इंदौर में बुधवार को महाराजा तुकोजीराव हॉस्पिटल (MTH) में जन्मी दो सिर वाली बच्ची की हालत गंभीर है और वेंटिलेटर पर है। बच्ची को लेकर परिजन जहां दुविधा में हैं, वहीं डॉक्टरों की टीम उसे बचाने का भरसक प्रयास कर रही है। आमतौर पर 2 लाख बच्चों में पैदा होन
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इंदौर में यह मामला डॉक्टरों के लिए भी एक केस स्टडी है। आखिर ऐसे विकृति वाले बच्चे किन कारणों से होते हैं। इनका सर्वाइवल रेट क्या है। इसे बचाने के लिए डॉक्टरों और परिवार को क्या-क्या चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जीवित रहने की स्थिति में क्या-क्या स्वास्थ्य संबंधी और व्यावहारिक परेशानियां होंगी, इसे लेकर डॉ. प्रीति मालपानी (सुपरिटेंडेंट, सरकारी चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय), डॉ. प्रो.नीलेश दलाल (एचओडी, ऑक्सिटिक गायनिक, एमजीएम मेडिकल कॉलेज), केस से जुड़ी डॉ. ज्योति प्रजापति, डॉ. नीलेश जैन से सारी स्थितियां समझी।
सभी का कहना है बच्ची को बचा लेने के बाद भी खुद उसे, डॉक्टर्स और परिवार के लिए काफी गंभीर चुनौतियां रहेंगी, क्योंकि ऐसे केसों में सर्वाइवल रेट 0.1% से भी कम है।
डॉ. प्रीति मालपानी
जेनेटिक कारणों से पैदा होते हैं ऐसे बच्चे
एक या दो लाख में ऐसा एकाध बच्चा होता है। इस विकृति का मुख्य कारण जेनेटिक होता है। इस केस में भी ऐसा ही है, क्योंकि देवास की इस महिला का पहला बच्चा भी तीन माह में एबोर्ट (गर्भपात) हो गया था। इसमें भी कारण जेनेटिक ही लगता है। कितना जीवन जी पाते हैं ऐसे बच्चे? ऐसे बच्चे एबोर्ट हो जाते हैं या पेट में ही इनकी मौत हो जाती है। अगर विकृति के साथ पैदा होते हैं तो चंद घंटे या कुछेक दिनों तक ही जीवित रह पाते हैं। जहां तक इस बच्ची का सवाल है इसके दो सिर हैं जबकि बॉडी एक ही है। जैसे लंग्स, हार्ट, लिम्ब्स एक ही हैं। आमतौर पर ऐसे बच्चों को जन्मजात अन्य तकलीफें या बीमारी होती हैं। खासतौर पर हार्ट कमजोर होने से बचना मुश्किल होता है। इसमें दोनों सिरों की स्पाइनल कॉर्ड (रीढ़ की हड्डी) अलग-अलग हैं।

बच्ची को और क्या-क्या तकलीफें हैं? – इस बच्ची का वजन तो 2.8 किलो हैं जो ठीक है लेकिन दो हार्ट हैं। एक तो पूरी तरह से डेवलप ही नहीं हुआ। दूसरा हार्ट डिफेक्ट है। इस हार्ट की नलियां खुली हुई हैं, होल बड़ा है। यह दो ब्रेन को ब्लड सप्लाय कर रहा है तो उस पर लोड ज्यादा है। ऐसे में सर्वाइवल मुश्किल है। वह अभी वेंटिलेटर पर है। क्या इन्हें अलग कर बचाया जा सकता है? – बिल्कुल नहीं। दरअसल गर्दन से जुड़े दोनों के सिर हैं इसलिए मुमकिन ही नहीं है। इसमें पीडियाट्रिशियन सर्जन्स ने मना कर दिया है। देश में एकाध केस अलग करने का हुआ था, लेकिन उसमें सिर नहीं शरीर का अन्य हिस्सा जुड़ा था? डॉक्टरों के सामने इसे बचाने के लिए क्या-क्या चैलेंजेस हैं? – काफी चैलेंजेस हैं क्योंकि बच्ची एबनॉर्मल है। सिर के अलावा पूरी बॉडी एक है। दो ब्रेन होने से समझना ही मुश्किल है। हार्ट फैलियर है ऐसे में मैनेज करना बहुत कठिन है। जीवित रहने पर परिवार के लिए क्या चैलेंजेस रहेंगे? – पहली बात तो अगर बच्ची जीवित भी रहती है तो परिवार को उसे संभालना बहुत ही कठिन होगा। इसमें खुद बच्ची के लिए भी जीना बहुत कठिन होगा। खास परेशानी हार्ट डिफेक्ट की ही रहेगी। गर्भस्थ शिशु कैसा है, क्या डिलीवरी के पूर्व जांच में यह पता नहीं चला? – दंपती ने एमटीएच में आने के पहले तीन-चार अस्पताल में दिखाया था। इस दौरान डॉक्टरों के बताए अनुसार दो सोनोग्राफी की थी। दरअसल इसमें पता चलता है कि गर्भस्थ शिशु की हार्ट बीट नॉर्मल है क्या, उसकी ग्रोथ, अनुमानित वजन, आकार (लिंग परीक्षण नहीं) आदि की स्थिति क्या है। इसमें अंदाजा था कि संभवत: जुड़वां बच्चे हैं। दंपती भी इसे जुड़वां ही समझ रहे थे। इस तरह के केसों में बारीकी से डिटेक्शन बहुत मुश्किल होता है। चूंकि इस तरह के बच्चों की नॉर्मल डिलीवरी में मां और नवजात दोनों की जान का जोखिम रहता है। इसके चलते सिजेरियन डिलीवरी कराई गई।

24 घंटे बाद भी गंभीर दो सिर वाली बच्ची।
डिलीवरी होते ही बच्ची की हालत कैसी थी? – बच्ची पैदा होते ही दोनों मुंह से रोई थी। इसका मतलब था कि उनके ब्रेन में ऑक्सीजन नॉर्मल ही थी। इन्हें सांस लेने में काफी परेशानी थी। इस कारण Neonatal Intensive Care Unit (NICU) में एडमिट किया था। ये पूरे समय ऑक्सीजन पर है। किडनी में भी दिक्कत है। फिर भी खास समस्या हार्ट डिफेक्ट की है। उनकी फीडिंग भी हो रही है। बच्ची के बाकी ऑर्गन्स कैसे हैं? – सोनोग्राफी में पता चला कि बच्ची की दो किडनी है, दो लिवर हैं जो जुड़े हुए हैं। दो पेट हैं लेकिन वे भी जुड़े हुए हैं। लंग्स में भी बीच का हिस्सा जुड़ा हुआ है।

डॉ. नीलेश जैन
परिवार के लिए एक-एक मिनट दुविधा और चुनौती वाला इधर, दंपती बच्ची की गंभीर हालत के कारण बात करने की स्थिति में ही नहीं है। मां भी एडमिट है। डॉक्टरों के मुताबिक उनके लिए भी एक-एक पल बड़ी दुविधा वाला, चिंताजनक और चुनौतीपूर्ण है। डॉक्टर बच्ची को बचाने के हर संभव प्रयास में जुटे हैं। अगर वह बच भी गई तो उसे ऐसी ही शारीरिक परेशानियों से जूझना होगा। परिवार को भी बहुत मुश्किलें होंगी।