रिटायर्ड टीचर की बगिया बनी मिसाल, अब हर किसी को देते ‘पर्यावरण का तोहफा’

रिटायर्ड टीचर की बगिया बनी मिसाल, अब हर किसी को देते ‘पर्यावरण का तोहफा’


खंडवा. मध्य प्रदेश के खंडवा जिले का एक छोटा सा गांव लेकिन यहां रहने वाले एक सेवानिवृत्त शिक्षक ने जो काम किया है, वो आज पूरे समाज के लिए प्रेरणा बन चुका है. हम बात कर रहे हैं आनंद सिंह मौर्य की, जिन्होंने अपने जीवन की दूसरी पारी को पर्यावरण सेवा के नाम कर दिया है. रिटायरमेंट के बाद जहां लोग आराम की जिंदगी जीना पसंद करते हैं, वहीं आनंद मौर्य ने अपने घर के आसपास की खाली पड़ी जमीन को एक हरित स्वर्ग में तब्दील कर दिया है. उन्होंने एक एकड़ से ज्यादा जमीन को सजाया, संवारा और वह अब तक 172 अलग-अलग पौधे लगा चुके हैं. यह कोई सरकारी योजना का हिस्सा नहीं था, न ही किसी एनजीओ का प्रोजेक्ट, यह उनका खुद का प्रयास था, अपने संसाधनों से, अपनी मेहनत से और सबसे बड़ी बात, अपने जुनून से.

आनंद सिंह मौर्य अब इस हरियाली को ही समाज में बांटते हैं. जब भी गांव में किसी की शादी होती है, कोई शिक्षक सेवानिवृत्त होता है या कोई शुभ अवसर आता है, वह लोगों को पौधे उपहार में देते हैं. उनका मानना है कि असली तोहफा वही है, जो धरती को बचाए और पीढ़ियों तक साथ रहे. इस पहल में उनका साथ दिया उनके बेटे ने, जो खुद भी पर्यावरण के प्रति जागरूक हैं. पिता-पुत्र की जोड़ी मिलकर इस बगिया को संभालती है, पौधों की देखरेख करती है और जरूरत पड़ने पर आसपास के गांवों में भी पौधे पहुंचाती है. वो ये पौधे बिल्कुल मुफ्त में देते हैं, बस एक शर्त होती है, पौधा लगाने वाला उसकी देखभाल जरूर करे.

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पर्यावरण संकट से मिली प्रेरणा
अब यह बगिया केवल पौधों की नहीं बल्कि लोगों के दिलों की भी जगह बन चुकी है. दूर-दूर से लोग इस अनोखी हरियाली को देखने आते हैं. स्कूल-कॉलेज के बच्चे यहां शैक्षणिक भ्रमण के लिए लाए जाते हैं ताकि उन्हें भी प्रकृति से जुड़ने की प्रेरणा मिले. आनंद सिंह मौर्य लोकल 18 को बताते हैं कि उन्होंने यह काम तब शुरू किया था, जब उन्होंने देखा कि हर साल तापमान बढ़ता जा रहा है, बारिश का चक्र बिगड़ गया है और गांवों में भी हरियाली खत्म होती जा रही है. उन्होंने ठान लिया कि अगर सरकार नहीं कर रही, तो हम खुद क्यों न शुरुआत करें और यहीं से उनकी यात्रा शुरू हुई. अगर हर घर एक पौधा भी लगाएं और उसे अपने बच्चे की तरह पालें, तो हमारा गांव, हमारा जिला और फिर पूरा देश हरा-भरा हो जाएगा.

न कोई प्रचार और न दिखावा
आनंद सिंह किसी अखबार या टीवी चैनल में आने के लिए काम नहीं कर रहे, वह बस चाहते हैं कि लोग प्रकृति को समझें, उसे बचाएं और अगली पीढ़ी को एक बेहतर धरती दे सकें. उन्होंने कभी किसी मंच से भाषण नहीं दिया लेकिन उनकी बगिया खुद बोलती है और वो भी हर भाषा में, सिर्फ हरियाली के जरिए. खंडवा के इस अनोखे शिक्षक की कहानी आज पूरे देश के लिए मिसाल है. जहां लोग पर्यावरण दिवस पर केवल भाषण देते हैं, वहीं आनंद सिंह मौर्य जैसे लोग जमीन पर काम करके दिखा रहे हैं कि अगर नीयत सही हो, तो हर सूखा इलाका भी हरा-भरा हो सकता है. यह सिर्फ एक शिक्षक की कहानी नहीं है, यह उस सोच की कहानी है, जो बदलाव ला सकती है.



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