8 दिन बच गई राखी भूजली सुन भैया लिवया ला आय….यहां त्यौहार की तरह मनाते धान रोपाई, जानिए इसका महत्व

8 दिन बच गई राखी भूजली सुन भैया लिवया ला आय….यहां त्यौहार की तरह मनाते धान रोपाई, जानिए इसका महत्व


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Balaghat News: देश के कई हिस्सों में जहां खेती सिर्फ एक जीने का आसरा या कमाई का जरिया है, वहीं एमपी में इसे एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है. आइए जानते हैं इसकी खासियत.

हाइलाइट्स

  • भारत में धान रोपाई एक तरह से त्योहार ही है.
  • यहां धान रोपते वक्त खास तरह का गीत गाती हैं.
  • मध्य प्रदेश के बालाघाट, मंडला और डिंडोरी में भी गाए जाते हैं.
बालाघाट: मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए धान की फसल सिर्फ एक फसल नहीं है. यह एक त्यौहार है, जिसमें किसानों के चेहरे पर खुशी होती है. ऐसे में पुरुष और महिलाओं की अलग-अलग भूमिकाएं होती हैं. जहां पर पुरुष नांगर यानी हल चलाते हैं, तो महिलाएं खार खोदती यानी नर्सरी से धान का रोपा निकालती हैं. इस दौरान महिलाएं एक गीत गाती है, जिसमें वह अपने मायर यानी मायके को याद करती है.
महिलाएं गाती है पारंपरिक गीत
8 दिन बच गई राखी भूजली सुन भैया लिवया ला आय….
इस गीत को धान की रोपाई के दौरान महिलाएं गाती हैं. पुराने जमाने में धान की रोपाई के कुछ दिन बाद ही रक्षा बंधन का त्यौहार होता है. उसके अगले दिन ही भुजरिया का त्यौहार होता है. ऐसे में गीत के माध्यम से महिलाएं अपने पीहर यानी मायके को याद करती हैं. इसमें वह अपने भाई से कहती हैं, रक्षाबंधन का त्योहार आ रहा है. मुझे लेने कब आओगे. दरअसल, रक्षाबंधन और भुजरिया के त्यौहार महिलाएं अपने मायके में मनाती हैं.

धान रोपाई त्योहार से कम नहीं
भारत में धान रोपाई एक तरह से त्योहार ही है. इस दौरान लोग काम के साथ-साथ हंसी-मजाक भी करते हैं. गीत गाते हैं और नृत्य भी करते हैं. इससे काम भी होता है और मनोरंजन भी होता है.

इसके अलावा ये गीत भी गाती हैं
ये गीत धान का रोपा लगाने वाली महिलाएं गाती हैं, जो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की संस्कृति का हिस्सा है. ये गीत क्षेत्र और समुदाय के आधार पर भिन्न होते हैं, लेकिन अक्सर फसल, प्रकृति, और जीवन के सुख-दुख से संबंधित होते हैं. जैसे भोजपुरी और कजरी गीत बिहार और उत्तर प्रदेश में गाए जाते हैं. छत्तीसगढ़ में अरण बरण के गीत गाए जाते हैं, जो मध्य प्रदेश के बालाघाट, मंडला और डिंडोरी में भी गाए जाते हैं.

ये परंपराएं हो रही विलुप्त
स्थानीय लोगों का कहना है कि अब ये गीत गाने की परंपरा विलुप्त होती नजर आ रही है. दरअसल, आधुनिकता के युग में किसान भाई मशीन से परहा यानी धान का रोपा लगाते हैं. वहीं, नए लोग इस संस्कृति को धीरे-धीरे भूल रहे हैं. नतीजतन गीत गाने की परंपरा विलुप्त होती नजर आ रही है.

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