यह कहानी है सागर के टैक्स कंसल्टेंट संजय अग्रवाल की, जो अब सफल किसान बन चुके हैं। वे न सिर्फ मियाजाकी आम की खेती कर रहे हैं, बल्कि आसपास के किसानों को प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।
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संजय ने बताया, “मेरे पिता राधा वल्लभ अग्रवाल सागर के पहले चार्टर्ड अकाउंटेंट थे। मैं भी उनके पदचिह्नों पर चलते हुए टैक्स कंसल्टेंट बन गया और पिछले 22 साल से प्रैक्टिस कर रहा हूं। मेरे पास न तो खेती की जमीन थी और न ही खेती का कोई अनुभव। फिर भी मेरा सपना था कि मैं खुद खेती करूं और दूसरों को राह दिखाऊं।”
5 एकड़ में की शुरुआत, पर्सनल लोन लेकर खरीदी जमीन
संजय को राजघाट के पास मूड़रा गांव में जमीन मिलने की जानकारी मिली। उन्होंने वहां जाकर 5 एकड़ जमीन खरीदी। जमीन के लिए पैसे कम पड़े तो पर्सनल लोन लिया। अब अगला कदम था खेती की शुरुआत करना।
खेती-किसानी के गुर सीखने के लिए संजय देश के अलग-अलग हिस्सों में गए, जहां अच्छी किस्म के पौधे मिलते हैं। संजय ने वर्ष 2020 में कोलकाता से मियाजाकी किस्म के 20 आम के पौधे मंगवाए। ये पौधे 2000 रुपए प्रति पौधे की दर से खरीदे गए।
जैविक खेती पर जोर, अब हर पेड़ पर फल
संजय ने इन पौधों को जैविक खाद दी और गर्मी-सर्दी से बचाने के लिए कपड़ों से ढंककर रखा। 5 साल की मेहनत के बाद अब सभी पेड़ों पर आम आ गए हैं। हर पेड़ पर 3 से 5 किलो आम लगे हैं।
इन आमों का वजन 350 से 500 ग्राम तक है। ये गहरे लाल रंग के होते हैं और इनमें रेशा नहीं होता। इन्हें ‘एग ऑफ द सन’ यानी ‘सूर्य का अंडा’ भी कहा जाता है। यह किस्म जापान के शहर मियाजाकी से आई है और इन्हीं के नाम पर पहचानी जाती है।
बाजार में इसकी कीमत ढाई से तीन लाख रुपए प्रति किलो तक होती है। इसकी कीमत न्यूट्रिशन वैल्यू के आधार पर तय होती है। संजय अब इन आमों की न्यूट्रिशन जांच कराने वाले हैं, जिसके बाद सही दाम तय होंगे।
किसानों के लिए प्रेरणा, दे रहे हैं प्रशिक्षण
संजय बताते हैं, “कोई भी किसान खेत की मेड़ या कोने में इन पौधों को लगाकर लाखों की आमदनी कर सकता है। अब आसपास के किसान मुझसे संपर्क कर रहे हैं। मैं उन्हें मियाजाकी आम के बगीचे तैयार करने का प्रशिक्षण भी दे रहा हूं।”
संजय ने मियाजाकी के अलावा तोतापरी, लंगड़ा, नीलम, अरुणिका सहित 50 से ज्यादा आमों की किस्मों के पौधे भी लगाए हैं।
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