेरी फीस के पैसों के लिए परेशान होते रहते हैं। हमारे स्कूल के टीचर्स सपोर्टिव हैं, फीस को लेकर आर्थिक समस्या है तो उनसे शेयर करते हैं। जब कभी तनाव या परेशानी महसूस होती है तो मैं मां से शेयर करती हूं।

अब जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट काउंसलर व मनोचिकित्सक डॉ. जेपी अग्रवाल इस रिपोर्ट के नतीजों को लेकर कहते हैं कि यह बात चिंताजनक है कि बच्चे खुश नहीं रह पा रहे हैं। इसकी कई सारी वजह हैं। परिवारों की संरचनाएं बदल रही हैं। न्यूक्लियर फैमिली का कॉन्सेप्ट तेजी से बढ़ रहा है।
वहीं बच्चे ज्यादा से ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं। दूसरी तरफ पीयर प्रेशर यानी अपने हमउम्र बच्चों से कॉम्पिटिशन भी इसकी एक वजह है। माता-पिता के बीच आपसी झगड़े या फिर बच्चों के बीच आपसी झगड़े भी तनाव बढ़ने का कारण है।

तनाव में रहने पर गुमसुम रहता है, व्यवहार बदल जाता है डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि इसका बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। उन्हें नींद नहीं आती। उनका व्यवहार बदल जाता है। वह गुमसुम रहने लगते हैं। ऐसे में बच्चों से बात कर उनकी परेशानी समझना जरूरी है। पेरेंट्स घर पर उसकी काउंसलिंग कर सकते हैं।
वह जिस बात से तनाव में है उससे इतर किसी दूसरी बात या जगह पर उसका ध्यान डायवर्ट करना चाहिए। ज्यादा परेशानी हो तो काउंसलर की मदद ली जा सकती है। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर मनहित एक मोबाइल ऐप है जिसमें दिए सवालों के जरिए उनके मानसिक स्वास्थ्य को जांचा जा सकता है।

साइकिल से जाते हैं 12%, स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं 65% सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के तीसरी, छठी और नौवीं के 47 फीसदी छात्र पैदल स्कूल जाते हैं। इनमें भी तीसरी कक्षा (59%) की संख्या ज्यादा है। छठी के 49% और नौवीं के 34% छात्र पैदल स्कूल जाते हैं। वहीं बात करें साइकिल की तो नौवीं के 18 फीसदी छात्र ही साइकिल का इस्तेमाल करते हैं जबकि छठी के 15 फीसदी छात्र हैं। जबकि राज्य सरकार छठी और नौवीं में ही छात्रों को साइकिल देती है।
इससे ये समझ आता है कि करीब 80 फीसदी छात्र स्कूल जाने के लिए साइकिल का इस्तेमाल नहीं करते। वहीं रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाली जानकारी ये है कि 65 फीसदी छात्र पढ़ने के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं। इनमें सबसे ज्यादा संख्या नौवीं के छात्रों की है। मगर तीसरी कक्षा के भी 56% छात्र स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं।

नौवीं- दसवीं के छात्रों को मोबाइल की ज्यादा जरूरत नहीं भोपाल के शासकीय सुभाष उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में आईटी और कम्युनिकेशन पढ़ाने वाली टीचर प्रियंका जैन कहती है कि आज के समय में सोशल मीडिया की उपयोगिता बढ़ी है। बच्चों का स्क्रीन टाइम भी बढ़ रहा है। इंटरनेट और स्मार्टफोन का इस्तेमाल बच्चों को करना तो चाहिए, लेकिन वह पढ़ाई या कुछ जानने के उद्देश्य से हो तो ठीक है।
स्कूल में तो स्मार्टफोन और इंटरनेट पर कंट्रोल रहता है मगर घर में पेरेंट्स को देखना चाहिए कि इंटरनेट और स्मार्टफोन का बच्चे कैसा इस्तेमाल कर रहे हैं? मेरा मानना है कि नौवीं और दसवीं के छात्रों को मोबाइल की जरूरत नहीं है, मगर टॉपिक को देखने के लिए आप इनका इस्तेमाल कर सकते हैं।
