कभी पीतल बर्तन के लिए मशहूर था MP का ये शहर, आज गिन रहा आखिरी सांसें

कभी पीतल बर्तन के लिए मशहूर था MP का ये शहर, आज गिन रहा आखिरी सांसें


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Chhatarpur News: पीतल कारीगर संतोष कुशवाहा ने लोकल 18 से कहा कि हमारा परिवार पीढ़ियों से पीतल के बर्तन अपने हाथों से बनाता आया है. कटोरी, गिलास, लोटा, भगोना, हांडी, खुरवा से लेकर कुपरी तक बनाते हैं लेकिन यह काम…और पढ़ें

छतरपुर. आज से बरसों पहले घर-घर में पीतल बर्तन का उपयोग होता था लेकिन बढ़ते मशीनीकरण की वजह से पीतल के बर्तनों का उपयोग धीरे-धीरे कम होने लगा. हालांकि मध्य प्रदेश के छतरपुर शहर में आज भी पीतल के बर्तन बनाए जाते हैं लेकिन जिले का पीतल बर्तन उद्योग अब आखिरी सांसे गिन रहा है क्योंकि जिले में पीतल के बर्तनों की मांग बहुत कम हो गई है. पीतल बर्तन से जुड़े व्यापारी और मजदूर लोकल 18 को बताते हैं कि जब से प्लास्टिक और स्टील बाजार में आया है, तब से पीतल की डिमांड बहुत ही कम हो गई है. यह सिर्फ शादियों के सीजन में ही बिकता है.

छतरपुर शहर के तामराई मोहल्ले में रहने वाले पीतल कारीगर संतोष कुशवाहा ने कहा कि पीढ़ियों से हम पीतल के बर्तन अपने हाथों से बना रहे हैं. गिलास, कटोरी, लोटा, भगोना, हांडी और खुरवा से लेकर कुपरी सब बनाते हैं लेकिन यह काम अब कुछ दिन ही चलता है. जब तक शादियों का सीजन होता है, तब तक हमें बर्तन बनाने का काम मिलता है. इसके बाद हम बेरोजगार हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि जब से बाजार में स्टील आना शुरू हुआ है, तब से पीतल के बर्तनों का धंधा कम ही होता चला जा रहा है. आजकल लोगों के घरों में स्टील बर्तन का उपयोग ज्यादा हो रहा है. वहीं पीतल का बर्तन का उपयोग सीमित हो गया है.

शादी सीजन में होती है पीतल की डिमांड
कारीगर बताते हैं कि शादी के सीजन में ही पीतल बर्तन की सबसे ज्यादा डिमांड होती है क्योंकि शादियों में लोग आज भी पीतल के बर्तन देते हैं, इसलिए आज भी शादी के सीजन में पीतल के बर्तनों की डिमांड रहती है.

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