सहस्त्रबाहु की आत्मा वाला शिवलिंग, जहां जलते 11 अखंड दीप, आज भी होता चमत्कार

सहस्त्रबाहु की आत्मा वाला शिवलिंग, जहां जलते 11 अखंड दीप, आज भी होता चमत्कार


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Sawan Special Temple 2025: महेश्वर में मौजूद राजराजेश्वर कार्तविर्य सहस्त्रार्जुन मंदिर न सिर्फ ऐतिहासिक है बल्कि उससे जुड़ी मान्यताएं इसे और भी खास बनाती हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर में जो शिवलिंग है, वो रामा…और पढ़ें

राजराजेश्वर मंदिर महेश्वर
खरगोन. मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में नर्मदा किनारे बसी पौराणिक नगरी महेश्वर शिवभक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है. देवी अहिल्या बाई होलकर की राजधानी महेश्वर को गुप्त काशी भी कहा जाता है. सावन में यहां दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन और पूजन के लिए पहुंचते हैं. महेश्वर में मौजूद राजराजेश्वर कार्तविर्य सहस्त्रार्जुन मंदिर न सिर्फ ऐतिहासिक है बल्कि उससे जुड़ी मान्यताएं इसे और भी खास बनाती हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर में जो शिवलिंग है, वो रामायण काल से भी पहले का है. मान्यता यह भी है कि इसमें माहिष्मति के राजा सहस्त्रबाहु का अंश यानी आत्मा समाई हुई है.

यह मंदिर खास इसलिए भी है क्योंकि इसे किसी देवता के बजाय एक राजा को समर्पित किया गया है. हैहै वंश में जन्में सबसे महान प्रतापी राजा कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन, जिन्हें भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र का अवतार माना गया है, उनके नाम पर ही यह मंदिर प्रसिद्ध है. मंदिर के गर्भगृह में कई सदियों से 11 अखंड दीपक जल रहे हैं. मान्यता है कि इन दीपों को त्रेतायुग में लंका नरेश रावण के सिरों और हाथों पर जलाया गया था, जब वह सहस्त्रबाहु से युद्ध में हारकर बंदी बना लिया गया था.

भगवान को प्रिय है शुद्ध घी के दीप

मंदिर के पुजारी महंत चैतन्य गिरी महाराज और कार्तिक महंत बताते हैं कि यह शिवलिंग बेहद चमत्कारी माना जाता है. इससे जुड़ा एक खास मंत्र भी है “दीपक प्रिय कार्तवीर्यों, मार्टंडो नती वल्लभाः” जिसका मतलब होता है कि सहस्त्रबाहु को दीपक बेहद प्रिय थे. यही वजह है कि यहां आने वाले श्रद्धालु मनोकामना पूरी करने के लिए दीपक चढ़ाते हैं, और विशेष पूजा करते हैं. कहा जाता है कि भगवान के दर्शन और नाम का मंत्र जपने से गुम हुई चीजें, खोया सम्मान या व्यक्ति भी मिल जाता है.

गर्भगृह में जलते है अखंड दीप

गर्भगृह की दीवारों में ही पत्थरों से बने 11 दीपक कुंड हैं. इन सभी में शुद्ध घी की अखंड ज्योत जलती रहती है. हर दीप में करीब डेढ़ किलो घी रोज डाला जाता है. मान्यता है कि जब रावण को कैद में रखा गया था, तो उसके दस सिरों पर 10 दीप और दोनों हाथों में एक दीप जलाए जाते थे. यह परंपरा आज भी मंदिर में जारी है और यह दृश्य हर भक्त के मन में भक्ति का भाव भर देता है.

87 हजार साल किया राज

भविष्य पुराण में यह भी लिखा है कि राजा सहस्त्रबाहु ने करीब 85 से 87 हजार साल तक धरती पर राज किया था. उनकी वीरता और भक्तिभाव की कई कहानियां आज भी लोकगीतों और कथाओं में सुनाई देती हैं. कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना खुद भगवान परशुराम ने की थी और उन्होंने सहस्त्रबाहु का अंश इसमें समाहित किया था. सावन में यहां हर दिन विशेष पूजा, श्रृंगार और आरती होती है. यहां पूरे सावन भगवान का फूलों से श्रृंगार होता है.

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