रीवा में मौजूद है नायाब राजमहल, खुफिया रास्ते… दरवाजों पर भगवान शिव-पार्वती की नक्काशी, दिलचस्प है इतिहास

रीवा में मौजूद है नायाब राजमहल, खुफिया रास्ते… दरवाजों पर भगवान शिव-पार्वती की नक्काशी, दिलचस्प है इतिहास


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Venkat Bhavan Rewa: वेंकट भवन की नक्काशी पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है और इस भवन के बनने की रोचक कहानी लोगों को रीवा के महाराजा और प्रजा के बीच संबंध का बहतरीन परिचय कराती है.

भारत में तमाम ऐसे राजाओं की कहानियां प्रचलित हैं, जो हमेशा ही अपनी प्रजा के लिए रामराज्य की परिकल्पना को साकार करने में लगे रहते थे. ऐसे ही एक राजा थे रीवा के राजा महाराजा वेंकट रमन सिंह जूदेव, जिन्होंने राज्य के खराब हालातों में अपनी प्रजा के पलायन को रोकने के लिए मकान निर्माण करा दिया, जिसमें उन्होंने उस समय तीन लाख रुपये व्यय कर दिए.

नक्काशी के कायल है जाते हैं पर्यटक.

अगर आप बरसात के खूबसूरत मौसम में रीवा घूमने आ रहे हैं, तो यहां के महलों की खूबसूरती देखना बिल्कुल न भूलें. खासकर वेंकट भवन की, क्योंकि वेंकट भवन की नक्काशी पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है और इस भवन के बनने की रोचक कहानी लोगों को रीवा के महाराजा और प्रजा के बीच संबंध का बहतरीन परिचय कराती है.

अकाल के कारण हुआ था भवन का निर्माण.

1895-96 के दरमियान रीवा रियासत में अकाल पड़ गया, जिसके बाद रीवा रियासत की सारी प्रजा काम की तलाश में पलायन करने लगी. तब अपनी प्रजा को रोजगार दिलाने के उद्देश्य और उनके भरण-पोषण के लिए रीवा रियासत के तत्कालीन महाराजा वेंकट रमण सिंह जूदेव ने भवन बनाने का निर्णय लिया और रोजगार की तलाश में पलायन कर रही प्रजा को रोक लिया. राजा की उदारता से प्रसन्न होकर लोगों ने मन लगाकर उस भवन में काम शुरू कर दिया.

इंग्लैंड के इंजीनियर ने बनाया था नक्शा.

इस भवन के निर्माण को लेकर महाराजा वेंकट रमन सिंह ने इंग्लैंड से आए इंजीनियर हैरिशन को नक्शा बनाने का काम सौंपा था, जिसके बाद आकाश लोक, पाताल लोक और भू लोक की परिकल्पना कर इस भवन का निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया. भवन का निर्माण गोलाकार हॉल में बनाया गया है और उसी हॉल के ऊपर यह शाही इमारत खड़ी हुई है. वेंकट भवन निर्माण में बिछिया के रहने वाले मोहम्मद खान को मुख्य शिल्पकार नियुक्त किया गया था, जिनके साथ मिलकर सैकड़ों शिल्पकारों ने नवभवन की खूबसूरती निखारने का हर संभव प्रयास किया.

एक हजार मजदूरों ने किया था काम.

भवन के निर्माण कार्य में करीब 1000 से अधिक मजदूरों ने काम किया, जिनके दिनरात की मेहनत से 13 वर्षों में 3 लाख रुपये की लागत से बनकर यह भवन तैयार हो गया. मालूम हो की भवन के निर्माण कार्य में काम करने वाले मुख्य शिल्पकार को काम के बदले रोजाना 50 पैसे और मजदूरों को 12 पैसे का वेतन दिया जाता था.

रीवा के साथ-साथ राजस्थान और उत्तर प्रदेश के भी कारीगर हूए थे शामिल.

रीवा शहर के हृदय स्थली में 125 वर्ष पुराना यह भवन आज वेंकट भवन के नाम से जाना जाता है. इस भवन की खास बात यह की यहां का ज्यादातर काम रीवा के कारीगरों और मजदूरों ने ही किया है. रीवा राज्य में ऐसे बहुत से शिल्पकार थे जो पत्थरों में नक्काशी करने में काफी माहिर थे. लेकिन भवन की सुंदरता और ज्यादा निखारने के लिए कुछ कार्य ऐसे भी थे जिनके लिए जोधपुर, आगरा और जयपुर से शिल्पकारों को बुलाया गया.

दीवारों पर संगमरमर का इस्तेमाल.

भवन के निर्माण में गुड़ ,बेल कत्था, सुर्खी चुने सहित उड़द का इस्तेमाल किया गया. भवन की दीवारों पर सीप और संगमरमर से छपाई कर इन दीवारों की नारियल की जटा से घिसाई की गई, जिसके बाद दीवारों को शीशे की तरह चमकाने के लिए ढाका से मंगवाए गए एक खास किस्म के मखमली कपड़े का इस्तेमाल किया गया. भवन की दूसरी मंजिल के बाहरी हिस्से में लगे खूबसूरत स्टील के वर्क को महाराजा वेंकट रमन सिंह ने इंग्लैंड से मंगवाया था.

भवन के अंदर कई गुप्त रास्ते भी.

आकाश पाताल और भूलोक की परिकल्पना के आधार पर बनाए गए वेंकट भवन में कई गुप्त रास्ते बनाए गए, जिससे संकट की घड़ी में पार पाया जा सके और गुप्त मंत्रणा की जा सके. भवन के नीचे 3 लंबी सुरंगों का भी निर्माण कराया गया था और सुरंग के मध्य में ही एक भव्य स्नानागार भी है जिसे आपातकाल में एक सभा कक्ष के रूप में बदला जा सकता था.

जिला संग्रहालय भी है यहां.

वेंकट भवन के पीछे के हिस्से में फव्वारे की भी मरम्मत कर उसे चलाया गया.पिछले कई वर्षों से यह फव्वारा बंद पड़ा था. भवन के टूटे ऊपरी हिस्से की भी मरम्मत कराई गई. बता दें कि यह भवन पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है. जबकि हाल ही में पुरातत्व विभाग के तकनीकी अधिकारियों ने वेंकट भवन का निरीक्षण किया था.

संग्रहालय में रखी हैं दुर्लभ मूर्तियां.

संग्रहालय में कई शताब्दी पुरानी दुर्लभ मूर्तियां भी रखी गई हैं, जिन्हें देखने के लिए हर मौसम में पर्यटक आते हैं, उसके अलावा इतिहास के शोधकर्ता भी आते हैं जो सिर्फ भारता ही नहीं बल्कि विदेशी भी शामिल होते है.

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वेंकट भवन: खुफिया रास्ते, दरवाजों पर शिव-पार्वती की नक्काशी, जानें इतिहास…



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