न भूसा, ना चारा… MP की इस गौशाला में गाय खा रही हैं ताजी ककड़ी, हर दिन 80 किलो की खपत

न भूसा, ना चारा… MP की इस गौशाला में गाय खा रही हैं ताजी ककड़ी, हर दिन 80 किलो की खपत


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Ajab-Gajab: खंडवा की श्री गणेश गौशाला में सावन के महीने में गायों को ककड़ी खिलाई जा रही है, जो स्वास्थ्यवर्धक और ताजगी देने वाली होती है. लगभग 450 गायों को रोज़ 70-80 किलो ककड़ी दी जाती है.

हाइलाइट्स

  • अब गौमाताओं को मिल रही है ताजगी
  • खंडवा की गौशाला की अनोखी सेवा
  • हर दिन 80 किलो ककड़ी का भोज
खंडवा. खंडवा की श्री गणेश गौशाला ने सावन के पवित्र महीने में एक सराहनीय पहल की है, जिसमें गायों को स्वास्थ्यवर्धक और ताजगी से भरपूर फलाहार स्वरूप ककड़ी खिलाई जा रही है. यह परंपरा न सिर्फ सनातन संस्कृति से जुड़ी है, बल्कि गायों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का भी प्रतीक बन गई है.गौशाला के सचिव रामचंद्र मौर्य ने बताया कि सावन माह शिवभक्तों के लिए अत्यंत पूज्यनीय होता है. इस पूरे माह में उपवास, फलाहार और सेवा की भावना जागृत रहती है. इसी भावना को ध्यान में रखते हुए गौमाताओं के लिए भी विशेष फलाहार की व्यवस्था की गई है. उन्होंने बताया कि ककड़ी एक ऐसा फल है जो पाचन में हल्की, जलवाष्प से भरपूर और प्राकृतिक ठंडक देने वाली होती है. इसलिए यह गायों के लिए गर्मियों और वर्षा ऋतु में विशेष रूप से लाभदायक मानी जाती है.

गौशाला में लगभग 450 गायें हैं और हर दिन 70 से 80 किलो तक ककड़ी इन्हें खिलाई जाती है. हर गाय को रोज़ाना 700 ग्राम से 1 किलो तक ताजी ककड़ी दी जाती है ताकि उनके स्वास्थ्य को कोई नुकसान न हो और पाचन भी सुचारु बना रहे. यह ककड़ी कभी बाजार से खरीदी जाती है तो कभी स्थानीय समाजसेवियों और भक्तों के सहयोग से प्राप्त की जाती है.

रामचंद्र मौर्य का कहना है कि जैसे मनुष्य उपवास के दौरान स्वाद बदलने और शरीर को हल्का रखने के लिए फलाहार करते हैं, वैसे ही गौमाताओं के लिए भी यह आवश्यक है कि उन्हें समय-समय पर प्राकृतिक और पोषक तत्वों से युक्त आहार दिया जाए. इस प्रयास से न केवल गायों की सेहत सुधरी है, बल्कि उनका व्यवहार भी पहले से अधिक शांत और संतुलित हुआ है.इस सेवाकार्य में श्री गणेश गौशाला के अध्यक्ष राकेश बंसल की महत्वपूर्ण भूमिका है, जो स्वयं रोज़ गौशाला पहुंचकर व्यवस्था का निरीक्षण करते हैं. उनके साथ भूपेंद्र चौहान, आशीष चटकले और सुनील जैन जैसे सेवाभावी लोग भी नियमित रूप से गौशाला पहुंचकर गायों की सेवा करते हैं.

इस सेवा में स्थानीय युवाओं और श्रद्धालुओं का भी विशेष सहयोग रहता है. कई लोग रोज़ अपने घरों से ककड़ी लाकर गौशाला में दान करते हैं, तो कई लोग गौमाताओं को अपने हाथों से खिलाकर पुण्य अर्जित करते हैं. श्री गणेश गौशाला की यह पहल यह सिद्ध करती है कि पारंपरिक श्रद्धा को यदि आधुनिक सोच और वैज्ञानिक समझ के साथ जोड़ा जाए, तो गौसेवा को एक नई दिशा दी जा सकती है. सिर्फ चारा और भूसा देने से गायों का पालन नहीं होता, बल्कि उनके स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति का भी ध्यान रखना आवश्यक है. इस प्रकार सावन में श्री गणेश गौशाला की यह सेवा न केवल गायों को ताजगी देती है, बल्कि समाज को यह संदेश भी देती है कि धर्म, विज्ञान और सेवा भावना जब एक साथ चलें, तो समाज में सकारात्मक परिवर्तन संभव है.

Anuj Singh

Anuj Singh serves as a Content Writer for News18MPCG (Digiatal), bringing over Two Years of expertise in digital journalism. His writing focuses on hyperlocal issues, Political, crime, Astrology. He has worked …और पढ़ें

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न भूसा, ना चारा… MP की इस गौशाला में गाय खा रही हैं ताजी ककड़ी



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