अब सागौन लगाने में नहीं करनी होगी माथापच्ची, इस तकनीक से खटाखट लगेंगे पौधे, तेजी से बढ़ेंगे, जल्दी होगी कमाई

अब सागौन लगाने में नहीं करनी होगी माथापच्ची, इस तकनीक से खटाखट लगेंगे पौधे, तेजी से बढ़ेंगे, जल्दी होगी कमाई


Agri Tips: आज के दौर में जब पारंपरिक खेती से लाभ कम होता जा रहा है, ऐसे में वैकल्पिक कृषि विधियां किसानों के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभर रही हैं. इन्हीं में से एक है सागौन की खेती, जो न सिर्फ पर्यावरण के लिए लाभकारी है, बल्कि किसानों को आर्थिक रूप से भी सशक्त बना सकती है. खास बात ये कि सागौन के पौधे अब बीज से नहीं बल्कि रूटसूट यानी जड़ से उगाए गए पौधों के माध्यम से लगाए जा रहे हैं, जिससे इनका विकास तेज़ होता है. उत्पादन बेहतर मिलता है.

क्यों जरूरी है रूटसूट विधि?
रामटेकरी नर्सरी सतना के रोपणी प्रभारी विष्णु तिवारी ने लोकल 18 को बताया कि इस विधि से तैयार पौधे तेज़ी से बढ़ते हैं और इनकी देखरेख भी अपेक्षाकृत आसान होती है. किसान यदि अपनी कृषि भूमि की मेड़ों पर या ऐसी ज़मीन पर जहां आमतौर पर खेती नहीं होती, वहां सागौन के रूटसूट पौधे लगाते हैं तो इससे उन्हें बिना मुख्य फसल को प्रभावित किए अतिरिक्त आमदनी का ज़रिया मिल सकता है.

सागौन: इमरती लकड़ी की रानी
आगे कहा, सागौन की लकड़ी को इमरती लकड़ी कहा जाता है. इसकी बाजार में कीमत ₹3500 से ₹5500 प्रति घन फुट तक है. वहीं, एक घन मीटर सागौन की लकड़ी की कीमत तैयार अवस्था में करीब 1.30 लाख तक पहुंच जाती है. ऐसे में 10 से 15 साल के भीतर एक किसान अपनी जमीन के किनारे-किनारे लगाए गए सागौन से अच्छी खासी कमाई कर सकता है.

कैसे तैयार करें रूटसूट पौधे?
अप्रैल से मई के बीच सागौन के ट्रीटेड बीज को मदर्स बेड़ में बोया जाता है. बीज के अंकुरित होने के बाद उसमें नियमित सिंचाई और खाद-कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है. जब पौधा जनवरी के अंत या फरवरी की शुरुआत में तैयार हो जाए तो उसे जड़ से उखाड़कर रूटसूट बनाया जाता है. देसी भाषा में इसे कलम भी कहा जाता है. इसके बाद रूटसूट को बाविस्टिन फंगीसाइड में डुबोकर पॉलीपॉट में शिफ्ट किया जाता है. पॉलीपॉट में मिट्टी, वर्मी कम्पोस्ट और खाद का मिश्रण तैयार किया जाता है, जिससे पौधा तेजी से बढ़ सके. गर्मी से सुरक्षा के लिए इन पौधों को घास या पैरा की शेड से ढका जाता है और फिर सिंचाई की जाती है. 7 से 10 दिन में पौधे से नई पत्तियां निकलने लगती हैं और एक महीने में वह पौधा 1 से 1.5 फीट तक हो जाता है.

कब और कैसे करें रोपण?
मार्च-अप्रैल में गड्ढे की खुदाई कर लेनी चाहिए और पहली बरसात में रूटसूट पौधों को लगाया जा सकता है. एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी कम से कम 10 फीट रखी जाए ताकि विकास में कोई बाधा न आए और तने की मोटाई पर्याप्त हो. यह दूरी पौधों के बीच हवा और धूप के संचार को भी बेहतर बनाती है जिससे पौधा स्वस्थ रहता है.

देखरेख और रखरखाव की ज़रूरत
सागौन रूटसूट पौधों की नियमित निगरानी जरूरी है. यदि किसी पौधे पर कीट हमला करते हैं तो उसमें उचित दवाओं का छिड़काव किया जाना चाहिए. साथ ही प्रति पौधा 2 किलो वर्मी कम्पोस्ट या सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग किया जाए. पौधे के चारों ओर फेंसिंग की जाए ताकि जानवरों से उसकी सुरक्षा हो सके और सिंचाई की नियमित व्यवस्था बनी रहे.

बदल सकता है भविष्य
सागौन के रूटसूट पौधे लगाकर किसान आने वाले 10 से 15 साल में लाखों की कमाई कर सकते हैं. जहां खेती का रिटर्न घटता जा रहा है, वहीं इस तरह की दीर्घकालिक योजना किसानों के लिए लाभदायक हो सकती है. खासकर सतना और बघेलखंड जैसे क्षेत्रों में जहां जमीन की उपलब्धता अधिक है वहां यह खेती ग्रामीण युवाओं के लिए एक नया अवसर बन सकती है.



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