1993 में शुरू हुआ प्रोजेक्ट आज तक अधूरा, 61 गांवों का पुनर्वास नहीं हुआ, बिजली उत्पादन सपना
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नर्मदा नदी पर बना महेश्वर बांध अब नीलामी की कगार पर है। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) की इंदौर विशेष पीठ ने फैसला सुनाया है कि 6 हजार करोड़ से अधिक की लागत से बनी इस परियोजना की संपत्तियां नीलाम की जाएंगी।
वजह- समय सीमा खत्म होने के बाद भी किसी भी पक्ष की ओर से समाधान प्रस्ताव पेश नहीं किया गया। बिजली उत्पादन के लिए 1993 में शुरू हुई परियोजना आज तक अधूरी है। बांध निर्माण की जिम्मेदारी एस. कुमार्स कंपनी को दी गई थी। शुरुआती दौर से ही यह विवादों में रही।
डूब क्षेत्र के 61 गांवों के करीब 10 हजार परिवारों का अब तक पुनर्वास नहीं हुआ। इसके चलते बिजली उत्पादन एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सका।
ट्रिब्यूनल ने क्यों सुनाया नीलामी का फैसला : परियोजना को लेकर 27 सितंबर 2022 को पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन ने एनसीएलटी में याचिका दायर की थी। कानून के मुताबिक, 180 दिन में समाधान पेश किया जाना चाहिए था। लेकिन 7 बार समय बढ़ाकर भी 840 दिन में कोई हल नहीं निकल सका।
अंत में फिर अवधि बढ़ाने की अर्जी दी गई, जिसे एनसीएलटी ने ठुकरा दिया। ट्रिब्यूनल ने कहा कि कोई समाधान सामने नहीं आया। ऐसे में समय और बढ़ाना लेनदारों के हितों के खिलाफ होगा। अब बांध स्थल पर मौजूद टरबाइन, निर्माण ढांचा और अधिग्रहित जमीन समेत परियोजना की तमाम परिसंपत्तियां नीलाम की जाएंगी। उससे मिलने वाली राशि लेनदारों को उनके हिस्से के अनुसार दी जाएगी।
यहां 17 कंपनियों का पैसा फंसा, प्रभावित बोले- पुनर्वास अधूरा, नीलामी गैरकानूनी नर्मदा बचाओ आंदोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल ने फैसले को प्रभावितों के अधिकारों के खिलाफ बताया है। उन्होंने कहा, “जब तक डूब क्षेत्र के सभी परिवारों का पुनर्वास नहीं हो जाता, तब तक बांध की संपत्तियां नीलाम करना गैरकानूनी और अमानवीय है। यह 6 हजार करोड़ रुपए के सार्वजनिक धन को डुबाने का मामला है। इसकी उच्चस्तरीय जांच कर दोषियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।’
आगे क्या? : विशेषज्ञ व्यक्ति विजेंद्र शर्मा व उनके वकील गजानंद किरोड़ीवाल की ओर से कोई कारगर समाधान नहीं रखा गया। अब अगला कदम परिसंपत्तियों की वैल्यूएशन कर नीलामी प्रक्रिया शुरू करनी होगी। इसमें 17 कंपनियों का पैसा फंसा है।
: परियोजना में पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन, आरईसी लिमिटेड, भारतीय जीवन बीमा निगम, आईडीबीआई बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, हुडको, एडलवाइस एआरसी, एसबीआई, जनरल इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी, ओरिएंटल इंश्योरेंस, न्यू इंडिया एश्योरेंस समेत 17 से ज्यादा संस्थानों की भारी-भरकम रकम अटकी हुई है।
400 मेगावाट बिजली का प्रस्ताव था
पुनर्वास व विस्थापन के बाद यहां 400 मेगावाट बिजली बनाई जाना थी। इसके लिए बिजली घर, बांध के गेट तक लगा दिए गए हैं। निजीकरण के तहत इसका विरोध होता रहा। दावा किया गया था कि बिजली बेहद महंगी होने के साथ ही ऊपर के बांधों से छोड़े जाने वाले पानी पर निर्भर रहेगी।