Public Opinion: 7 का पहाड़ा नहीं, 100 तक गिनती भी नहीं… ‘परख रिपोर्ट’ ने मोहन सरकार की शिक्षा की खोल दी परतें

Public Opinion: 7 का पहाड़ा नहीं, 100 तक गिनती भी नहीं… ‘परख रिपोर्ट’ ने मोहन सरकार की शिक्षा की खोल दी परतें


दीपक पांडेय/खरगोन. मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार एक ओर जहां सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए तमाम योजनाएं चला रही है, वहीं हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट ने इन दावों पर सवाल खड़े कर दिए हैं. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी “परख 2024” रिपोर्ट ने राज्य के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की जमीनी हकीकत उजागर की है.

रिपोर्ट के मुताबिक, कक्षा 9 के 60% से ज्यादा छात्र 7 का पहाड़ा तक नहीं जानते, वहीं 6वीं के कई बच्चे 100 तक की गिनती भी नहीं बोल पा रहे हैं. यही नहीं, तीसरी कक्षा के बच्चों में भी मूलभूत समझ का अभाव देखा गया है. इस रिपोर्ट ने प्रदेश की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की नींव पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है.

दअरसल केंद्रीय स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग द्वारा परख 2024 तैयार की गई है. इसमें देशभर के बच्चों की सीखने की क्षमता को परखा गया है. मध्य प्रदेश से इस सर्वे में करीब 1.40 लाख छात्र शामिल हुए. जिला स्तर पर आधारभूत, प्रारंभिक और मध्य चरणों के अंत में दक्षताओं के विकास में आधारभूत प्रदर्शन को समझने के लिए प्रदेश में कक्षा 3 के 1992, कक्षा 6 के 1,737 और कक्षा 9वीं के 2010 स्कूलों में सर्वेक्षण किया गया था.

रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश में कक्षा 9वीं के 48 प्रतिशत विद्यार्थी ऐसे हैं, जो अपने पाठ को पढ़ और समझ नहीं सकते हैं. 69 प्रतिशत विद्यार्थी अनुपात और दशमलव, का इस्तेमाल करना नहीं जानते हैं. पूर्णांक की समझ नहीं है. 64 प्रतिशत कोण, त्रिभुज, 60 प्रतिशत वर्गमूल और घनमूल हल करना नहीं आता है. 60 प्रतिशत बच्चों को 7 का पहाड़ा भी नहीं आता है. 73 प्रतिशत बच्चों को प्रतिशत निकालना नहीं आता है. गणित के साथ ये बच्चे विज्ञान में भी काफी कमजोर हैं.

इसी प्रकार कक्षा 6वीं में 45 प्रतिशत बच्चे ऐसे मिले, जिनकों 100 तक गिनती और 10 तक का पहाड़ा भी जानते हैं. 43 प्रतिशत बच्चों को सम और विषम संख्याओं का ज्ञान भी नहीं है. 56 प्रतिशत दूरी, लंबाई और समय की गणना करने में सक्षम नहीं है. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के यह आंकड़े बता रहे है कि, प्रदेश की स्कूलों में शिक्षा का स्तर कितना है. रिपोर्ट यह भी बताती है कि गणित और भाषा दोनों ही विषयों में बच्चों की समझ औसत से काफी नीचे है.

वहीं, प्रदेश को शर्मशार करने वाले इन आंकड़ों पर लोकल 18 की टिम ने खरगोन के लोगों की राय भी जानी. सुखदेव सिंह पटेल ने कहा कि, दस साल पहले तक प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा प्रणाली काफी अच्छी हुआ करती थी. लेकिन फिर निजी स्कूलों में बच्चे जानें लगे. इससे सरकारी स्कूलों पर प्रभाव पड़ा.

दूसरा सरकार को चाहिए कि शिक्षकों पर बच्चों को पढ़ाने के अलावा जो अतिरिक्त कार्य दिए जाते है उनके लिए अलग से टिम बनाई जाए. शिक्षकों को सिर्फ पढ़ाने का ही काम दिया जाएं तो बच्चों की शिक्षा में सुधार होगा. क्योंकि, शिक्षक स्कूलों में कम ओर फील्ड में इलेक्शन, सर्वे, सहित अन्य ड्यूटियों में ज्यादा रहते है. इससे शिक्षक छात्रों पर पूर्ण रूप से ध्यान नहीं दे पाते है.

संजय सिंह पंवार ने कहा कि, आकंड़े बहुत चिंताजनक है. सरकार को विशेष ध्यान देने की जरूरत है. साथ ही स्कूल प्रशासन को भी सख्ती अपनाने की जरूरत है. कई बार स्कूलों में सख्ती नहीं होने की वजह से बच्चे दो तीन पीरियड पड़ने के बाद स्कूल से चले जाते है, उन्हें रोकने वाला कोई नहीं होता. जिससे बचे ठीक से सीख नहीं पाते. मोहित पटेल ने कहा कि, स्कूलों में दक्ष शिक्षक पढ़ाने के लिए उपलब्ध तो है तो पर मोबाइल की वजह से बच्चे ध्यान कम देते है. बच्चों को यह मानसिक दूर करनी होगी कि सरकारी स्कूल में पढ़ाई नहीं होती.

वहीं, विनोद भार्गव ने कहा कि रिपोर्ट में जी अकड़े आए वह प्रदेश के लिए बेहद चिंता जनक है, शर्मशार करने वाले है, लेकिन इसके लिए सरकार को या शिक्षकों या बच्चों में से किसी एक को दोष नहीं दिया जा सकता. आज भी सरकारी स्कूलों के रिजल्ट प्रायवेट स्कूलों से बेहतर है. स्थिति वहां ज्यादा खराब है जहां ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षक टाइम पर स्कूल नहीं जाते, या जाते ही नहीं, जिससे कई स्कूल खुल ही नहीं पाते. ऐसे में बच्चे पड़ ही नहीं पाते तो सीखेंगे कैसे.

उन्होंने यह भी कहा है कि, शिक्षकों की भरती के लिए परीक्षा की जाती है, लेकिन समय समय पर विषय को पढ़ाने वाले शिक्षकों को साक्षरता को भी टेस्ट के जरिए जानना चाहिए. ताकि पता चल पाए कि शिक्षक उस विषय को पढ़ाने के काबिल है या नहीं, भर्ती परीक्षा के प्रतिशत के आधार पर उसे शिक्षक नहीं बनाए. क्योंकि जहां शिक्षक पढ़ाने में अच्छे है वहां का परिणाम अच्छा है, जहां शिक्षक ही कमजोर है, वहां बच्चे कैसे कमजोर होंगे.



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