साइबर ठगों ने आशीष ताम्रकार से 84 लाख रुपए अपने बैंक खातों में ट्रांसफर करा लिए।
मध्यप्रदेश के अनूपपुर में इलेक्ट्रॉनिक्स दुकान के कारोबारी को साइबर ठगों ने आठ साल तक ठगा। इस दौरान आरोपियों ने कारोबारी से 84 लाख रुपए अपने बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कराए। कारोबारी का नाम आशीष ताम्रकार है, जो बीजेपी के जिला अध्यक्ष रहे अवधेश ताम्रकार
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पैसों का इंतजाम करने के लिए आशीष ने अपनी पत्नी के गहने और प्लॉट तक बेच दिए। उसने अपने बेटे की सैलरी तक ठगों को भेजी। पुलिस ने 17 जुलाई को इस मामले में एफआईआर दर्ज की है। दो लोगों को आरोपी बनाया गया है। जिनमें से एक महेंद्र शर्मा की 2022 में मौत हो चुकी है तो दूसरे आरोपी सौरभ शर्मा को विदिशा से पकड़ा है।
दैनिक भास्कर ने कोतमा जाकर पीड़ित कारोबारी आशीष ताम्रकार और उनके परिवार से बात की। आखिर आशीष ठगों के जाल में कैसे फंसे? आठ साल तक शिकायत करने के लिए पुलिस के पास क्यों नहीं गए, उन्हें किस बात का डर था? पढ़िए, रिपोर्ट…
अब जानिए, कैसे बनाया ठगी का शिकार…
वायदा बाजार में निवेश से शुरुआत आशीष बताते हैं कि साल 2012-13 में रीवा के रहने वाले दयाशंकर पांडेय हमारे कोतमा में आए थे। यहां उन्होंने वायदा बाजार (कमोडिटी ट्रेडिंग) के एजेंट बनाए थे। एजेंट के जरिए उन्हें कमीशन मिलता था। मैंने भी कमोडिटी ट्रेडिंग शुरू की और मुझे फायदा हुआ। धीरे-धीरे मुझे लत लग गई।
मैंने ज्यादा बड़ा अमाउंट निवेश करने का सोचा। इंदौर की एक बोनांजा कंपनी के बारे में मुझे पता चला। मैंने इस कंपनी में ट्रेडिंग के लिए 13 लाख रुपए जमा किए। मैं ट्रेडिंग करता रहा और मुझे फायदा होता रहा। इस बीच कंपनी ने कुछ गड़बड़ी की। यहां सेबी ने छापा मारा और कंपनी की ट्रेडिंग पर रोक लगा दी।

ताम्रकार ने जिस कंपनी में इन्वेस्ट किया था, उसके कागज उनके पास अभी भी रखे हैं।
2017 में एफआईआर से नाम हटाने के लिए कॉल आया आशीष कहते हैं कि कुछ दिनों बाद एक व्यक्ति का कॉल आया। उसने खुद को नीमच थाने का टीआई बताते हुए कहा कि आपका बोनांजा कंपनी में 23 लाख रुपए का पेमेंट अटका हुआ है। मैंने कहा- हां। टीआई बने शख्स ने मुझे कहा कि ये कंपनी आपके अलावा 19 और लोगों का पेमेंट हवाला के जरिए भेज रही थी।
जो व्यक्ति हवाला का पैसा लेकर जा रहा था, उसका एक्सीडेंट हो गया है। फिर उसने कहा कि यदि आप 50 हजार रुपए देंगे तो मैं आपका नाम एफआईआर से हटा दूंगा। कंपनी बंद होने के बाद मैं पहले से ही परेशान था कि पैसा कैसे मिलेगा। मुझे लगा कि ये आसान रास्ता है।

