अस्पताल के बेड पर था एक अजनबी…जैसे ही बताया बेटे का नाम, खुला 25 साल पुराना राज!

अस्पताल के बेड पर था एक अजनबी…जैसे ही बताया बेटे का नाम, खुला 25 साल पुराना राज!


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Khandwa News: खंडवा के चार युवाओं ने इंसानियत की ऐसी मिसाल पेश की, जिसे पढ़कर आपकी आंखें भी नम हो जाएंगी. 25 साल से बिछड़े पिता को बेटे से मिलवाया बिना दस्तावेज, सिर्फ एक नाम के सहारे.

हाइलाइट्स

  • खंडवा में चार युवाओं ने 25 साल से बिछड़े पिता को बेटे से मिलवाया.
  • शब्बीर ने बेटे साबिर का नाम बताया, जिससे चार दोस्तों ने उसे ढूंढा.
  • युवाओं ने शब्बीर को नहलाया, शेव कराई और इज्जत से विदा किया.

खंडवा: कभी-कभी किस्मत इंसान के लिए कुछ ऐसे मोड़ रखती है, जहां न कोई प्लान होता है, न पहचान सिर्फ दिल की आवाज़ होती है. ऐसा ही हुआ खंडवा में, जब चार दोस्तों की नज़र जिला अस्पताल में एक लावारिस बुजुर्ग पर पड़ी. चेहरे पर थकान, शरीर पर घाव और आंखों में बस अकेलापन. नाम था शब्बीर जो 25 साल पहले महाराष्ट्र के अकोला से घर छोड़कर निकल गया था, और फिर रास्ता ही भूल गया.

पहचान, न नंबर… सिर्फ एक नाम साबिर

बातों-बातों में शब्बीर ने टूटी-फूटी यादों में सिर्फ एक नाम बताया साबिर, उसका बेटा, जो कहीं शिवनी खदान (अकोला) में रहता है. न पता था, न मोबाइल, न कोई कागज बस दिल की पुकार और उस एक नाम के सहारे चार युवाओं ने एक फैसला लिया.

खंडवा से अकोला तक इंसानियत की सबसे खूबसूरत यात्रा

हसनैन जैदी, कमर, समीर पठान और मुरसलीन लाला, ये चारों दोस्त बिना किसी प्रचार के, दो बाइक पर सवार होकर निकल पड़े अकोला की ओर.

एक हफ्ते तक गलियों में घूमे, घर-घर जाकर पूछताछ की, लोगों को तस्वीरें दिखाईं, लेकिन थके नहीं. और फिर… एक जर्जर मकान का दरवाज़ा खुलता है सामने खड़ा एक अधेड़ आदमी खुद को साबिर बताता है. जैसे ही उसे बुजुर्ग की फोटो दिखाई जाती है, उसकी आंखें भीग जाती हैंयही हैं मेरे अब्बा… जो 25 साल पहले बिना बताए चले गए थे.”

जब 25 साल का इंतज़ार आंखों से बह निकला

साबिर, जो अब एक ट्रक ड्राइवर है, बस एक ही बात कहता है कि भाई, मुझे मेरे अब्बा के पास लेकर चलो… अब एक-एक पल भारी लग रहा है.”

चारों दोस्त उसे साथ लेकर फिर खंडवा लौटते हैं. जैसे ही बाप-बेटे आमने-सामने होते हैं पूरा अस्पताल सन्न और भावुक हो जाता है. शब्बीर बेटे की गोद में सिर रखते हैं और बस कहते हैं कि “अब मैं घर चलूंगा बेटा…”

इन युवाओं ने सिर्फ मिलाया नहीं, इज्जत से विदा भी दी

चारों ने बुजुर्ग को नहलाया, शेव कराई, नए कपड़े पहनाए और फिर एक निजी गाड़ी बुक कर पिता-पुत्र को इज्जत के साथ विदा किया. शब्बीर ने हाथ उठाकर दुआ दीखुदा तुम्हें दोनों जहान की खुशियां दे बेटा… तुम मेरे लिए फरिश्ते हो.”

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