Last Updated:
महाकाल की नगरी मे मनोविकास विशेष शिक्षा विद्यालय में ऐसे 200 विद्यार्थी हैं, जिन्हें मनोविकास विकलांग सहायता समिति कौशल शिक्षा भी दी दे रही है. 2003 में सिस्टर आंसी के मार्गदर्शन में व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र…और पढ़ें
दरसल 2003 में सिस्टर आंसी के मार्गदर्शन में व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र की शुरुआत हुई थी. विद्यालय से जुड़े फादर का कहना है कि त्यौहार के मायने क्या होते हैं, कोई इनसे सीखे. सालभर इन्हें रक्षाबंधन का इंतजार रहता है. रंग-बिरंगी राखी को सजाने के लिए यह बच्चे खुद सुनहरी मोती चुनते हैं. उन्हें क्रम से चिपकाने के साथ सुखाने तक हर काम पर एक कुशल कारीगर की तरह नजर रखते हैं. निरीक्षण के लिए आने वाले फादर को उत्साह से बताते हैं, कोई कमी होने पर उसे उसी तन्मयता से सुधारते भी हैं.
सिस्टर आंसी नें लोकल 18 को बताया कि यह बचे मानसिक रूप से कमजोर है. लेकिन इनके हुनर के चर्चे पुरे उज्जैन मे है. क्युकि यह समय-समय पर रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए सुन्दर-सुन्दर राखी बनाते है. जिसकी डिमांड बढ़ती जा रही है. यह बाजार से बहुत कम दाम मे ऐसी राखी बनाते है. जिन्हे देखकर लोगों का मन मोह जाए. इस बार भी इन्होने नें 2 महीने की कड़ी मेहनत के बाद हज़ारो राखी बना चुके है. इन बच्चों का लक्ष्य 10 से 12 हज़ार राखी बनाना है. बनाने के बाद इन्ही बच्चो से अलग अलग स्कूलों में स्टाल लगवा कर खुद के बनाये प्रोडक्ट को बेचना भी सिखाया जाता है जिससे होने वाली आमदानी इनके आत्मविश्वास को बढ़ाती है.
10 रु से लेकर 80 रूपये तक राखी की क़ीमत
फादर जॉर्ज का कहना है कि राखियों की कीमत 10 रु होकर 80 रूपये से अधीक तक होती है इसमें बारीक करिगरी की हुई राखियों की कीमत ज्यादा है जिसमें धागा, मोती व अन्य सभी का उपयोग होता है. राखियों में बच्चो के लिए कार्टून, स्पाइडर मैन, सुपर मैन व अन्य किरदार है तो वहिं बड़ो के लिए विशेष मोतियों से जड़ी राखियां, युवाओ के लिए BRO, SIS लिखी हुई, नज़र ताबीज व अन्य राखियां.
कौन है यह बच्चे
यह बच्चों की बात करे तो यह उज्जैन, विदिशा और अन्य शहर के है. यह ऐसे दिव्यांग कलाकार है. जिन्हे ना ही कलर की समझ है, साथ ही इन्हे नाम लिखने मे परेशानी आती है. लेकिन रिश्तो के इस उत्स्व मे यह बच्चे काफ़ी ख़ुश होकर हिस्सा लेते है. यह दिवाली के समय सुन्दर दीपक और मोमबत्ती बनाकर कई घरो मे उजाला करते है. जब कोई इनकी हाथो की कला देखता है तो वह प्रसन्ना करना नही भूलता. जिससे बच्चो का हौसला और भी बढ़ता है.