Ground Report: छत से टपकता पानी, दीवारें ढीली, डर के बीच पढ़ाई कर रहे 500 बच्चे, 200 साल पुराना स्कूल बना खतरा

Ground Report: छत से टपकता पानी, दीवारें ढीली, डर के बीच पढ़ाई कर रहे 500 बच्चे, 200 साल पुराना स्कूल बना खतरा


खरगोन. मध्य प्रदेश के खरगोन जिले का सबसे पुराना स्कूल आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है. मंडलेश्वर स्थित महात्मा गांधी शासकीय बालक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का भवन 200 वर्ष पुराना है, लेकिन मजबूरी में अब भी यहां कक्षाएं लगती हैं. बारिश के दिनों में छत से टपकता पानी, दीवारों में घुसी दीमक और खंभों के सहारे टिकी जर्जर छत के बीच यहां 500 से ज्यादा बच्चे हर दिन मन में एक डर लेकर शिक्षा पाने आते हैं कि, कहीं यह छत उनके सिर पर न गिर जाए.

इस स्कूल की शुरुआत भले ही 1948 में शासकीय रिकॉर्ड में दर्ज है, लेकिन जिस इमारत में यह स्कूल चल रहा है, वह अंग्रेजी हुकूमत के दौर में बनी थी. 1857 की क्रांति भी इस भवन ने देखी है. बताया जाता है कि यह भवन पहले ब्रिटिश गवर्नमेंट द्वारा होलकर स्टेट के राजा पर निगरानी के लिए रेजिडेंट हाउस और DIG कार्यायल के रूप में इस्तेमाल होता था. आजादी के बाद इसे स्कूल को सौंप दिया गया. लेकिन आज, यह भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है. करीब 2009 में ही PWD ने इसे डिशमेंटल (ढहाने योग्य) घोषित कर दिया, लेकिन नया भवन नहीं मिलने से स्कूल अब भी यहीं चल रहा है.

भवन की हालत बेहद खतरनाक
स्कूल के प्रिंसिपल जे.के. सोनी ओर वशिष्ठ शिक्षक तोमर सर बताते हैं कि भवन की छत लकड़ी की बनी है, जिसे दीमक ने खोखला कर दिया है. दीवारों से पोपड़े गिरते है. हर कमरे में बारिश के दौरान पानी टपकता है. ऊपरी मंजिल को लगभग 20 वर्ष पहले ही बंद कर दिया गया है. कुल 25 शिक्षक और 10 अन्य कर्मचारी इसी जर्जर बिल्डिंग में रोज आते हैं और डरे-सहमे हालात में बच्चों को पढ़ाते हैं. बच्चों के माता पिता भी डरे रहते हैं कि कहीं कोई हादसा न हो जाए.

शासन से नवीन भवन की लगातार गुहार
स्कूल प्रबंधन द्वारा कई बार जनप्रतिनिधियों और शिक्षा विभाग को इस भवन की स्थिति से अवगत कराया गया. पत्राचार भी हुए, निरीक्षण भी हुए लेकिन आज तक नया भवन स्वीकृत नहीं हुआ. अब हालत यह हो गए कि प्रशासन भवन के बारे में बात भी नहीं करना चाहते. बच्चों की जान जोखिम में डालकर पढ़ाई कराई जा रही है. यह भवन इतिहास का हिस्सा तो है, लेकिन इसमें वर्तमान और भविष्य दोनों असुरक्षित हैं.

भवन को संरक्षित करें पुरातत्व विभाग
इतिहासकार दुर्गेश राजदीप बताते हैं कि यह भवन केवल एक स्कूल नहीं, बल्कि मंडलेश्वर की विरासत है. भवन का निर्माण 206 साल पहले लगभग 1819 में हुआ था. 1948 में यह भवन स्कूल को मिला था और 1982 तक यहां कॉलेज भी संचालित हुआ. भोज मुक्त विश्वविद्यालय का सेंटर भी यहीं था. ऐसे ऐतिहासिक भवन को गिराना नहीं चाहिए, बल्कि इसे पुरातत्व विभाग को सौंपकर संरक्षित किया जाना चाहिए. वहीं स्कूल के लिए अलग से नया भवन जल्द तैयार किया जाना चाहिए.

90 फीसदी कमरों पर जड़े ताले
आपको बता दें कि, इस बिल्डिंग में ग्राउंड फ्लोर पर प्रिंसिपल ऑफिस, स्टाफ रूम मिलाकर करीब 19 कमरे है. इतने ही ऊपरी माले पर हैं. लेकिन 90 फीसदी से ज्यादा कमरों पर ताले लगे हैं, उन्हें बंद कर दिया है. फिलहाल, 3-4 कमरे हैं, जहां कक्षाएं लगाई जा रही हैं. कक्षा 9 से 12वीं के 400-500 बच्चे यहां पढ़ रहे है. जिन्हें अब भवन के बाहर नवीन मिडिल स्कूल में दो शिफ्ट में बैठाकर पढ़ाना पड़ रहा है. प्रिंसिपल के ऑफिस को तिरपाल से ढका है, खम्बो पर टिकाया है.



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