किसानों को हुआ फायदा…
डॉ. कमलेश अहिरवार बताते हैं कि छतरपुर के किसान परंपरागत खेती ही करते आए हैं. यहां के किसान खरीफ सीजन में तिल, मूंग-उड़द, मूंगफली और ज्वार की खेती करते हैं. लेकिन, हम लगातार किसानों को सोयाबीन की खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं. इसका परिणाम यह है कि अब छतरपुर में भी किसान सोयाबीन की खेती करने लगे हैं. जिले में सोयाबीन का रकबा बढ़ रहा है. जिन किसानों ने सोयाबीन की खेती की है, उन्हें फायदा हुआ है.
डॉ. कमलेश बताते हैं कि मध्य प्रदेश को सोयाबीन उत्पादन के लिए जाना जाता है. किसान भाइयों को लगता है कि जिले में सोयाबीन की खेती संभव नहीं है, जबकि ऐसा नहीं है. छतरपुर बुंदेलखंड की जलवायु में भी सोयाबीन की खेती कर सकते हैं.
हर तरह की मिट्टी में उत्पादन संभव
डॉ. कमलेश बताते हैं कि छतरपुर जिले में काली मिट्टी, लाल मिट्टी, दोमट मिट्टी और पथरीली मिट्टी पाई जाती है. किसान भाइयों को लगता था कि सोयाबीन सिर्फ काली मिट्टी में ही होता है, लेकिन अब किसान धीरे-धीरे जागरूक हो रहे हैं.
खाद और पानी से बंपर उत्पादन
काली मिट्टी में सोयाबीन फसल का उत्पादन ज्यादा होता है. यह सही है, लेकिन अगर समय से खाद और पानी दिया जाए तो किसी भी तरह की मिट्टी में सोयाबीन उगाया जा सकता है.