विपरीत परिस्थितियों में भी समता भाव और संतोष धारण करना ही सच्चे श्रावक की पहचान है, क्योंकि जिसका संयोग हुआ है उसका वियोग भी निश्चित है। जीवन में किया गया शुभ या अशुभ कर्म ही हमारे साथ अगले भवों में जाता है।
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यह बात नगर में चातुर्मासरत मुनिश्री निरोग सागर महाराज ने शुक्रवार को चौधरी मोहल्ला स्थित पाश्र्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।
कर्म और समता पर दिया विशेष प्रवचन मुनिश्री ने कहा कि मनुष्य जन्म मिला है तो हमें इसे सफल बनाना चाहिए। न तो जन्म के समय कुछ साथ लाए थे और न मरण के समय कुछ ले जा सकेंगे। केवल हमारे कर्म ही साथ जाएंगे। उन्होंने कहा कि सबसे पुण्यशाली तीर्थंकर भगवान होते हैं। उन्होंने चार घातिया कर्मों का नाश कर दिया, लेकिन चार अघातिया कर्म शेष रह जाते हैं। दुनिया में कोई भी जीव पाप और पुण्य के प्रभाव से अछूता नहीं है।
उन्होंने आगे कहा कि कितना भी पुण्यशाली जीव हो, उसकी हर इच्छा पूरी हो यह जरूरी नहीं। कर्मों और भाग्य में जो लिखा होता है वही होता है। भगवान भी किसी का भाग्य नहीं बदल सकते, लेकिन सच्चे देव, शास्त्र और गुरु की शरण से पाप रूपी प्रकृतियां भी पुण्य में बदल सकती हैं।
कहा– पहला सुख निरोगी काया धर्मसभा में मुनिश्री ने कहा कि पहला सुख निरोगी शरीर है। हमें जो भी भोग सामग्री और मनुष्य जीवन मिला है, वह हमारे पूर्व जन्म के पुण्य से मिला है। इसीलिए हमें उसमें संतोष रखना चाहिए और उसका सदुपयोग धर्म साधना में करना चाहिए।
जैन समाज बनाएगा संस्कारयुक्त स्कूल धर्मसभा के दौरान मुनिश्री ने वर्तमान में कथित स्कूलों द्वारा परोसी जा रही पाश्चात्य संस्कृति पर चिंता जताई और समाज से भारतीय संस्कारों से युक्त शिक्षा की व्यवस्था करने का आग्रह किया। उनकी प्रेरणा से जैन समाज गुना ने बूढ़े बालाजी रोड स्थित गौशाला प्रांगण में सीबीएसई पैटर्न पर आधारित जैन स्कूल खोलने की घोषणा की।
इस स्कूल में बालक-बालिकाओं को शिक्षा के साथ धार्मिक और सांस्कृतिक संस्कार भी दिए जाएंगे। स्कूल की घोषणा होते ही समाजजनों में उत्साह देखने को मिला और कई लोगों ने निर्माण के लिए दान की घोषणा भी की।
इस अवसर पर जैन समाज अध्यक्ष संजय जैन, महामंत्री अनिल जैन समेत बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित रहे।