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Ratlam Coin Collection: मध्य प्रदेश के रतलाम शहर के रिटायर्ड कृषि विस्तार अधिकारी चंद्रशेखर केलवा के पास सिक्कों का अनोखा कलेक्शन है. उनके कलेक्शन में गौतम बुद्ध और चंद्रगुप्त मौर्य के जमाने के भी सिक्के मौजूद हैं.
संग्रहालय और प्राचीन म्यूजियम में अपने सिक्के तो कई देखे होंगे लेकिन मध्य प्रदेश के रतलाम के एक शख्स के पास सिक्कों और प्राचीन मुद्राओं का ऐसा कलेक्शन है जिसे देखकर आप दांतों तले उंगलियां चबा लेंगे.

रतलाम शहर के रिटायर्ड कृषि विस्तार अधिकारी चंद्रशेखर केलवा के पास यह अद्भुत और अनोखा कलेक्शन है. इसमें गौतम बुद्ध और चंद्रगुप्त मौर्य के समकालीन ही नहीं बल्कि दो हजार बीसी के सिक्के मौजूद है , यानी साड़े चार हजार साल पुराने सिक्के, जो कि बेहद दुर्लभ हैं.

इतना ही नहीं चंद्रशेखर केलवा के कलेक्शन में बीते 4000 सालों से लेकर के अब तक के अधिकांश साम्राज्यों के सिक्के शामिल है. इस अद्भुत कलेक्शन में मुगलकालीन सिक्कों से लेकर भारतीय राजाओं के प्रचलित मुद्राएं भी शामिल हैं. इसे देखकर यकीन कर पाना मुश्किल है. इन मुद्राओं पर उस जमाने के प्राचीन चिन्ह भी अंकित है जिसमें हाथी, घोड़ा, बैल ,ऊंट सहित भगवान और अनाज के चित्र शामिल हैं.

इस कलेक्शन की शुरुआत चंद्रशेखर केलवा के पिता नरेंद्र केलवा ने 1970 से की. उन्होंने तब से पुराने सिक्कों को इकट्ठा करना शुरू किया. देश के कई शहरों में घूम घूम कर, टकसालों में जाकर और पुराने जानकारी से मुलाकात कर उन्होंने यह अद्भुत सिक्के इकट्ठा किए हैं.

इतना ही नहीं कई बार यह सिक्के और मुद्रा बाजार में गलने और बिकने के लिए भी समय-समय पर आती रही है. इसकी जानकारी मिलते ही वे फौरन उसे शख्स के पास पहुंचकर उनसे यह मुद्राएं खरीद लेते थे.

बात इन मुद्राओं की प्रमाणिकता की करें तो उन्होंने देश के प्रमुख प्रमाणित इतिहासकारों की किताबों से इन मुद्राओं को प्रमाणित किया है. इन मुद्राओं के साथ उसकी पूरी जानकारी इस कलेक्शन में अंकित है. कब से कब तक यह मुद्रा प्रचलित थी, इसका इतिहास में क्या महत्व है. किस राजा के समय मुद्रा चलती थी, ये सभी जानकारी है.

<br />भारतीय किताबों में किस तरह से इन मुद्राओं के ऊपर चिन्ह अंकित हैं, इन सभी बातों का उल्लेख उन्होंने अपने इस कलेक्शन में बखूबी किया है.

वहीं सिक्कों के संग्रहणकर्ता चंद्रशेखर केलवा का मानना है कि इन सिक्कों को अब सरकारी मदद से सहेज जाए. एक छोटा सा म्यूजियम बनाकर उसे रखा जाए जो कि बिना सरकारी मदद के संभव नहीं है, जिससे ना केवल स्टूडेंट और नागरिक हमारी मुद्राओं का इतिहास जान सकेंगे, बल्कि इससे हमारी भारतीय संस्कृति के प्राचीन धरोहर की जानकारी भी सभी को मिलेगी.