गांव के कई लोगों ने बताया कि उनके पास पुरानी राजस्व रसीदें और अन्य दस्तावेज हैं, जो इस जमीन पर उनके अधिकार को सिद्ध करते हैं, फिर भी उन्हें अतिक्रमण करने वाला बताया जा रहा है. तेदुनी मोटवा गांव निवासी बुट्टी बाई ने लोकल 18 से कहा कि वह तीन पीढ़ियों से इस जमीन पर रह रही हैं. अब बुजुर्ग हो चुकी हैं और उनके बेटे-बेटियां इसी जमीन पर जीवन बिता रहे हैं. वह भावुक होते हुए कहती हैं कि मर जाएंगे मगर अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे.
समाजसेवी सुखेंद्र सिंह ने लोकल 18 को बताया कि इस क्षेत्र में गरीब परिवारों की बस्ती को वन विभाग मनमानी से उजाड़ रहा है. 1976 में कुछ किसानों को पट्टे आवंटित किए गए थे लेकिन कई को यह लाभ नहीं मिल पाया क्योंकि उस समय लोगों में जानकारी और शिक्षा की कमी थी. जिन किसानों को पट्टा नहीं मिला, वे भी वहीं रहकर खेती करते रहे. उन्होंने कहा कि अब वन विभाग और राज्य सरकार के आपसी समन्वय की कमी के कारण ग्रामीणों को परेशानी झेलनी पड़ रही है.
सुखेंद्र ने आगे कहा कि इस मुद्दे को लेकर एसडीएम को ज्ञापन सौंपा गया है लेकिन वह एसडीएम की जवाबदेही से संतुष्ट नहीं हैं. उनका कहना है कि सीमांकन की प्रक्रिया भी ग्रामीणों को भ्रमित करने वाली और पक्षपातपूर्ण है. उन्होंने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि गरीब आदिवासी किसानों के लिए वन विभाग के साथ मिलकर स्थायी समाधान निकाला जाए.
‘ये जमीन हमारी रगों में है’
63 वर्षीय बहोरीलाल वर्मा ने कहा कि उनके पिता के नाम पर स्थायी पट्टा था और उनके परिवार ने 100 वर्षों से ज्यादा समय तक इसी जमीन पर खेती की. ये जमीन हमारी रगों में है. 1990 में जब पहली बार जानकारी मिली कि यह भूमि वन विभाग की है, तब सारे गांववालों ने मिलकर वन व्यवस्थान अधिकारी को ज्ञापन सौंपा था. तब उन्हें मौखिक और लिखित रूप से यह आश्वासन मिला कि वे यहीं रहकर खेती कर सकते हैं और उनका ग्राम वन ग्राम कर दिया जाएगा, जिससे राजस्व विभाग को पैसे नहीं देने होंगे. इसके बाद से ही वहां ग्राम सड़क योजना, पीएम आवास और बिजली-पानी जैसी सरकारी सुविधाएं भी पहुंचाई गईं.
अब ग्रामीणों को डिप्टी रेंजर द्वारा नोटिस दिए गए हैं, जिसमें उन्हें जमीन खाली करने का निर्देश है. बहोरीलाल वर्मा का आरोप है कि वन विभाग अब फर्जी मुकदमे दर्ज करवा रहा है, जिससे लोगों में डर और आक्रोश दोनों बढ़ता जा रहा है. लोकल 18 से बातचीत में एसडीएम राहुल सिलाड़िया ने कहा कि ग्रामीणों की शिकायतों को सुना गया है और मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाएगी. सीमांकन की प्रक्रिया करवाई जाएगी ताकि वास्तविक स्थिति स्पष्ट हो सके. वहीं यह भी पता लगाया जाएगा कि राजस्व की और वन विभाग की जमीन कहां-कहां है. वहीं ग्रामीणों को अब प्रशासन पर भरोसा नहीं रहा. वे मांग कर रहे हैं कि उन्हें उनकी पुश्तैनी जमीन पर वैधानिक अधिकार मिले और उन्हें बेदखल न किया जाए.
गौरतलब है कि सतना जिले के इन गांवों की कहानी महज जमीन की नहीं बल्कि हक, पहचान और अस्तित्व की लड़ाई है. जहां एक ओर वन संरक्षण और राजस्व की नीतियां हैं, वहीं दूसरी ओर उन किसानों का भविष्य दांव पर है, जो पीढ़ियों से उसी मिट्टी से रोजी-रोटी कमा रहे हैं. सवाल यह है कि क्या सरकार उनके हक में कोई ठोस कदम उठाएगी या फिर वे अपनी ही जमीन से बेदखल कर दिए जाएंगे.