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Agriculture Tips: खरीफ सीजन में फसलों में कीट व रोगों का प्रकोप बढ़ना आम बात है. इससे निपटने के लिए किसान कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं, लेकिन दवा का गलत चयन नुकसानदायक साबित हो सकता है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि कीटनाशक खरीदते समय उसके डिब्बे पर लगे रंगीन निशान को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. ये निशान दवा की विषाक्तता और सावधानियों का संकेत होते हैं.
भारत सरकार के कीटनाशक अधिनियम 1968 के अनुसार सभी कीटनाशकों में जहर की मात्रा के आधार पर चार रंगों में बांटा गया है. लाल, पीला, नीला और हरा. इनका उपयोग सिर्फ असर के आधार पर नहीं, बल्कि सावधानीपूर्वक करना चाहिए.

लाल त्रिकोण वाले कीटनाशक अत्यधिक जहरीले होते हैं. इनके छिड़काव में पीपीई किट, दस्ताने, चश्मा और मास्क अनिवार्य होता है. इन दवाओं की गंध भी हानिकारक हो सकती है. संपर्क में आने पर चक्कर आना, उल्टी, सांस लेने में दिक्कत जैसे लक्षण उभर सकते हैं.

पीले रंग वाले कीटनाशकों को भी बहुत जहरीला माना जाता है, हालांकि ये लाल वाले से कम खतरनाक होते हैं. इनके छिड़काव में भी सुरक्षा उपकरण जरूरी हैं. नीले त्रिकोण वाले कीटनाशकों को मध्यम विषाक्त श्रेणी में रखा गया है. बच्चों और पशुओं को इनसे दूर रखना जरूरी होता है.

हरे रंग वाले कीटनाशक कम हानिकारक होते हैं और मित्र कीटों को कम नुकसान पहुंचाते हैं. लेकिन इनके छिड़काव में भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए. हाथ धोना, कपड़े बदलना और बच्चों को खेत से दूर रखना जरूरी है.

खरगोन के कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव सिंह बताते हैं कि किसान अक्सर दवा के डिब्बे का रंग देखकर भ्रमित हो जाते हैं, जबकि असली संकेत उस पर बने त्रिकोण के रंग में छिपा होता है. यह त्रिकोण ही बताता है कि दवा कितनी विषैली है और उसका उपयोग कैसे किया जाए.

लेडी बर्ड बीटल, मधुमक्खी, मकड़ी जैसे कीट खेत के प्राकृतिक रक्षक होते हैं. ये हानिकारक कीटों को खा जाते हैं, लेकिन जहरीली दवाएं इन्हें भी मार देती हैं. नतीजतन, फसल की रक्षा करने वाले मित्र कीट नष्ट हो जाते हैं और कीटों का प्रकोप दोबारा बढ़ सकता है.

कई किसान सिर्फ दुकानदार से तेज दवा मांगकर बिना लेबल देखे छिड़काव कर देते हैं. यह आदत फसल, पर्यावरण और खुद किसान की सेहत के लिए घातक है. विशेषज्ञ सलाह के बिना कीटनाशक का उपयोग नहीं करना चाहिए.

जरूरत से ज्यादा या बार-बार कीटनाशक छिड़काव से भी कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है. ऐसे में वही दवा भविष्य में बेअसर हो जाती है और खर्च बढ़ जाता है. साथ ही मिट्टी और पानी में जहर घुलने लगता है, जिससे पर्यावरण भी खतरे में आता है.

किसानों को चाहिए कि वे कीटनाशक खरीदने से पहले दवा पर बने रंगीन निशान को पढ़ें और विशेषज्ञ से सलाह लें. सही दवा, सही समय और सही तरीके से उपयोग करने पर ही खेती लाभदायक हो सकती है. सावधानी से न केवल फसल बचेगी, बल्कि किसान, पर्यावरण और ज़मीन भी सुरक्षित रहेगी.