टीपू सुल्तान से लेकर आज तक का सफर
रोपणीया प्रभारी विष्णु कुमार तिवारी ने बताया कि यूकेलिप्टस कोई देसी पेड़ नहीं है, बल्कि इसकी उत्पत्ति ऑस्ट्रेलिया से हुई है. भारत में इसकी शुरुआत 1790 के आसपास टीपू सुल्तान ने की थी, जब उन्होंने नीलगिरि के पर्वतों पर इसे लगवाया था. 1988 की राष्ट्रीय वन नीति के बाद इसकी वृक्षारोपण की गति और भी तेज हो गई. इसके बाद से यह देशभर में फैलता चला गया. आज यह देश के सबसे तेज बढ़ने वाले वृक्षों में गिना जाता है.
यूकेलिप्टस की सबसे बेहतरीन प्रजातियों में क्लोनल वेरायटी जैसे P23, P28 और P7 काफी लोकप्रिय है, जिन्हें रूट ट्रेलर तकनीक से तैयार किया जाता है. इन पौधों को ₹5 से ₹7 की कीमत में खरीदा जा सकता है. इसे जून से अगस्त के बीच बोया जाता है और प्रति एकड़ 1000 से 1200 पौधे लगाए जा सकते हैं. इसकी खास बात यह है कि ये किसी भी प्रकार की मिट्टी में तैयार हो जाते हैं और पानी की ज़्यादा आवश्यकता नहीं होती.
कम मेहनत, ज़्यादा मुनाफ़ा
खेती की तैयारी में खेत को समतल करने के बाद मार्च में ही 15-20 सेमी गड्ढे खोदने होते हैं, जिनमें 5 फीट की दूरी पर पौधे लगाए जाते हैं. प्रत्येक पौधे के पास जैविक खाद जैसे सड़ी गोबर या वर्मी कम्पोस्ट डालनी होती है. उचित सिंचाई, निंदाई और गुड़ाई करते रहने से पौधे अच्छी वृद्धि करते हैं. 5 वर्षों के भीतर यह पेड़ तैयार होकर प्रति एकड़ 20 से 25 लाख रुपये तक का लाभ दे सकता है.
बेचने पर कोई रोक नहीं
यूकेलिप्टस की खेती की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे बेचने और खरीदने पर कोई सरकारी पाबंदी नहीं है. ऐसे में किसान इसे स्वतंत्र रूप से व्यापारिक रूप में बेच सकते हैं. यदि आप पारंपरिक अनाज की खेती से बाहर निकलकर एक स्थायी और लाभदायक विकल्प की तलाश में हैं तो यूकेलिप्टस की खेती आपके लिए एक स्मार्ट फैसला साबित हो सकती है.