गर्भ में शिशु का 4 किलोग्राम से ज्यादा वजन होना किसी न किसी बीमारी का संकेत हो सकता है. ऐसे बच्चों का जन्म आसान नहीं होता है. इसलिए ऑपरेशन के वक्त डॉक्टर विशेष सावधानी की बरतते हैं. अब सवाल है कि आखिर गर्भ में शिशु का इतना वजन क्यों बढ़ जाता है? मां को क्या-क्या होती हैं परेशानियां? क्या बच्चे की सेहत को भी हो सकता नुकसान? इस बारे में News18 को बता रही हैं नोएडा की सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. मीरा पाठक-
डॉ. मीरा पाठक बताती हैं कि, गर्भ में 9 महीने के बच्चे का वजन सामान्यतौर पर 2.5 किलोग्राम (5.5 पाउंड) से 4 किलोग्राम (8.8 पाउंड) के बीच होता है. बच्चे का वजन साढ़े तीन किलो से अधिक होने पर सामान्य प्रसव नहीं होता, सीजेरियन करना ही पड़ता है. ऐसे बच्चों को 15-16 वर्ष की उम्र में सामान्य बच्चों की तुलना में 8-10 गुना अधिक डायबिटीज का खतरा रहता है. इसलिए डॉक्टर गर्भधारण के पहले और 5वें महीने में ग्लूकोज टालरेंस टेस्ट (जीटीटी) कराने की सलाह देते हैं.
कई महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान जेस्टेशनल डायबिटीज हो जाती है. इसे आम भाषा में प्रेग्नेंसी की डायबिटीज कहा जाता है. डॉक्टर के मुताबिक, Gestational Diabetes गर्भावस्था के दौरान होने वाली शुगर का एक प्रकार है. यह डायबिटीज सामान्यता गर्भावस्था के दूसरी या तीसरी तिमाही में होती है. यह बीमारी गर्भावस्था के दौरान शरीर में होने वाले हार्मोनल परिवर्तन हैं जो इंसुलिन के कार्य में बाधा डालती हैं. अगर जेस्टेशनल डायबिटीज की अनदेखी कर दी जाए तो मां और बच्चे दोनों की सेहत को नुकसान हो सकता है.
एक्सपर्ट के मुताबिक, गर्भावस्था में शिशु का वजन बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं. जैसे- अनुवांशिक कारण, अधिक उम्र में शादी, मोटापा, पीसीओडी, अनियंत्रित खानपान और व्यायाम न करना है. ऐसे में जरूरी है कि महिलाएं प्रॉपर मेडिकल चेकअप कराएं. साथ ही, डॉक्टर द्वारा दिए गए सुझाव फॉलो करें.
गर्भ में बच्चे के वजन का बढ़ना पहले तंदरुस्ती की निशानी थी. लेकिन, अब यह सेहत के लिए नुकसानदेह और डायबिटीज का संकेत है. डॉक्टर की मानें तो लंबे समय तक अनियंत्रित डायबिटीज से बांझपन की समस्या हो सकती है. ऐसी महिलाओं का मासिक धर्म गड़बड़ा जाता है. उनमें अंडे नहीं बनते हैं. बच्चेदानी का फंक्शन भी खराब हो जाता है. पुरुषों का स्पर्म काउंट गिर जाते हैं. गर्भ नहीं ठहरता है और कई बार ठहरने के बाद गर्भपात हो जाता है.
गर्भावस्था में डायबिटीज हो जाए तो उसे पहले खानपान एवं नियमित व्यायाम से नियंत्रित करें. नियंत्रित न होने पर इंसुलिन लें, इससे गर्भस्थ शिशु को नुकसान नहीं होता. दवाओं से साइड इफेक्ट का खतरा रहता है. माइक्रोसोमिया होने से बच्चे के पेट में ही मरने का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए महिलाओं का 36 हफ्ते में ही नार्मल या सीजेरियन प्रसव कराना चाहिए.