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Kalakand Sweet Jatashankar Dham Temple. मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में वैसे तो दूध की बहुत सी मिठाइयां बनाई जाती हैं लेकिन एक ऐसी भी मिठाई है, जिसे भगवान शिव भी खूब पसंद करते हैं. छतरपुर जिले में यह मिठाई खूब खाई जाती है. जनपद के बिजावर स्थित केदारनाथ मंदिर में यह मिठाई आज भी चढ़ाई जाती है. इस मिठाई का इतिहास बहुत ही पुराना है.
छतरपुर जिले में कलाकंद नाम की एक मिठाई बनती है. यह मिठाई जिले की सबसे पुरानी मिठाइयों में से एक है. यह दूध से बनाई जाती है.

दुकानदारों के अनुसार कलाकंद की उम्र सबसे कम होती है. केवल एक दिन में खा लिया जाए, तो मजा ही कुछ अलग रहता है क्योंकि यह दानेदार होता है. दूध से लिपटा होता है. सूखे मेवे के चूरा का भी इसमें उपयोग होता है. दूध को ढाई-तीन घंटे कढ़ाही में उबाला जाता है. तब कलाकंद का स्वाद उभरकर आता है.

जटाशंकर धाम के दुकानदार बताते हैं कि यहां कलाकंद दो तरह का बनता है, एक कम मीठा, जो शहर के लोगों के लिए होता है और दूसरा ज्यादा मीठा, जो ग्रामीण लोग पसंद करते हैं.

‘बुंदेलखंड के केदारनाथ’ के नाम से मशहूर जटाशंकर धाम के भोलेनाथ को कलाकंद बेहद पसंद है. मान्यता है कि कलाकंद का भोग लगाने से सारी मुरादें पूरी होती हैं. यहां देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भक्त जटाधारी के दर पर आकर उन्हें कलाकंद चढ़ाकर प्रसन्न करते हैं.

दरअसल छतरपुर जिले के बिजावर तहसील से 11 किलोमीटर की दूरी पर भीषण जंगल में बैठे जटाधारी का जटाशंकर धाम सिद्ध माना जाता है. यहां जो भी भोलेनाथ को कलाकंद प्रसाद में चढ़ाता है, समझो उसके कष्ट दूर होना तय है.

दुकानदारों के मुताबिक, जटाशंकर धाम पर शिवरात्रि के साथ ही सावन महीने में भक्तों का रेला आता है, तो वहीं हर महीने की अमावस्या पर भी भीड़ उमड़ती है. कलाकंद जितना भी बनाओ, कम पड़ जाता है, इसलिए हर महीने कलाकंद की खपत बढ़ रही है.

जानकारों की मानें, तो जटाशंकर धाम का इतिहास डकैतों से जुड़ा है. उस समय यह इलाका बेहद घने जंगल में आता था. आसपास आदिवासी लोगों के रहने के कारण दूध भी शुद्ध मिलता था.

दूध से ही दानेदार कलाकंद को बनाया जाता है. डकैत भी भोलेनाथ को खुश करने के लिए कलाकंद का प्रसाद अर्पण करते थे. तभी से इस स्थान पर कलाकंद का प्रसाद भोलेनाथ को भोग लगाया जाता है.