आधार कार्ड और बैंक डिटेल तक दे दी आशीष कहते हैं कि इसके बाद एक महिला का कॉल आया। उसने कहा- मैं नीमच थाने की एसआई नेहा सराठे बोल रही हूं। आपका पैसा राजसात होकर सरकारी खजाने में जमा है। क्या आप उसे वापस पाना चाहते हैं? आशीष कहते हैं- मेरा खुद का पैसा था तो मैंने कहा- हां मैडम। मेरा ईमानदारी का पैसा है, मुझे वापस चाहिए।
उस महिला ने कहा कि इसके लिए आपको इन्वेस्ट करना पड़ेगा। मैं इसके लिए तैयार हो गया। इसके बाद उन्होंने मुझे इतना डरा दिया था कि मैं उनकी बातें मानने के लिए मजबूर हो गया था। आशीष से पूछा कि दिन में कितनी बार कॉल आता था तो बोले- जब उन्हें पैसों की जरूरत होती थी तो दो घंटे में 10 बार कॉल लगाते थे।
रात साढ़े ग्यारह बजे तक फोन कर कहते थे कि ऑनलाइन पेमेंट करो तो मैटर सुलझ जाएगा। इन्होंने न मुझसे पैसा लिया बल्कि मेरा आधार कार्ड, पेन कार्ड, बैंक अकाउंट डिटेल के साथ स्टाम्प पेपर पर साइन करवाए और उसकी फोटो कॉपी ली।

जज-पुलिस अफसर बनकर करते थे कॉल आशीष कहते हैं- उन्होंने मुझे इतना डराया कि कोई सोच नहीं सकता। वो मुझे वीडियो कॉल करते, जिसमें पुलिस सायरन की आवाजें आतीं। दूसरी तरफ से कभी कोई जज बनकर बैठा होता तो कोई पुलिस अफसर। मुझे कहते कि आपका कॉल रिकॉर्ड हो रहा है। जो पेमेंट कर रहे हैं, उसका पूरा रिकॉर्ड रखा जा रहा है।
ये पूरी सरकारी प्रक्रिया है, इसलिए आप जो भी रुपए डाल रहे हैं, इसके बारे में किसी को मत बताना। उनकी इन्हीं सारी हरकतों से मैं डर चुका था। मैंने अपने पर्सनल अकाउंट, अपनी दुकान और पत्नी के अकाउंट से भी पेमेंट किया। मैंने कहा कि मेरा बेटा और बेटी पढ़ते हैं। इसके बाद भी उन्हें तरस नहीं आता था।
पत्नी के गहने बेचे, एफडी तुड़वाई आशीष ने बताया कि 23 लाख रुपए वापस पाने के लिए मैंने अपनी पत्नी तक के गहने गिरवी रख दिए। इसके बाद मैंने अपना एक प्लॉट बेच दिया। इस तरह से मैं इनकी डिमांड पूरी करता रहा। मैंने परिवार को कुछ नहीं बताया। हर दिन तनाव में रहता था। दुकान से दिनभर की जो बिक्री होती थी, उसे बैंक में जाकर जमा कर देता था और ट्रांसफर कर देता था।
मैंने मार्केट से भी पैसा उठाया और उसका ब्याज भी दिया। मेरी हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि मैं इन लोगों के खिलाफ शिकायत करूं। लोग कहते हैं कि आशीष तुम इतने पढ़े लिखे हो, इसके बाद भी इसमें फंस गए। मैं सच कहूं तो जिस समय मैं इन लोगों के चक्कर में फंसा, तब तक साइबर फ्रॉड के बारे में किसी को पता ही नहीं था। मुझे भी इसकी जानकारी नहीं थी।

पैसा देने से मना किया तो दुकान तक पहुंच गए आशीष बताते हैं कि जब मैं लाखों रुपए दे चुका तो एक दिन मैंने कहा कि अब मैं पैसा नहीं दे सकता। एक दिन मैं दुकान पर बैठा था तभी एक व्यक्ति दुकान पर आया। उसने बताया कि आपको आपका पैसा मिल जाएगा। उसने 10 रुपए का एक फटा नोट दिया और बोला कि हवाला का काम ऐसा ही होता है। हमारे लोग आएंगे उन्हें ये नोट दिखाना तो पैसा मिल जाएगा। मगर, कोई नहीं आया।
बायपास सर्जरी के दौरान भी कॉल और चैटिंग की आशीष ने कहा कि इसी तनाव की वजह से 2003 में मुझे हार्ट अटैक आया। घर वाले मुझे बिलासपुर के प्राइवेट अस्पताल ले गए। वहां मेरी बायपास सर्जरी हुई। सर्जरी के बाद मैं वार्ड में शिफ्ट हुआ और मोबाइल ऑन किया तो धमकियां मिलना शुरू हो गईं।
मैंने कहा कि मेरा हार्ट का ऑपरेशन हुआ है, तो भी कोई असर नहीं हुआ। मैंने अस्पताल से उन्हें पेमेंट किया।

