मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखने वाले राधेश्याम पवार की कहानी सिर्फ क्रिकेट की नहीं, जज्बे और जुनून की है. दोनों पैरों से दिव्यांग होने के बावजूद राधेश्याम ने जिंदगी की हर चुनौती को पीछे छोड़ते हुए साबित कर दिया कि हौसले व्हीलचेयर से भी उड़ सकते हैं.
राधेश्याम पवार 35 साल के हैं और जब दूसरों ने दिव्यांगता को रुकावट माना, तब उन्होंने व्हीलचेयर को अपना हथियार बना लिया. क्रिकेट के मैदान में उनका आत्मविश्वास देखकर दर्शक हैरान रह जाते हैं चौके, छक्के और तेज फील्डिंग सबकुछ व्हीलचेयर पर बैठकर.
राधेश्याम मध्यप्रदेश के पहले व्हीलचेयर क्रिकेटर हैं, जिन्होंने दिल्ली सुपरस्टार, चेन्नई सुपरस्टार और गुजरात जैसी कई राष्ट्रीय टीमों का प्रतिनिधित्व किया है. हाल ही में उन्होंने इंडिया टीम के लिए गुजरात में ट्रायल दिया और चयन के बेहद करीब पहुंचे. उनकी फुर्ती और खेल शैली ने हर किसी का दिल जीत लिया.
वे बताते हैं कि “हमारे खेल में भी 11 खिलाड़ी होते हैं. रन भी बनते हैं, फील्डिंग भी होती है फर्क सिर्फ इतना है कि हम ये सब व्हीलचेयर से करते हैं. हम व्हीलचेयर को ऐसे दौड़ाते हैं जैसे कोई रेसिंग कार हो.”
राधेश्याम सिर्फ खुद ही नहीं खेले, बल्कि खंडवा में व्हीलचेयर क्रिकेट टूर्नामेंट आयोजित कर दूसरों को भी मंच दिया. उनके प्रयास से कई दिव्यांग युवा अब इस खेल में करियर की संभावना देख रहे हैं.
जब उनसे पूछा गया कि प्रेरणा कहां से मिलती है, तो बोले – “मैं सचिन तेंदुलकर का बहुत बड़ा फैन हूं. एक दिन उनसे मिलकर क्रिकेट खेलना चाहता हूं.” ये कहते वक्त उनके चेहरे पर जो चमक थी, वो उनके सपनों की सच्चाई बयां कर रही थी.
राधेश्याम को इंडिया टीम की ओर से उच्च स्तरीय प्रशिक्षण दिया जा चुका है. अब बोर्ड के अंतिम चयन के बाद तय होगा कि वो लंदन में होने वाले अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे या नहीं. लेकिन एक बात तय है राधेश्याम जहां भी खेलेंगे, खंडवा और मध्यप्रदेश का सिर गर्व से ऊंचा करेंगे.
राधेश्याम की कहानी सिर्फ एक खिलाड़ी की नहीं, बल्कि पूरे समाज की सोच को बदलने वाली है. उन्होंने बता दिया कि शारीरिक सीमा मंजिल को नहीं रोकती, सोच को रोकती है.अगर हौसला हो, तो व्हीलचेयर भी आपको अंतरराष्ट्रीय मैदान तक पहुंचा सकती है.