ये उस वक्त की वॉट्सऐप चैटिंग है, जब ताम्रकार अस्पताल में भर्ती थे।
भाई और पिता ने किया सपोर्ट आशीष को ठगों के चंगुल से बाहर निकालने में उनके छोटे भाई शैलेंद्र की बड़ी भूमिका रही। शैलेंद्र बताते हैं कि जब भाई अस्पताल में भर्ती थे, तब उनका मोबाइल मेरे पास था। मैंने उनकी चैटिंग देखी तो मुझे समझ आया कि वो साइबर ठगी का शिकार हो रहे हैं। मैंने एक व्यक्ति से चैट भी किया था।
मुझे पहले से शक था, लेकिन ये सब देखकर मेरा शक यकीन में बदल गया। मैंने भाभी से पूछा तो भाई ने बताया कि ये किसी को पैसा दे रहे हैं, पूछो तो बताते हैं कि बिजनेस की बात है। मैंने भैया को समझाया कि पुलिस में शिकायत करते हैं, लेकिन वो डर रहे थे। आखिरकार इसी साल फरवरी की शुरुआत में मैंने एक शिकायत दी। इस शिकायत की जांच के बाद पुलिस ने 17 जुलाई को मामला दर्ज किया।
एफआईआर में साइबर ठगी की धारा नहीं शैलेंद्र कहते हैं कि पुलिस ने जो एफआईआर दर्ज की, उसमें ठगी की सामान्य धाराएं लगाई हैं। भैया शिकायत में बता चुके हैं कि उन्हें मोबाइल और वीडियो कॉल पर धमकाया गया था।

दो आरोपियों की मौत, एक गिरफ्तार हुआ पुलिस ने जांच के बाद विदिशा जिले में गिरधर कॉलोनी निवासी सौरभ शर्मा को गिरफ्तार किया। उसके पास से लैपटॉप, मोबाइल और कई ठगी से जुड़े दस्तावेज जब्त किए गए हैं। इस मामले के दो मुख्य आरोपी महेंद्र शर्मा और रवि डेहरिया की मौत हो चुकी है।
महेंद्र शर्मा हिस्ट्रीशीटर था। उस पर विदिशा और अन्य जिलों में 30 से अधिक मामले दर्ज थे। उसकी 2022 में चाकू मारकर हत्या कर दी गई थी जबकि दूसरे आरोपी रवि डेहरिया की दो महीने पहले एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई है। भास्कर ने तीसरे आरोपी सौरभ से बात की तो उसने बताया कि मैंने अपना खाता किराए पर दिया था। इसके इस्तेमाल के बार में नहीं जानता।

पुलिस ने सौरभ शर्मा को गिरफ्तार किया। उसका कहना है कि इस केस से कोई लेना-देना नहीं है।
कंपनी के पूर्व कर्मचारियों पर शक कंपनी के पूर्व कर्मचारियों पर शक जताते हुए आशीष बताते हैं- सेबी की रेड के बाद कंपनी के कर्मचारी बेरोजगार हो चुके थे, लेकिन उनके पास मेरे समेत ऐसे सैकड़ों लोगों का पूरा डेटा, इन्वेस्ट किए गए रुपए और प्रॉफिट सहित मिलने वाली राशि की जानकारी थी, इसी से ठगी हो सकती है। ऐसे में पुलिस को उस समय के सभी पूर्व कर्मचारियों से पूछताछ करनी चाहिए।
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रीवा जिले में साइबर ठगों की ब्लैकमेलिंग से परेशान एक बुजुर्ग ने खुद को गोली मारकर सुसाइड कर लिया। उन्होंने दोस्तों से उधार पैसे लेकर ठगों के खाते में ट्रांसफर किए थे। इसके बाद भी वे वॉट्सएप कॉल पर और रुपयों की डिमांड कर धमका रहे थे। बुजुर्ग की पहचान सरोज दुबे (65) के रूप में हुई हैं। उनकी पहली पत्नी का 15 साल पहले निधन हो गया था। पढे़ं पूरी खबर…